सबकी ख़ुशी
सबकी ख़ुशी
आज किट्टू अपनी मम्मी से बहुत नाराज था। और होता भी क्यों नहीं। सुबह जब वो स्कूल गया था तो अपने पटाखे और खेल का सामान सब सँभाल कर गया था।
पहले तो उसे इसी बात से गुस्सा आया हुआ था कि उन्हें दीवाली उत्सव के नाम पर दीवाली वाले दिन भी स्कूल बुला लिया। दो घंटे के उत्सव के नाम पर सारी छुट्टी ख़राब कर दी। ऊपर से उसके साथ ये बड़ा धोखा हुआ कि जब 2 घंटे बाद वो आया उसने अपने पटाखों में से बहुत सारे गायब पाए। मम्मी से पूछा तो उन्होंने बताया कि उसने कुछ पटाखे पड़ोस में रहने वाले रामू को दे दिए ताकि वो भी दीवाली मना सके।
अब पांचवीं क्लास में पढ़ने वाले किट्टू को कैसे समझ आता कि रामू के पापा नहीं हैं। उसकी मम्मी सिलाई करके घर ख़र्च चलाती है। उनके लिए पटाखे खरीदना तो पैसे में आग लगाने जैसा है। हालांकि मम्मी ने किट्टू को कहा भी है कि शाम को पापा आयेंगें तो उसे और पटाखे दिला लायेंगें पर उसे लग रहा था कि उसकी दीवाली तो सारी ख़राब जा रही है। किट्टू की मम्मी समझ नहीं पा रही थी कि उसे कैसे समझाए। अब वो ना तो बहुत बच्चा था न बहुत बड़ा। इस उम्र के बच्चों को समझाना बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि न आप उन्हें बहला सकते हो न ही कोई गंभीरता वाली बात समझा सकते हो।रूठ कर वो मोबाइल चलाने लगा। दीवाली थी। बहुत से वीडिओज़ और फ़ोटो आये हुए थे। उनमें बहुत से ऐसे थे जिनमें किसी और कि दीवाली को रोशन करने की बात की हुई थी। किसी में किसी से मिट्टी के दिये खरीदने की बात थी, किसी में किसी को मिठाई बाँटने की। कुछ वीडियो देखकर ही किट्टू को वो बात समझ आ रही थी जो मम्मी उसे समझा-समझा कर भी नहीं समझा पा रही थी।
किट्टू न केवल समझ गया बल्कि ये बात उसके दिमाग़ में भी बैठ गई कि दूसरों को ख़ुश करना बहुत भलाई का कार्य है और सब ख़ुश होंगें तभी हम ख़ुश होंगें।