मोहरे
मोहरे


बिसात पर बिछे सारे मोहरे जिनमे कुछ सफेदपोश तो कुछ काली अंधेरी गलियों से, आपस में आने वाली आफत की चर्चा करते हुए बोले
" सुना है, मालिक खेल खत्म कर रहा है.. अब आगे की क्या.. कहाँ जाएंगे, क्या करेंगे ?"
"हा हा हा! मुझे तो कोई आफत नहीं सता सकती है और भाग दौड़ तो तुम सब के नसीब का हिस्सा है, मैं तो राज करता हूं...तुम सब की जिंदगियों से मेरा खेल चलेगा.. इस बिसात पर खेल मुझसे ही है!"
इतनी देर में मालिक ने बिसात झटक कर सारे मोहरे उठा एक बंद डब्बे में डाल दिए जहां से अब कोई बाहर नहीं आ सकता है। खेल खत्म हुआ और लुढ़का हुआ ताज भी जान चुका था की मालिक की नजर में सारे मोहरे एक समान हैं।