Sushma Tiwari

Inspirational

4.7  

Sushma Tiwari

Inspirational

सत्यमेव जयते

सत्यमेव जयते

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पुलिस मुख्यालय के सामने गाड़ी आकर रुकी। खाकी वर्दी, ओजस्वी चेहरा और कंधे पर आईपीएस का तमगा.. यह थी असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस रिचा शर्मा जिन्होंने आते ही पुलिस विभाग में धमाकेदार एंट्री की थी। 

" मैम! प्लीज आप यह बताइए एक विधायक के करीबी के लड़के को पिछली रात अरेस्ट करते हुए आपको डर नहीं लगा?" रिपोर्टर्स रिचा से बेबाक सवाल कर रहे थे। 

" आप लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि मुझे डरना चाहिए? खैर! मैं यहां आपके सवालों का जवाब देने नहीं आई हूं, मेरी एक इंपॉर्टेंट मीटिंग है।"

" मैम! क्या यह मीटिंग आपके ऊपर राजनीतिक प्रेशर बनाने के लिए है?"

रिचा ने हाथ से इशारे करते हुए कहा "नो कमेंट" और अंदर चली गई। 

रिचा के चेहरे पर उसका शौर्य साफ साफ दिखता था। अंदर मीटिंग हॉल में उसके सीनियर्स के साथ वही विधायक और एक महाशय बैठे हुए थे जो कि उनके पी ए थे, जिनके बेटे को उसने पिछली रात रैश ड्राइविंग और इव टीज के केस में अरेस्ट किया था। अंदर जाकर रिचा ने सलूट किया। 

" नई नई जॉब का जोश है मोहतरमा को, आई ए एस ज्वाइन कर लेना चाहिए था जब राज चलाने का इतना शौक है " 

विधायक के पीए ने कहा। 

उसे हाथ दिखा कर शांत रहने का इशारा करते हुए एसपी साहब बोले 

" मिस रिचा! क्या ट्रैफिक पुलिस का काम भी आपने ही संभाल लिया है? क्या आपके पास अपना कोई केस नहीं है?"

" सर! मैं कोई ट्रैफिक पुलिस का काम नहीं कर रही थी। मैं सिर्फ वहां से गुजर रही थी और मैंने यह अपराध होते हुए देखा, और वो अपराध मेरे साथ हो रहा था सर.. तो यह मेरा फर्ज बनता था कि मैं उन्हें रोकूं " रिचा ने अपना पक्ष रखा। 


" मिस रिचा! आपका फर्ज बनता था कि आप ट्रैफिक पुलिस को इन्फॉर्म कर देती गाड़ी का नंबर देकर... "

" और सर! इस बीच में वह जाने कितने मासूम लोगों की जान ले लेता... मैं ऐसा नहीं होने दे सकती थी.. और फिर पकड़े जाने के बाद भी उन साहब की बदतमीजी काफी बढ़े जा रही थी.. उन्हें इतनी भी तमीज नहीं थी एक महिला से कैसे बात किया जाता है?"

" अरे सर जी! इन्होंने तो वर्दी भी नहीं पहनी थी। भला बाबा इनको कैसे पहचानते? वरना हिम्मत है इनसे बदतमीजी कर देते?" पी ए कहां हार मानने वाला था। 

" हां तो मैंने वर्दी नहीं पहनी थी! उसका मतलब क्या हुआ? मै ना होती तो कोई और होता तो उसके साथ वह कुछ भी कर सकता था? सर! ऐसे लोगों को जेल के अंदर होना चाहिए ना की खुलेआम घूमना चाहिए " 

" अच्छा तो अब आप जज भी हो गईं? "विधायक जी की भारी-भरकम आवाज से कमरा दहल उठा। 

" मिस रिचा! आपने जो भी एलिगेशंस लगाए हैं आप उन्हें वापस लीजिए और इस बात को यहां रफा-दफा कीजिए, कुछ हुआ तो नहीं ना? फालतू में लेडी सिंघम मत बनिए "

