तुम जो मिले:-11
तुम जो मिले:-11
राजवीर अबतक अपने उस पीछे बाले सीट पर जाके बैठ चुका था। आज सभी लड़कियां मुड़ मुड़ कर बस उसे ही देख रहे थे और सिर्फ उसके बारे में ही बात कर रहे थे। कितनी सारी तो उसे अपने सपनों की राजकुमार मान रही थे। इसी बीच एक सृस्टि भी थी जो कोई न कोई बहाना बना कर पीछे मुड़ती और उसे कुछ पल अपने आंखों में भर लेती। लेकिन वो खामोश थी क्यों कि ये सब क्या है क्यों हो रहा है उसे खुद भी नही पता था। वो तो इसीलिए भी परेशान थी किये सब कुछ जान बूझ कर नहीं बल्कि बक्त के साथ साथ बस होते ही जा रहा था। सृस्टि आंखे बंद भी करती तो राज का वो मुस्कान, वो बाते, उसके आंखे सब सामने आ रहे थे। वो खुद को पूछ ली _ "क्या यही प्यार है?"
राजवीर का उसी क्लास में एक और भी दोस्त था _ आयुष। आयुष राजवीर का बचपन का दोस्त। आयुष को राजवीर के बारे में सब कुछ पता है। इसीलिए सभी लड़कियों का बस उसे ही देखना, उसके बारे में बाते करना ये सब आयुष को नया नहीं लग रहा था। अक्सर ऐसा ही होता है। पर आयुष के अलावा और लड़के जो उसीके क्लास में थे सब उससे जलने लगे। आयुष राजवीर के पास आया और बोला, “अब यहाँ क्या जादू चला दिया भाई!” राजवीर क्या ही बोलता _ सर्म से मुस्कुरा दिया बस।
सृस्टि चाँद को देखते देखते सोच री थी। कुछ ही देर में नींद उसके आंखे को छूने लगे और वो सो गई।