Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Sushma Tiwari

Inspirational

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Sushma Tiwari

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अशिक्षा से आजादी

अशिक्षा से आजादी

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"एक बार फिर सोच लो बेटा!" राम सुमेर कुर्सी पर बैठते हुए बोले।  वहीं उनकी पत्नी अभी भी आंचल के कोर से अपने आंसू पूछने में लगी हुई थी। 

" मां! बाबा! आप लोग तो ऐसे संताप मना रहे हैं, जैसे मैं किसी युद्ध पर जा रहा हूं " 

" हां तो युद्ध ही है। हम जिस परिवेश से निकलकर आज यहां तक पहुंचे हैं तू फिर उसी में जाने की बात कर रहा है " 

"मां! आप समझती क्यों नहीं.. मैं अपनी तरह और लोगों को भी अशिक्षा के जंगल से बाहर निकालना चाहता हूं " 

" हां - हां.. तूने ही तो ठेका ले रखा है.. अपने पूरे समाज का। सरकार है ना! वह देख लेंगे। "

" मां! हम सब कुछ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं। अगर हमें आगे बढ़ने का मौका मिला है तो कोशिश करनी होगी कि हम यह मौका दूसरों को दें।"


झारखंड के आदिवासी समाज से आने वाले अनिमेष ने ना जाने कितने बेड़ियों को तोड़ते हुए वह मुकाम हासिल किया और अपने आदिवासी समाज का नाम ऊंचा किया था। अब उसके मां बाबा चाहते थे कि वह कोई अच्छी सी नौकरी लेकर अच्छी जिंदगी गुजर बसर करें पर अनिमेष ने सरकारी टीचर बनने का फैसला किया। अनिमेष की नियुक्ति अंग्रेजी शिक्षक के तौर पर झारखंड के एक बहुत ही पिछड़े हुए आदिवासी इलाके में हुई थी। बस इसी बात पर उसके घर में संग्राम मचा हुआ था पर अनिमेष ने ठान रखा था की शिक्षा का अधिकार तो सबका है और अगर गुरु ही मुसीबतों से घबराने लगे तो उस शिष्यों का क्या होगा। 

नाराज माता-पिता को छोड़कर अनिमेष अपने कर्म क्षेत्र की ओर बढ़ चला था। उसने तय किया कि एक शाम पहले ही वह स्कूल पहुंचकर जहां उसके रहने का इंतजाम भी किया गया था, वह आगे की रणनीति बना लेगा। पर कहते हैं ना विजयपथ की राह इतनी आसान नहीं होती। जंगलों को चीरती हुई उसकी गाड़ी कुछ दूर पर ही रह गई। ड्राइवर ने बताया अब इसके आगे जाने के लिए कच्चा रास्ता ही है और कम से कम 300 मीटर पैदल चलने के बाद स्कूल आपको वहीं मिलेगा। ड्राइवर जो उस क्षेत्र के बारे में अच्छे से जानता था उसी ने बताया कि बहुत ही कम आबादी वाला गांव इन्हीं जंगलों के बीच में और स्कूल से सिर्फ डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर है। हां एक दिक्कत यह है कि आपको जरूरत का सामान लेने के लिए यह 300 मीटर पैदल चलकर इस सड़क तक आना पड़ेगा उसके बाद ही आप किसी बाजार या दुकान तक पहुंच पाएंगे। वह इलाका एकदम वीरान है। 

अनिमेष ने अपना सामान उठाया और पैदल चलकर स्कूल तक गया। उसके लिए यह पैदल चलना कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि खुद की शिक्षा ग्रहण के दौर में उसने काफी मुसीबतें उठाई थी इसीलिए वह इन कठिन राहों को समझता था। अनिमेष ने जाकर देखा तो स्कूल के नाम पर दो कमरों का एक छोटी सी इमारत थी जिसके बाहर चापाकल और एक घना वृक्ष था। स्कूल के कमरों में खिड़कियां तो थी पर इन उन खिड़कियों में ना तो जाली लगी हुई थी ना ही दरवाजा। अंदर जाकर देखा तो चौकीदार चाय बना रहा था। उसे अनिमेष ने अपने आने की खबर दे दी थी। अच्छी बात यह थी कि इस इलाके में कम से कम संचार सुविधा ठीक-ठाक थी। चौकीदार भोला ने उसका कमरा पहले से ही साफ करके रखा हुआ था। भोला से पूछने पर पता चला कि स्कूल में प्रिंसिपल के नाम पर इसी गांव के मुखिया है जोकि यहां कभी आते ही नहीं है और आए भी क्यों यहां पढ़ने आता ही कौन है? और पढ़ाने आता कौन है? ले देकर अंग्रेजी शिक्षक के नाम पर आज जो पहली नियुक्ति अनिमेष ने कबूली थी वही शायद इकलौता शिक्षक था यहां पर। अनिमेष समझ गया कि उसे अंग्रेजी के अलावा बाकी विषयो को भी देखना पड़ेगा। यह सुनकर थोड़ा भी हतोत्साहित नहीं हुआ उल्टा वह खुश था कि यहां का सर्वेसर्वा अब वही है। 

