टू नादिया-प्रेमकथा विनीत सुनीता की
टू नादिया-प्रेमकथा विनीत सुनीता की
पति-पत्नी संबंध एक विशिष्ट प्रकार का प्रेम संबंध है जो बाकी संबंधों से अलग प्रकृति का होने के कारण अद्वितीय है। पति-पत्नी संबंध दो आत्माओं के एकीकरण संबंध है। इसमें दोनों व्यक्ति अपने को व्यक्तिगत हितों को त्यागकर पारस्परिक स्नेह और प्रेम से एक दूसरे के प्रति समर्पित हो जाते हैं।
"टू नादिया" काव्या शर्मा द्वारा सृजित एक ऐसी कहानी है जिसमें एक पति अपनी पत्नी को पागलपन की हद तक प्यार करता है। नादिया और दुर्जो की कहानी अजीब भावनाओं को प्रदर्शित करती कहानी है। विविध प्रकार के साहित्य में अनेकानेक प्रकार की सामाजिक परिस्थितियों के प्रभाव से अनेक प्रकार की कहानी सुनने-देखने को मिलती हैं।
जीवन में युवाओं के प्रेम प्रसंगों को प्रकट करने के विविध रूप देखने को मिलते हैं। स्कूल- कालेजों या पारिवारिक, सामाजिक उत्सवों में प्रेमी-प्रेमिकाओं के मिलन और उसके पश्चात अपने प्रेम को प्रकट करने के लिए विविध माध्यमों का प्रयोग किया जाता है।जीवन के ये अविस्मरणीय पर होते हैं।इनका किसी के जीवन में बड़ा ही महत्त्व होता है।
आज विवेक ने अपने मामा-मामी विनीत और सुनीता के कालेज के समय की मुलाकातों,प्रेम पत्रों के आदान-प्रदान और कालेज के बाद पत्र व्यवहार के सिलसिले को अनवरत जारी रखने के उनके तरीकों के बारे में जानकारी हासिल करने की जिद पर अड़ा था। बार-बार आग्रह कर रहा था। विनीत की ओर उम्मीद न आती देख विवेक ने सुनीता से कहा-"बताइए न, मामीजी।आपको मेरी कसम।अब तो आपको बताना ही पड़ेगा।"
"कसम खिला दी है तो अब बताना ही पड़ेगा।"- सुनीता ने विनीत की ओर मुस्कुराते हुए देखा और विनीत की किसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किए बिना बताना प्रारंभ किया।
" कालेज के समय में हम एक दूसरे की किताब या नोट बुक क्लास रूम या लाइब्रेरी में पढ़ने के लिए लेते थे और वापस करने से पहले पत्र उसी में रख देते थे।कभी -कभी किसी विषय के ये नोट्स हैं ऐसा बहाना बनाकर भी हम अपने पत्र सभी के सामने ही दे देते थे।"
विनीत ने कहा-" पहली बार भांडा भी तो तभी फूटा जब राहुल ने मेरे हाथ से तुम्हारे हाथ में पहुंचने से पहले बीच में झपट लिए थे।"
"फिर तो आपको अपने साथियों का मुंह बंद रखने के उन्हें पार्टी देनी पड़ी होगी"- शरारत मिली हंसी के साथ विवेक बोला।
"हां बाबा, लगता है तुम्हें तो पूरे मनोविज्ञान की समझ है लेकिन इसके बाद हमारे कुछ साथी पत्रों के आदान-प्रदान में हमारे मददगार बन गए थे।"
विवेक ने पूछा-" पोस्ट आफिस के माध्यम जब आप एक दूसरे को पत्र लिखते थे तो घर वालों को कैसै पता नहीं लगता था कि यह प्रेम पत्र हैं।"
सुनीता विवेक का गाल खींचते हुए बोली-"बदमाश कहीं के।कसम दिलाकर सारे रहस्य उगलवा रहे हो। इसमें बस पत्र भेजने का नाम बदलना होता था।मेरे घर पर भेजे गए पत्रों को भेजने वाली का नाम विनीता लिखा जाता था।पत्र पहुंचते ही मम्मी पत्र मेरे हाथ में देते हुए कहतीं तेरी सहेली विनीता का पत्र आया है। ऐसे ही मामाजी के घर पर पोस्टमैन कहता । विनीत बाबू तुम्हारे लिए सुनील का पत्र आया है।"
विवेक ने पूछा-"जिन साथियों को पार्टी दी थी उन्होंने ने बाद में आपकी मदद कैसे की?"
विनीत बोला-"हमारे मित्रों ने हम लोगों से लगातार संपर्क बनाए रखा था। उन्होंने ही तो हमारे घरों में संपर्क स्थापित करके हमारे माता-पिता को शादी के लिए तैयार किया था।"
सुनीता ने विवेक से कहा-"अगर तुम्हारी कहानी में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो तो हमें बताना हम दोनों परिवारों से चर्चा करके शादी करने में तुम्हारी मदद करेंगे।तुम चिंता मत करना।"
विवेक बोला-" चिंता मैं क्यों करूं!जब आप सदा ही हर मामले में हमारी चिंता स्वयं आप दोनों करते ही हैं।"
ऐसा कहते हुए विवेक उछलता-कूदता कमरे के बाहर भाग गया।अपना प्यारा अतीत याद करते हुए विनीत -सुनीता एक दूसरे को देखकर पहले मंद-मंद मुस्कुराए जो बड़े जोर की हंसी में बदल गई।