आत्मा की आवाज़

आत्मा की आवाज़

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लल्लन चोर की बीवी अपने पति की चोरी की आदत से दुःखी हो चुकी थी। जिस दिन से वो ब्याह कर आई थी, उसी दिन से उसे समझा-समझा कर हार चुकी थी कि इस काम को छोड़ दे। मगर लल्लन न कुछ करना जानता था, ना कुछ और करना चाहता था।

और अब उसकी सारी कौशिश अपने बेटे बीरे को इस बुराई से बचाने की थी। लेकिन लल्लन था कि उसे भी अपने धंधे में खींच लेना चाहता था। बीरे को बचपन से ही दो भिन्न-भिन्न छोर अपनी तरफ खींच कर अपने साथ बाँधने की कोशिश में थे। एक तरफ़ उसकी माँ जो उसे चोरी के धंधे से रोकना चाहती थी तो दूसरी तरफ़ उसका बाप लल्लन, जो उसे खुद से भी शातिर चोर बनाने का संकल्प लिए हुए था।

हमेशा पशोपेश में रहने वाला बीरा इस कश्मकश से ऐसे चौराहे पर खड़ा हो गया जहाँ से उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस रास्ते को चुने और किस को छोड़ दे। अपनी उलझन में बैठा एक दिन वो सोचमग्न था कि उसकी माँ आ गई। बीरे ने मां को देखा तो कुछ सोच कर सारी बात कह दी कि किस तरह की मनःस्थिति से उसे दो-चार होना पड़ रहा है।

माँ ने कहा, " देख बेटा, जीवन में ऐसे मोड़-दोराहे-चौराहे हमेशा आते रहेंगे। यही वक़्त होता है निर्णय का"।

बीरा शून्य को निहारते हुए बोला, " पर माँ, कौन बताएगा कि कहाँ जाना है। कहाँ रुकना है। कहाँ चलना है"।

माँ ने कहा," बेटा चौराहे पर ट्रैफिक लाइट में जब बत्ती होती है तो वो समय निर्णय का होता है। कभी लगता है कि रुक जाएं बत्ती हरी होने तक। कईं बार लगता है निकल जाएं कि कौन देख रहा है"।

बीरा उत्सुक हो उठा कि माँ क्या कहना चाहती है।

माँ ने कहना जारी रखा, "जीवन के चौराहों पर भी एक लाल बत्ती होती है। आत्मा की आवाज़। जब भी ग़लत निर्णय आने लगेगा, आत्मा एक लाल बत्ती जला देती है। उस समय सोच लेना कि आगे बढ़ना है या रास्ता बदल लूँ। आगे का निर्णय तुम्हारा है"।

बीरा सोच विचार में था। उसने अगली सुबह फैक्ट्री एरिया में जाकर कोई नौकरी ढूंढने का सोच लिया था। शायद उसने आत्मा की आवाज़ सुन ली थी।


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