कर्मकांड
कर्मकांड


"अरे भाई साहब! बड़ी व्यस्तता में भागे जा रहे हैं.. आज चौपाल पर नहीं बैठेंगे?"
" नहीं, आज रुकना नहीं हो पाएगा.. कन्या पूजन का सामान लाना है।"
" मतलब आप भी लगे हुए हैं? समझ नहीं आता क्या मिलता है लोगों को इस दिखावे के कर्म से? जहाँ देखो कन्याओं पर अत्याचार के कांड सुनाई देते हैं और आप जैसे लोग अब भी कर्मकांड कर रहे हैं!"
" कर्मकांड नहीं करने से ये कांड बंद हो जाएंगे क्या ?....या यूँ चौपाल पर बैठकर 'कड़ी आलोचना' करने से बंद हो जाएंगे? ''
" तो आप ही बताइए कैसे बंद होंगे?"
" कड़े कदम उठाने से!!.. हर त्यौहार पर आप लोग नैतिकता के प्रश्न खड़े कर देते हैं, त्यौहार है भाई!!..सुधार कार्यक्रम नहीं।... जहाँ तक मेरा प्रश्न है तो मैं अपने बेटे को हमेशा स्त्रियों को विशेष सम्मान देने और अपने विचारों पर नियंत्रण रखने की सीख देता हूँ और साथ ही अपनी बेटी को माँ दुर्गा जैसी बनने को प्रेरित करता हूँ। अगर मौजूदा हालात में बदलाव लाना है तो जरूरत है संस्कारों में सुधार करने की...न कि त्योहारों में।"