" आजकल की नए-नए जॉइनिंग को बस मीडिया में फेमस होने का शौक है.. आगे पीछे कुछ नहीं सोचेंगे की उनकी इस हरकत से वर्दी कितने दिन रहने वाली है "पी ए की बात रिचा के कानों में चुभ रही थी। 

" सर अगर आपको ऐसा लगता है कि मैंने कुछ गलत किया है तो बाहर मीडिया खड़ी है आप वहां जाकर खुद बयान दे सकते हैं मैं ना कोई एलिगेशन वापस लूंगी और ना ही मैंने कोई गलती की है, जय हिंद सर।"

सेल्यूट मारकर रिचा वहां से बाहर निकल आई। कुछ कदम जाकर वह ठिठक गई। सामने के दरवाजे से जाने का मतलब फिर से मीडिया के सवालों का जवाब.. हां वह मीडिया से नहीं डरती थी पर इस समय कुछ भी बोलना सही नहीं होगा। अपनी बाई तरफ मुड़ कर पैसेज से होकर वह पीछे के रास्ते की ओर हो ली। वैसे भी उसने अपनी बुलेट पीछे पार्क कर रखी थी। बुलेट स्टार्ट करते ही रिचा पीछे छूटती हवा के साथ अपने अतीत में खो गई। इसी तरह से एक दिन वह और कुमुद स्कूटर पर हवा से बातें करते कॉलेज जा रहे थे 

"तू सच में टी सी ले रही है? अरे पूरे डिस्ट्रिक्ट में टॉप किया है तूने! तुझे तो इनाम मिलेगा। फिर तू देश के बाहर क्यों जाना चाहती है?" रिचा ने ड्राइविंग करते हुए पूछा। 

"अरे यार रिचा! तुझे तो पता है अपने यहां की हालत क्या है? यहां कोई नहीं आगे बढ़ने देगा।" कुमुद मायूसी से बोली। 

" तू ऐसा क्यों सोचती है? क्या हमारे देश में महिलाएं आगे बढ़कर काम नहीं कर रही हैं? "

" बेशक कर रही हैं। पर तुझे अपने इलाके का तो पता ही है.. वैसे भी मां बाबा ने बहुत मुश्किल से मुझे पढ़ाया है, दिन रात उनके दिल में डर लगा रहता है कि कहीं मेरे साथ कोई अनहोनी ना हो जाए। बता भला ऐसे डर के साथ मैं कितना आगे बढुंगी?"

" मैं ऐसा नहीं मानती कुमुद! घटनाएं होती रहती हैं। हर एक को हम दिल पर नहीं ले सकते ना? अपना देश तो अपना देश है और वैसे भी तू मेरे बिना रह लेगी क्या? मन लगेगा तेरा?"

" तभी तो कह रही हूं रिचा! मैं फर्स्ट आई हूं तो तू भी तो सेकंड आई है.. तू भी चल साथ में जिंदगी आराम से कटेगी अपनी "

बातों में मशगूल दोनों सहेलियां कॉलेज की ओर जाने के लिए शहर की तंग गलियों से निकलकर आगे बढ़ रही थी की तभी 4-5 बाइक पर सवार मनचले आगे पीछे होने लगे। वह तरह-तरह की फब्तियां कस रहे थे।कभी बाइक की स्पीड बढ़ा रहे थे तो कभी कोई स्टंट दिखा रहे थे ।उनमें से कुछ अश्लील गीत गा गा के गंदे इशारे भी कर रहे थे। कुमुद घबरा गई।

 " सुन रिचा आगे सुनसान गली है, एक काम कर राइट लेकर मेन रोड पर हो ले" 

"तू शांत रह कुमुद! कुछ भी नहीं होगा इन लोगों का यही सब चलता रहता है" 

" नहीं रिचा! मुझे डर लग रहा है.. आजकल कितना कुछ सुनने में आता है, यह इतने सारे हैं और हम दो ही.. आगे सुनसान गली में अगर इन्होंने हमें घेर लिया तो हम क्या करेंगे? तू एक काम कर राइट लेकर मेन रोड पर आ जा"

