तुम जो मिले:-9
तुम जो मिले:-9
Part:-9(सृस्टि की मासूमियत)
सृस्टि नीचे रागिनी के पास आई और चुपचाप किचन में घुस गई। फटाफट से मैगी(maggie) बनाई और रागिनी के पास आई। “सॉरी, मम्मी।”, सृस्टि रागिनी के पास के बोलती है। रागिनी चौक कर बोलती, “ये सब क्या है बेटा, मुझे बोलते ना में बना लेती।” सृस्टि बोली, “हैं हमेशा आप ही बनते हो, पर आज में बनाली। इसमे गलत क्या है, पर आप को test करके बताना होगा केस बना है? वेसे में बहुत तंग करती हूं ना आप को।” रागिनी को सृस्टि की बात बड़े ही मासूम लगे वो बोली, “मेने कब कहा तुम तांग करती हो।” सृस्टि बीचमे ही टोकते हुए बच्चों की तरह छिलने लगी, “अब छोड़िये भी, भूख लग है एंड में सोच रही हूं खुसबू काफी ज्यादा अच्छा है हम्म्म्म।” सृस्टि की ओसे बातो से रागिनी भी हस पड़ी और खाना खाने लग गए।
खाना खाना के बाद सृस्टि अपने कमरे में चली आयी। अपने कमरे में बैठ के सोचने लगी _ आज फिर से मम्मी(रागिनी) के सामने वही पुरानी बाली जिद को दोहरा कर जितना खुसी मिला शायद उतना खुसी वो कभी राजवीर से नहीं पाया। अपने माँ के सामने वो एक आजाद चिड़िया थी और रागिनी एक पेड़। चिड़िया कही भी जाये पेड़ के पास लौट ही आती थी। क्या राज को प्यार करना एक पिंजरे से कम नहीं था जो आजाद चिड़िया को बंदी बना लिया था। वो पेड़ से भी दूर हो गयी थी क्या?
उसके आंखें टेबल पे पड़े उस खुली डायरी पर गयी; जो हवा की झोक से अपने पाने पलट रहे थे। फिर वो डायरी को अध खुली करके एक पृष्ठ पे के रुक गया। जैसे कि वो पृष्ठ कुछ कहना चाहता हो। वो पृष्ठ के ऊपर लिखा था :- ‛4th जुलाई’