चीज़ वाली आंटी

चीज़ वाली आंटी

3 mins
612


बचपन का एक किस्सा बताता हूँ आज। जब दूसरी क्लास में पढ़ता था तो हमें खर्च करने के लिए रोज़ 10 पैसे-20 पैसे मिला करते थे। कभी-कभी चवन्नी मिल जाती थी तो राजा हो जाते थे। स्कूल में peon एक आंटी थी और वो आधी छुट्टी में अपना बक्सा खोल कर बैठ जाती थी। जिसमें चूरन, टॉफी, इमली, पापड़ का छोटा सा भंडार हुआ करता था। और उसके लिए हमारे हाथ की वो दस्सी-बिस्सी बड़ी कीमती होती थी। ऐसे में जिस दिन हम चवन्नी ख़र्च करते थे उस दिन तो हमें अलग से एक पापड़ भी मिल जाता था, शायद बार बार चवन्नी लाने का लोभ जगाने के लिए उत्प्रेरक। हाँ तो आगे बढ़ते हैं।

एक दिन मम्मी की अटैची जो अलमारी के ऊपर रखी रहती थी और जिसमें वो खुले पैसे रखती थी, तक हमारी नज़रें पहुँच गई। पर फिर भी वहाँ पहुंचना मुश्किल था। थोड़ी खबेत करके खिड़की पर लटके और फिर लटके-लटके एक हाथ अटैची में पहुँचा दिया। थोड़ी करेला-करेली की तो हाथ में एक पुर्जा महसूस हुआ। जिसे हमने एकदम से खींच लिया। वो दो रुपये का नोट था। आँखों में चमक आ गई। दिन बल्लियों उछलने लगा और उसको मैंने अपने बस्ते में छुपा कर रख लिया।

अगले दिन स्कूल पहुँच कर आधी छुट्टी का इंतज़ार होने लगा। जैसे ही घंटी बजी हम पहुंचे सीधे चीज़ वाली आंटी के पास और दो का नोट बढ़ा दिया। आंटी ने नोट रख लिया। याद नहीं कितने का सामान लिया और उन्होंने कितने का दिया। पर पैसे कोई वापिस नहीं दिए। ज्यादा हिसाब क़िताब का न तो पता था न याद है कि खरीदारी बराबर हुई थी या रोज़ जैसी थी पर हाँ मन प्रसन्न था। और कारूं के ख़ज़ाने मिलने जैसी फीलिंग थी मन में। घर जाकर ठीक।

शाम को घर में सब इकट्ठे बैठते थे। मम्मी उस समय होमवर्क करवाती थी। क्योंकि उस समय लाइट वगैरह बुरी थी। मोमबत्ती हुआ करती थी। भोजनादि बनाना होता था तो वो होमवर्क जल्दी करवा दिया करती। वही समय उनका चाय का और आने-जाने वाली औरतों से गपशप का होता था। तो उस दिन भी होमवर्क चल रहा था। इतने में देखते हैं कि चीज़ वाली आंटी घर में आकर मम्मी के पास बैठ गई। तीज-त्योहार पर वो मिठाई और शगुन लेने आती थी तो जानती थी।

तो मम्मी से बोली, “दीदी, आज अजय को दो रुपये दिए थे क्या ”? भाई साब मेरी हालत बिगड़ गई। उन दोनों के बीच जो बात हुई जाने दीजिए। पर उसके बाद कि सुनिए। मम्मी ने उसको चाय पिला कर भेज दिया। कुछ न कुछ और बातें भी कहीं होंगी। लेकिन सबसे बड़ी बात मुझे मम्मी ने मुझसे सारी बात पूछी और बस इतना कहा कि बेटे अगर पैसे लेने होते हैं तो मम्मी से माँग लेते हैं, ऐसे नहीं लेते। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया कि मैं चीज़ वाली आँटी से गिला कर बैठूं।

आज सोचता हूँ कहाँ हैं चीज़ वाली आंटी जैसे लोग जो अभाव में होकर भी गरीब नहीं थे। कहाँ चली गई वो सोच जिसमें बच्चों को ऐसे संस्कार देते थे कि उनका व्यवहार न बिगड़े। शायद विकास की दौड़ में जो छूट गया है वो फिर कभी न मिल सकेगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama