हसरत
हसरत
- कैसा सुखद समय है ना सुनील। आज हमें साथ रहते पूरे 24 साल से भी ज़्यादा हो गया। जल्दी ही सिल्वर जुबली हो जाएगी।
- हाँ वेणी। सचमुच। लगता है जैसे कल की ही बात हो। जब हमने निर्णय लिया था कि हम समाज के बंधनों को तोड़ देंगें और बिना शादी के साथ-साथ जीवन बिताएंगें
-सही में। किसी को भी यक़ीन नहीं था कि हम ये रिश्ता साल दो साल से ज़्यादा चला पायेंगें। लेकिन हम दोनों को एक दूसरे पर विश्वास था और हमने कर दिखाया।
-हाँ वेणी। आज हम समाज से कह सकते हैं कि साथ रहने के लिए शादी नहीं आपसी प्रेम, देखभाल, समझबूझ की आवश्यकता होती है। आख़िर हम क्या नहीं कर पाए जो एक शादीशुदा जोड़ा करता है।
-बिल्कुल। एक भरा-पूरा जीवन है। सब सुविधाएं, पढ़े-लिखे बच्चे, आज़ादी का जीवन। किस चीज़ में कम हैं हम किसी से भी।
-वेणी।
-हाँ सुनील
-वेणी। आज तुमसे कुछ पूछना है?
-पूछो ना!
-वेणी। कभी तुम्हें किसी बात का मलाल रहा है शादी न करके ऐसे लिव-इन मे रहने से?
-सच कहूँ तो, हाँ।
-किस बात का!
-बचपन से एक हसरत होती है लड़कियों की, मेरी भी थी। शादी में दुल्हन का लिबास पहनने की। वरमाला लेकर स्टेज तक आने की। उस उल्लास को महसूस करने की। और हमारी बेटी सुनील। हमारे पास हमारी शादी की एलबम नहीं थी जिसमें मैं उसे अपने सब रिश्तों को एक साथ दिखा पाती कि एक मौका कैसे सबको इकट्ठा कर देता है। पता है कुछ दिन पहले उसने क्या कहा मुझसे?
-क्या?
-बोली, मम्मी मैं लिव-इन पार्टनर ढूंढ भी लूँ तो भी उससे शादी ज़रूर करूँगी।
-हम्म्म्म।
-कभी-कभी मुझे लगता है सुनील कि बंधन तोड़ने की हसरत में हमने कितनी हसरतों का बलिदान कर दिया। है ना।
-हाँ वेणी। पर कोई बात नहीं। सिल्वर जुबली पर तुम्हें मेरी तरफ़ से यही गिफ्ट रहेगा। तुम दुल्हन बनोगी और तुम्हारी सारी हसरतें पूरी होंगी।
दोनों एकदम गले लग जाते हैं।
