ठिठका वक्त बचपन का

ठिठका वक्त बचपन का

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आज कस्बे के उच्चतर माध्यमिक शाला में एक अनूठा आयोजन है। इंटरनेट के इस जमाने में जब दुनिया वाकई एक ग्लोब में समाने लायक हो गई है.... तब कुछ कस्बे के साथियों का फेसबुक के माध्यम से पुनः परिचय हो गया। एक मुहिम सी छेड़कर करीब 150 विद्यार्थी उम्र के पचास दशक बाद एक दूसरे से जुड़ ही गए।

एक सिलसिला चला....सभी स्कूल के बाद के जीवन को एक-दूसरे से फेसबुक और व्हाटस्प के माध्यम से बाँटने

लगे। गुजरते समय के साथ मिलने की इच्छा बलवती होती गई। स्कूल के वर्तमान स्टाफ से बात किया गया...

वे भी अति उत्साहित हो गए अपने भूतपूर्व विद्यार्थीओं के स्वागत के लिए और आज वह घड़ी आ ही गई है जब

सभी अपने प्यारे से स्कूल के सभागार परिसर में मिलने वाले हैं। बिखरे पंछी पुराने नीड़ में लौट रहे हैं....कुछ पल साथ जीने के लिए ......

सुबोध का बचपन ठिठका है शाला के गेट पर, उस गुजरे वक्त की घड़ी के साथ जब एक परिंदे सा मन था....उड़ने की तमन्ना थी.... अपने कदमों के निशान धरती पर छोड़ने की चाहत थी.....पर वाह रे मन....जब उड़ लिए ....पैर जमा लिए .....तब पचपन की उमर कह रही कि आ फिर-फिर से वहीं ....जहाँ से चला था.....वहीं लौट आ.....

और वाकई लौट आया है वह बचपन जो वक्त की नहीं मानते हुए वहीं ठिठका हुआ था.....!!

सामने वह शाला की वही इमारत है जो समय के साथ जर्जर हो रही है....पर हर साल उन्हीं जैसों परिंदों को उड़ने के काबिल बनकर तैयार कर देती है कि जाओ.....

अब तुम्हारी बारी है......छाप दो तुम भी अपने कदमों के निशान ....जहाँ चाहो वहां ....!!


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