उदय भाग ३२

उदय भाग ३२

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उदय और देवांशी थोड़ी देर बाद एक गुफा के सामने खड़े थे । गुफा पूर्णतया अंधकार में डूबी हुई थी । देवांशी ने गुफा के द्वार के नजदीक रखी हुई मशाल उठाई और एक पात्र से थोड़ा द्रव्य छिड़का जिससे मशाल जल उठी फिर वे दोनों गुफा में प्रवेश कर गए । जैसे जैसे आगे बढ़ते गए गुफा चौड़ी होती गई एक जगह पहुंचने पर आगे जाने का कोई रास्ता नहीं बचा । उदय ने कहा की आगे तो कोई रास्ता नहीं है शायद हम गलत जगह पर आ गए । देवांशी ने एक खंजर निकाला और उदय से कहा की अपना हाथ आगे करो । जब उदय ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो उसने खंजर नई नोक हाथ में चुभाई और कहा अब अपना खून इस दिवार पर छिड़को । उदय ने जैसे ही खून छिड़का वह एक द्वार उत्पन्न हो गया जिससे वो दोनों अंदर गए । अंदर एक बड़ा खंड था जिसके बीचोबीच एक पेटी रखी हुई थी । देवांशी ने कहा की इस पेटी में तुम्हारा पुराना शरीर है इसे अपने हाथ से खोलो । उदय ने पेटी खोली तो देखा की अंदर एक शरीर है जिसका चेहरा हूबहू उसके जैसा ही है फर्क सिर्फ इतना था की उसकी लम्बाई साढ़े ६ फिट के करीब था और कंधे भी काफी चौड़े थे । उदय ने पूछा की अब क्या करेंगे ?

देवांशी हँसने लगी फिर उसकी हंसी लगातार तेज होती गई फिर कहकहे में बदल गई । फिर उदय ने देखा की वह देवांशी की जगह असीमानंद खड़ा था । असीमानंद ने कहा तुम सचमुच मुर्ख हो तुम्हे मालूम ही नहीं है की किस पे भरोसा करे किस पर नहीं । तुम्हारे या भभूतनाथ के सिवा मुझे यहाँ तक कोई नहीं ला सकता था इसलिए मुझे सारा मायाजाल रचना पड़ा । तुम पर वार करनेवाला भी मैं और बचानेवाला भी मैं । मेरा इरादा वैसे भी मरने का नहीं था नहीं तो मैं तुम्हे तीसरे परिमाण में ही मार देता । लेकिन मुझे उदयशंकर का शरीर जो नष्ट करना था । और अगर मैं तुम्हे उस वक़्त मार देता तो महाशक्ति इस उदयशंकर को जीवित करने का कोई और मार्ग ढूंढ लेती । इस अजब दुनिया में आने के बाद उसने काफी आश्चर्य देखे थे लेकिन यह उसके लिए सबसे तगड़ा झटका था फिर भी उसने असीमानंद से लड़ने का फैसला लिया । उसने उरुमी निकालकर असीमानंद पे वार किया लेकिन असीमानंद मंजा हुआ योद्धा था उसने अपनी जगह से हटते हुए उदय पर वार किया लेकिन उदय अब उसके पैतरे समझ चूका था वो अपनी जगह से हट गया । काफी देर तक वो दोनों लड़ते रहे लेकिन अंत में असीमानंद उदय पे घातक वार करने का मौका ढूंढ ही लिया अब उदय लहूलुहान होकर जमीन पर पड़ा था । असीमानंद इतने पर ही नहीं रुका उसने उदय की हाथ और पाँव की हड्डीओं को चकनाचूर कर दिया फिर जब लगा की आगे उदय लड़ नहीं सकता तो उसने अपना ध्यान पेटी पर केंद्रित किया । उसने उदयशंकरनाथ के शरीर को टुकड़ो में बदल दिया । एक तरफ उदय पड़ा था और दूसरी तरफ उदयशंकरनाथ के शरीर के टुकड़े । जब इस सब से मन भर गया तो असीमानंद गुफा के द्वार की तरफ बढ़ गया और गुनगुनाते हुए बहार निकल गया । उदय खुद को हुए धोके से आहत था वो बेहोश हो गया ।