थोड़ी देर आराम करने के बाद डेढ़ सौ मीटर फिर चल कर वह जब गांव में मुखिया जी के यहां पहुंचा तो मुखिया जी ने उसका बहुत अच्छा स्वागत किया। उन्होंने अनिमेष को बधाई दी उसके साहसिक कदम के लिए। फिर मुखियाजी ने यह भी बताया कि वह जब चाहे यहां से अपना ट्रांसफर करवा सकते हैं क्योंकि ले देकर गांव में 15 बच्चे मिलेंगे जो शायद ही स्कूल आ सके। वह भी आपको शुरुआत से शुरू करनी पड़ेगी यह इतना आसान नहीं होगा। शायद इसीलिए आज तक किसी शिक्षक ने यहां की लंबी नियुक्ति कबूली नहीं। जो आता है कुछेक महीनों में ही भाग जाता है। 

" पर हम कोशिश तो कर ही सकते हैं। क्या आप मेरे लिए इतना करेंगे कि उन सभी बच्चों को यहां एक बार बुलवा देंगे?" 

"हां हां क्यों नहीं जरूर" 

फिर मुखिया जी ने आवाज देखकर एक आदमी को बुलाया और उन सभी बच्चों को बुलावा भिजवा दिया जिनका नाम उस विद्यालय में विद्यार्थियों के तौर पर लिखवाया गया था। अनिमेष ने देखा सारे बच्चे अलग-अलग उम्र के थे यानी अलग-अलग कक्षा के हिसाब से होना चाहिए। बात करने पर पता चला सबके लिए शुरुआत एक साथ करनी पड़ेगी क्योंकि बेचारे बच्चे आज तक शिक्षा के अधिकार से वंचित ही थे। 

" बच्चों! कल से जो भी स्कूल आएगा उसे दोपहर का अच्छा वाला खाना मैं अपने हाथ से बनाकर खिलाऊंगा और साथ ही साथ में अपने इस रंगीन फोन पर आप सबको वीडियो गेम खेलना भी सिखाऊंगा " 

छोटे-छोटे बच्चों की आंखों में उम्मीद के साथ साथ लालच की तितलियां तैरने लगी। अनिमेष आश्वासित होकर वापस स्कूल पर आ गया। उसे भरोसा था अगले दिन सब जरूर आएंगे। वह सुबह एक नई ऊर्जा के साथ उठा और कक्षा के बाहर सब का इंतजार करने लगा। एक घंटे बीते दो घंटे बीते और कोई नहीं आया। उम्मीद ना छोड़ते हुए अनिमेष गांव की ओर चल दिया। गांव जाकर उसने जब लोगों से पूछा तो पता चला आज खेत में बुआई का दिन है जिसकी वजह से सारे बच्चे खेतों पर काम करने ही गए हैं। अनिमेष बहुत निराश हुआ। वह वहां से खेतों की ओर निकल गया। 

" क्या आप लोग नहीं चाहते कि आपके बच्चे इस माहौल से निकलकर आगे उन्नति करें?" 


"कुछ नहीं होने वाला है मास्टर साहब! कितना लड़ेंगे बाहर की दुनिया से? उनसे लड़ना मतलब दीवार में सर मारना.. टकरा टकरा कर खुद को ही जख्मी करेंगे " 

" अगर मेरे मां बाबा ऐसा सोचते ना तो आज मैं भी कहीं किन्ही खेतों में मजदूरी कर रहा होता। आज मैं आपके बच्चों का शिक्षक बनकर उनके सामने खड़ा हूं इसकी एक ही वजह है कि मेरे मां बाबा ने हार नहीं मानी।"

