उद्दण्ड
उद्दण्ड
मेरी कहानी सुनोगे, पहले बता दूँ कि मैं कौन हूँ।
मैं उद्दंड हूँ, हाँ यही है मेरा नाम। पर मैं अपने नाम का मतलब स्वतंत्रता, जवानी, मस्तपन समझ कर उद्दंडता करता रहा। क्या नहीं किया मैंने।
ड्राइव करते हुए कभी सीट बेल्ट नहीं लगाई। लाल-बत्ती को तोड़ कर निकलने और दूसरी और से गुज़रते वाहनों के बीच से गुज़रने में असीम आनंद प्राप्त होता था। ओवर स्पीड में मुझे रोमांच आता था। इतना अधिक कि धीरे या संयम से चलने वालों से तो गाड़ी छीन लेने का मन करता था।
बाइक चलाने में भी मेरा कोई सानी नहीं था। 4 दोस्तों को बिठा कर भी 120 की स्पीड पर बाइक दौड़ाने का कारनामा किया है मैंने। और वो पागल डरते रहते थे। कहते थे हेलमेट भी नहीं है। अरे उन्हें क्या पता था कि बाइक पर जबतक चेहरे पर गति से हवा न टकराये और बाल लहरा कर पीछे की तरफ़ न उड़ें तो क्या बाइक चलाई।
पर एक दिन सब बदल गया। मेरी बाइक के सामने एक बैल आ गया। मैं एकाएक उसे और खुद को बचाने के चक्कर में सड़क से नीचे उतर कर एक खंभे से जा टकराया। मैं उछलकर हवा में गया और मेरा सिर खंभे में लगा। सिर फट गया। कोई अस्पताल लेकर गया। आई सी यू में बहुत दिन भर्ती रहा। इलाज चलता रहा। छुट्टी मिलने के बाद घर आकर गया। पर अब मैं पहले सा नहीं रहा।
दिमाग की चोट ने मेरे हाथ-पैरों को लकवाग्रस्त कर दिया है। मुझे रोजाना के काम-काज के लिए भी दूसरों पर निर्भर होना पड़ रहा है। बोलने की शक्ति गँवा बैठा हूँ। बहुत मुश्किल अस्पष्ट सी आवाज़ों में अपनी बात कहता हूं।
माता-पिता की सारी उम्मीदें धूलि-धूसरित हो गई हैं। उनको जहाँ का पता चलता है वहीं मुझे इलाज के लिए ले जाते हैं। लेकिन सब जगह यही जवाब है कि इसका कोई इलाज नहीं। केवल फिजियोथैरेपी से उन्नीस-बीस का अंतर आ सकता है।
आज सड़क पर जब किसी को मैं छिछोरपंथी करते देखता हूँ तो मन करता है कि जाकर उसे झिंझोडूँ। उसको कहूँ कि मुझे देख। अपने घरवालों को देख। क्यों
अपना और उनका जीवन खेल समझ रहे हो। स्वतंत्रता का मतलब जिम्मेदारी है, उद्दंडता नहीं।