जब उसे होश आया तो तो उसने देखा की उसका शरीर बंधा हुआ है वो हिल भी नहीं पा रहा था । उसे सिर्फ छत दिखाई दे रही थी , उसे सिर्फ इतना एहसास हो रहा था की उसके नजदीक कोई बैठा हुआ है उसने बोलने की कोशिश की लेकिन बोल नहीं पाया लेकिन उसकी कराह से एक व्यक्ति उसके ऊपर झुकी वो भभूतनाथ थे । वो क्रोधित दिख रहे थे उन्होंने उससे पूछा ये सब कैसे हुआ ? उदय ने फिर से बोलने की कोशिश की लेकिन बोल नहीं पाया और कमजोरी की वजह से बेहोश हो गया ।

भभूतनाथ अपनी जगह से उठे और दूसरे खंड में चले गए , वह एक ज्योत जल रही थी उसके सामने अपने हाथ जोड़े और कुछ मंत्रोच्चार किये जिससे वो अधिक प्रकश से जलने लगी । फिर उस ज्योत से आवाज आयी तुम्हारा स्वागत है पाचवे परिमाण में । भभूतनाथ ने कहा बहुत आशा थी की एक न एक दिन उदयशंकरनाथ जीवित हो उठेंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और उदयनाथ से भी मुझे कोई ज्यादा आशा नहीं है । ज्योत थोड़ी हिली और आवाज आयी विश्वास सबसे बड़ी शक्ति है और मैं देख रहा हु आपका विश्वास डगमगाया हुआ है । जब आप खुद में विश्वास खो बैठते हो तब आप किसी पर विश्वास नहीं कर पाते हो । आप खुद में भी विश्वास रखो और उदयनाथ में भी । हजारो साल की साधना के बाद आप शक्तिशाली हुए हो और आप चाहते हो उदय कुछ ही समय में उतना शक्तिशाली बन जाये । उदयशंकरनाथ का शरीर ही नष्ट हुआ है आत्मा नहीं तो आप उसकी चेतना जगाओ जिससे उदयनाथ ही उदयशंकरनाथ बन जायेगा ।उदयशंकरनाथ का शरीर नष्ट करके असीमानंद ने उदय नाथ का उदयशंकरनाथ बनने का रास्ता खोला है ।और याद रहे की उदयनाथ मेरे द्वारा निर्मित नहीं बल्कि गर्भ से उत्पन्न हुआ पुरुष है इसलिए उसकी शक्ति भावनाओ के साथ जुडी है ।

उसे कुछ समय दीजिये , कालीशक्तिओ ने शुरू किया हुआ युद्ध जल्द ही ख़तम हो जायेगा । आप अपना ध्यान अपने बाकि भाईओ को छुड़ाने में लगाइये । वो लोग कहा है वो मेरी दिव्यदृष्टि भी देख नहीं पा रही और दिव्यशक्ति ने भी मेरी मदद करने से मना कर दिया है । उनका कहना है ये हमारा युद्ध हमें ही लड़ना है ।

तो मैं भी अब ज्यादा मदद नहीं कर पाउँगा । एक दूसरे पर विश्वास रखिये और आगे बढिये । एक और सलाह देवांशी नाम की एक युवती है उसे उदयनाथ के पास ले आइये शायद वो उदय की चेतना को जगा सकती है । लेकिन याद रहे उसे यह नहीं पता चलना चाहिए की यह पांचवा परिमाण है । देवांशी उदय से कभी मिली नहीं है लेकिन असीमानंद ने देवांशी बनकर जो पल बिताये है उसकी यादे उसने देवांशी के दिमाग में डाल दी है । उसकी वजह से वो उदय को चाहती है और वो आपकी मदद करेगी ।


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