 रिचा ने देखा कि कुमुद डर के मारे उसे कसकर पकड़ चुकी थी। उसकी बात मानते हुए रिचा ने स्कूटी को मेन रोड पर ले लिया पर उसके बाद भी उन मनचलों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। वह उनके पीछे-पीछे मेन रोड तक आ गए। 

" तेरा पीछा ना छोड़ेंगे सोनिए " 

जोर-जोर से गा रहे थे। उनके तरह तरह के स्टंट दिखाने के वजह से कुमुद और घबरा रही थी। तभी एक बाइक वाले ने आकर अचानक से रिचा के सामने गाड़ी को लाकर ब्रेक मार दिया। सामने से आई अचानक गाड़ी के चलते रिचा घबरा गई और उसका स्कूटी का बैलेंस बिगड़ गया और वह वहीं गिर पड़ी। झटका लगने से रिचा बायीं ओर गिरी और कुमुद पीछे बैठी थी वह दायीं ओर कुछ दूर जाकर गिरी। इतनी ही देर में पीछे से आती हुई एक बड़ी गाड़ी उसके ऊपर से गुजर गई। यह सब कुछ मिनटों के अंदर ही हो गया। रिचा को कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला। वह सन्न सी वहीं सड़क पर पड़ी थी। खून में लथपथ कुमुद के शरीर को देखकर वह अपने होश खो चुकी थी। मनचले भाग चुके थे। हां ऋचा और कुमुद दोनों ने हेलमेट पहना था पर हेलमेट सर बचा सकता था जब पूरी गाड़ी शरीर पर से गुजर गई हो तो बचे जाने की कोई उम्मीद नहीं थी। कुमुद रिचा को छोड़कर जा चुकी थी। कोई पुलिस केस नहीं बना उल्टा रिचा पर रैश ड्राइविंग का इल्जाम लगा। घर वालों का भी यही कहना था कि उन्हें गलियों से जाना चाहिए था ना कि मेन रोड से क्योंकि वहां ट्रैफिक होता है। उस घटना के बाद रिचा शांत हो गई थी। उसे बार-बार कुमुद की वही बातें याद आती थी की यह देश हमारे लिए सुरक्षित नहीं है। उसने ठान लिया था की अब उसे आईपीएस बनना है और अपने इलाके को, अपने देश को लड़कियों के लिए और सभी के लिए सुरक्षित जगह बनानी है ताकि कोई सिर्फ इस डर से देश छोड़ने की बात ना करें। कभी कभी रिचा सोचती थी काश कि सच कुमुद पहले ही चली गई होती देश छोड़कर तो उसे छोड़कर ना गई होती। रिचा ने सोच लिया था सिस्टम में बदलाव लाने के लिए सिस्टम के अंदर घुसना पड़ेगा बाहर से कोई उसकी आवाज नहीं सुनेगा क्योंकि सब बहरे होते हैं। बस इसीलिए रिचा दिन रात मेहनत करती रही, पढ़ाई करती रही। अब वह ज्यादा किसी से बात भी नहीं करती थी। घरवालों ने भी हार मान ली थी। ठीक है जो करना है करो। यूपीएससी की परीक्षा के बाद जब वह पास हो गई तब भी सब लोगों ने उसे बहुत समझाया कि आईएएस ज्वाइन कर लो पर रिचा की ज़िद थी कि उसे आईपीएस ही बनना है। ट्रेनिंग के बाद जब उसने टॉप किया तो उसे स्वाॅर्ड ऑफ हॉनर मिलते ही उसकी आंखों में कुमुद का चेहरा तैर आया था "मेरी रिचा फिर कोई लड़की कुमुद की मौत ना मरे" 

