Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Sushma Tiwari

Abstract

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Sushma Tiwari

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उड़ने दो

उड़ने दो

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"हिम्मत तो देखो इस लड़की की, तूने ही सर चढ़ा कर रखा है.. आधुनिकता का मतलब ये कुछ भी करेगी क्या.. हमारी कोई इज़्ज़त नहीं क्या समाज में.. किसने हक दिया इसे हमारी मान मर्यादा से खेलने का" राशि की सास बस फ़ट पड़ी थी। 

"माँ ! मैं बात करता हूं आप शांत हो जाए" आदित्य ने माँ को समझाया। 

" दिमाग जगह पर तो है तुम्हारा? तुम इन जैसी औरतों को शेल्टर दोगी और उनकी आवाज़ भी बनना चाहती हो.. तुम लाइब्रेरियन हो एक साधारण सी, कोई महान समाज सुधारक नहीं " आदित्य का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था। 

वो सिर झुकाए खड़ी थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर गलती कहाँ हो गई उससे? जिसे वो घर - दुनिया समझती रही उनके ऐसे ठेकेदार भी निकलेंगे जो उसके सही गलत का निर्णय करेंगे। जैसे एक फैलते हुए वृक्ष को कह रहे हो 

"काट डालो इसकी शाखाएं! हमने जरा सी फलने फूलने की छूट क्या दी, ये तो चारो ओर अपने हाथ पांव फैला रही है। बहुत शौक है दूसरों को आसरा और छांव देने की, वो भी हमारे इजाजत और सिद्धांतो के खिलाफ जाकर, अब देखते हैं.. आइन्दा से अपने दायरे ना भूलना ।"

उसकी सारी शाखाएं काट दी जा रही हो । असहनीय पीड़ा तन में पर उससे भी असहनीय पीड़ा मन में "आह! मैं इतनी मजबूत होकर भी मजबूर क्यूँ हूं ?"

फ़िर अंदर से आवाज़ आई "दुखी क्यूँ ? बढ़ना और फिर जीवन बनना तुम्हारी प्रकृति और ये ही प्रकृति की प्रवृति है, तुम बढ़ोगी, और फैलाओगी अपनी विशाल शाखाएँ, खुद तय करोगी अपने दायरे "।


"हाँ याद है मुझे की मैं एक लाइब्रेरियन हूं और मुझे पता है हर एक किताब जिसका किसी की बुक शेल्फ में सजने का सपना था और जो अब घंटे - दिनों के लिए किसी की होकर आती है उन सारी किताबों के पुराने पन्नों में छपी कहानी के अलावा एक अलग कहानी भी होती है। वो कहानी जो वो सुनाना चाहती है और मैं उन्हें आवाज़ देकर सिर्फ अपने लाइब्रेरियन होने का फर्ज अदा करने जा रही हूं। " 

श्वेता अपने दिमाग में चल रहे और सामने वाले के सवालों के उतार चढ़ाव को विराम दे चुकी थी।


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