अनिमेष के समझाने के बाद लोगों ने अपने बच्चों को उसके साथ स्कूल भेज दिया। एक नई ऊर्जा के साथ अनिमेष ने उन बच्चों के साथ पढ़ाई की शुरुआत की। यह उसके लिए भी एक नया अनुभव था। अनिमेष को आश्चर्य हुआ कि बच्चे बहुत दिमाग से तेज थे। चीजों को बहुत जल्दी सीख रहे थे, याद कर रहे थे। वह बच्चों के साथ मिलकर दोपहर का भोजन बनाता और वह सब मिड डे मील को पिकनिक की तरह उत्साहित होकर खाते थे। अनिमेष ध्यान रखता कि भोजन के तौर पर उन्हें पौष्टिक आहार की कमी ना हो इसके लिए अनिमेष सरकारी तंत्रों से लगातार संपर्क बनाए रखता था। जरूरत पड़ती तो वह अपने जेब से भी खर्च करता था। नेटवर्क अच्छा होने के कारण उसने जल्दी वहां क्लास रूम में स्मार्ट टीचिंग के उपकरण लगवा दिए थे। अब तो बच्चों के साथ-साथ कभी-कभी उनके अभिभावक भी वहां आ जाते थे। अनिमेष दुनिया भर की ज्ञानवर्धक वीडियोस भी उन सब को दिखाता था। 

एक दिन जब अनिमेष बच्चों को अंग्रेजी के एक नाटक का अभ्यास करवा रहा था तो उसने उस अभ्यास को अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिया फिर शहर में बैठे अपने मां बाबा को खुश होकर उसने वह वीडियो भेजा। देखते ही देखते कुछ ही घंटों में वह वीडियो वायरल हो गया। आदिवासी बच्चों को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते देख सारे लोग अचंभित थे। देशभर के न्यूज़ चैनलों पर यह खबर आग की तरह फैल गई। अगले ही दिन मीडिया कर्मी जंगल में बने उस स्कूल तक पहुंच ही गए। रास्ते भर वह खुद अचंभित थे कि जिन दुर्गम रास्तों से उसे स्कूल तक पहुंचना मुश्किल है अनिमेष उन रास्तों से गुजर कर बच्चों को पढ़ाने जाता है। उनके दिल में अनिमेष के लिए काफी सम्मान बन चुका था। स्कूल पहुंचने पर उन्होंने देखा की दोपहर के खाने का समय हो चुका था। अनिमेष और बच्चे एक साथ बैठकर खाना खा रहे हैं साथ ही साथ अंताक्षरी खेल रहे थे। स्कूल का काम खत्म करके जैसे ही बच्चे बाहर आए रिपोर्टर उनसे सवाल पूछने में लग गए। बच्चों ने भी पूरे आत्मविश्वास के साथ उनके हर सवाल का जवाब दिया। 

" अनिमेष जी! आपके इस दुर्गम जंगलों में आने से पहले आपकी माता-पिता ने आपको रोका नहीं? इतनी कम उम्र में इतना साहसी कदम?" 

" जी देखिए जंगल तो मेरे लिए मेरे घर की तरह है। मैं भी एक आदिवासी समाज से आता हूं।" 

" फिर भी.. यहां आकर जब आपने देखा कि आपकी मदद के लिए कोई शिक्षक नहीं है सिर्फ और सिर्फ आप ही है तो क्या आपको डर नहीं लगा कि सारा काम आप को अकेले करना पड़ेगा? "

" नहीं मुझे डर नहीं लगा बल्कि मुझे खुशी इस बात की हुई कि मुझे इतना सब कुछ खुद करने को मिलेगा "

"अनिमेष जी क्या लगता है आपको? क्या है इन बच्चों का भविष्य? "

" बच्चों का भविष्य? यह हमारा देश है.. आने वाला कल है.. यह हमारे देश के भविष्य है.. और हमारे देश का भविष्य हमारे हाथ में है। हम उसे संवारते हैं या हम उसे बिगाड़ते हैं। मैं चाहता तो अपने लिए कोई सुविधाजनक नौकरी चुन सकता था पर उससे मैं सिर्फ अपना भविष्य सुधार सकता था पर मैंने अपने देश का भविष्य सुधारना चुना। शिक्षक तो कुम्हार की तरह होता है जो देश का भविष्य अपने हाथों से प्यार से गढ़ता है। यह बच्चे बहुत प्रतिभाशाली है इन्हें बस सही दिशा देने की जरूरत है और मैं बस अपना कर्तव्य निभा रहा हूं। "

" अनिमेष जी! आप देश के युवाओं को कोई संदेश देना चाहेंगे " 

" हां मैं यह संदेश देना चाहता हूं के अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के भविष्य के बारे में सोचिए... क्योंकि मैं रहूं या ना रहूं भारत ये रहना चाहिए !"


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