रिचा जानती थी इव टीज जैसे छोटी सी बात पर कोई गौर नहीं करता था। जबकि यह देश में लड़कियों की होने वाली अधिकांश मौतों की वजह है। अपने करियर के शुरुआती दौर में ही रिचा ने साहसी फैसले लेने शुरू कर दिए थे। पिछली रात जब रिचा अपने बुलेट पर घर वापस जा रही थी तब एसयूवी में बैठे विधायक के पी ए के लड़के और उसके मनचले दोस्तों ने रिचा पर फब्तियां कसना शुरू कर दिया था। इसके पहले कि वह आगे कुछ और करते रिचा नहीं अपनी बुलेट उनकी गाड़ी के सामने लगाकर उन्हें बाहर उतार कर थप्पड़ जड़ दिए थे। जैसे ही उसके दोस्तों ने बदतमीजी करने की कोशिश की तो रिचा ने उन पर अपने पिस्तौल तान दी थी उसके बाद उठक बैठक भी कराई जिसे आसपास के गुजरने वाले कई लोगों ने अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिया था। रातो रात या वीडियो वायरल हो चुका था। उठक बैठक कराने के बाद जब रिचा ने देखा कि उस लड़के के पास ना तो ड्राइविंग लाइसेंस थे और ना ही गाड़ी के पेपर तो उसने उन सब को अरेस्ट कर लिया था। बस यही बात तब से सबको खटक रही थी कि भला एक लड़की को छेड़ना कौन सी बड़ी बात हो गई थी। पर रिचा जानती थी यह कोई छोटी बात नहीं थी। वह नहीं चाहती थी कि फिर कोई लड़की कुमुद की मौत मरे। हां वह हर जगह तो नहीं हो सकती पर जहां हो सकती है अपनी आंखों के सामने ऐसा कुछ भी नहीं होने देगी। यादों के धुंध से बाहर आकर रिचा अपने घर पहुंच चुकी थी अगली सुबह जब वह पुलिस स्टेशन पहुंची तो पहले से मीडिया वहीं खड़ी थी। 

" मैम आपने जिस आदमी को पकड़ा था वह तो एक ही रात में छूट गया, इस बारे में आपका क्या कहना है? क्या आप के ऊपर कोई प्रेशर था" 

हां रिचा को पता चला था कि उस आदमी की पहुंच इतने ऊपर तक थी और रिचा के लगाए इल्जाम बहुत छोटे पड़ रहे थे कि उसे हवालात में रखा जा सके। 

"देखिए! मैंने यह नौकरी इसलिए नहीं की थी ताकि मैं कोई सरकारी नौकरी लेकर आराम से जिंदगी गुजार सकूं। मैं चाहती तो आईएएस भी ले सकती थी पर मैंने आईपीएस चुना क्योंकि मुझे समाज से अपराध को बाहर करना था। मुझे मालूम है मैं जो करना चाहती हूं वह इतना आसान नहीं है। मुझे कई कठिन फैसले लेने होंगे और हां सिस्टम रातों-रात नहीं बदलेगा। हमें कई नए कानून बनाने होंगे, कानून का कड़ाई से पालन करना होगा पर इसके लिए सबसे जरूरी है आप सब का भी बदलना। आप सब यानी हम सब को अपने आसपास ध्यान देना होगा कि लड़कियों के साथ छेड़खानी जैसी घटना को छोटी घटना ना समझा जाए। यह दिखने में छोटी होती है पर इसके कुपरिणाम होते हैं। मां बाप अपने बच्चों को समान प्यार दुलार से ही पालते हैं और किसी का कोई हक नहीं बनता कि किसी लड़की की जिंदगी यूं ही छीन ली जाए। हर किसी को इस समाज में इज्जत के साथ जीने का हक है। अगर समाज का आधा युवा वर्ग इस देश में सुरक्षित महसूस नहीं करता है तो क्या यह चिंता का विषय नहीं है क्या? मैं अपनी तरफ से कोशिश में लगी रहूंगी और उम्मीद करती हूं कि आप सब का साथ भी मिलेगा " कहकर रिचा अंदर चली गई। 

उसका शौर्य उसके चेहरे पर तेज बनकर चमक रहा था हां यह सिर्फ एक शुरुआत है वह हार नहीं मानेगी।



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