Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational Children

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational Children

तस्वीर में भी सुरक्षित नहीं (3)

तस्वीर में भी सुरक्षित नहीं (3)

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मैंने (और शायद मेरे पापा ने भी) वहाँ 2 युवतियों को घरेलू/रसोई के कार्य में व्यस्त देखा था। दो बंद कमरों से आ रही आवाजों से अनुमान हुआ था कि उनमें, कुछ स्त्री-पुरुष, और थे। 

आंटी (उस औरत) ने, एक युवती को संबोधित करते हुए कहा था - कला, हमारे ये अतिथि, अन्य से अलग तरह के हैं। घर में सभी से कह दो, इनके होते तक घर में शालीनता एवं शिष्टाचार का ध्यान रहे। साथ ही, इनके यहाँ रहते तक, घर में नये ग्राहक नहीं लिए जायें। 

फिर आंटी ने पापा से मुखातिब हो पूछा था - कहिये साहेब, मुझ से किस तरह की बात, इस बिटिया की जिज्ञासाओं के लिए उचित रहेंगी। 

पापा ने उनसे कहा - संक्षिप्त शब्दों में आप, अपनी और यहाँ के अन्य सदस्यों की, यहाँ तक पहुँचने की कहानी एवं यहाँ किये जाने वाले काम का विवरण बताइये। आपसे प्रार्थना है कि मेरी बेटी की, वय एवं समझ को ध्यान में रख, आप शिष्ट एवं सरल शब्दों का ही प्रयोग करें। 

आंटी ने थोड़ा विचार किया फिर कहना आरंभ किया - 

मैं, करिश्मा, इस घर की प्रमुख हूँ। लगभग 25 वर्ष पूर्व दरभंगा से मैं, यहाँ धोखे से लाई गई थी। तब मैं 17 वर्ष की थी। वहाँ, एक लड़के से मुझे प्यार हुआ था। तब वह, मुझे हीरोइन जैसी सुंदर बताया करता था। मुझ में समझदारी नहीं थी। प्रशंसा के पीछे छिपे उसके कुत्सित मंतव्य, मैं समझ नहीं पाई थी। 

उसने शादी करने के वादे करके मुझे, अपने साथ संबंध बनाने को उकसाया था। मुझे सिनेमा में काम करने मिलेगा यह झूठा भरोसा दिलाया था। मैं, उसकी बातों में फंसकर उसके साथ मुंबई जाने के लिए घर से भाग निकली थी। वह धोखेबाज था, उसने मुझे यहाँ लाकर बेच दिया था। 

यह स्थान कोठा कहा जाता है। यहाँ औरतें, देह व्यापार से, अपनी आजीविका चलाती हैं। मुझे जिस कोठे मालकिन ने खरीदा था, वह 2 साल पहले मर चुकी है। तब से मैं यहाँ की मालकिन हुई हूँ। यहाँ, चार और लड़कियाँ हैं। दो को, आप दोनों देख पा रहे हैं। दो, अपने ग्राहकों के साथ कमरे में हैं। 

पापा ने पूछा - क्या ये लड़कियाँ, आपकी हैं?

आंटी ने बताया - नहीं, सामान्यतः कोठे में रहते हुए, हम अपनी औलाद नहीं करते हैं। इन लड़कियाँ में से दो नेपाल, एक बँगला देश से खरीद एवं तस्करी कर यहाँ लाई गईं हैं। 

फिर रसोई में दिखाई दे रही लड़की के तरफ इशारा करते हुए हमें आगे बताया - इसका नाम, कला है। मुझे मिले जैसे एक धोखेबाज ने, इसको, इसके गाँव से भगा लाया था। यहाँ लाकर बेच गया था। ये सभी लड़कियाँ, उन्हें लाने वालों को कीमत देकर खरीदीं गईं हैं। 

पापा ने पूछा - जब आप खुद भुक्तभोगी रहीं हैं, तब इनसे आप, ऐसा अशोभनीय पेशा क्यों कराती हैं?

आंटी ने लंबी श्वास के साथ व्यथा प्रदर्शित करते हुए कहा -

साहेब, हम जैसी दुर्भाग्यशाली स्त्रियों के पास इसके अतिरिक्त कोई जीवन विकल्प नहीं रह जाता है। कला को, यदि उसके परिवार वालों के पास, वापिस पहुँचाया जाए तो वे ही, इसे मार डालेंगे। कला की हत्या में ही, इसके परिवार वालों को अपनी गौरव रक्षा दिखाई देगी। 

फिर आंटी ने आवाज देकर, कला को हमारे सामने बुलाया था। उसे अपनी आपबीती, हमें सुनाने को कहा था। यद्यपि कला का लाज-शर्म बोध यहाँ आने के बाद बाकी नहीं रह गया होगा। मगर हमारे सामने आकर, अपने पर बीती बताने में उसे लज्जा आई थी। सकुचाते हुए उसने बताया - 

तब मैं, दसवीं कक्षा में पढ़ती थी। एक दिन हमारे मास्टर ने, अपने मोबाइल से, मेरी फोटो ली थी। उसके अगले दिन उसने मुझे अकेले में बुलाकर, मुझे एक वीडियो दिखाया था। उस वीडियो में, मेरी ली गई फोटो को प्रयोग करके, नकली बनाया गया, एक अश्लील वीडियो मुझे दिखाया था। उस वीडियो को देखने से यह भ्रम होता था कि जैसे, उसमें बुरा काम मैं ही कर रही हूँ। फिर वह, मेरे साथ ज़बरदस्ती करने लगा था। मैंने आपत्ति की थी तो उसने धमकाया कि वह इस वीडियो को सबको दिखा कर मुझे गाँव में बदनाम कर देगा। 

गाँव में अपनी बदनामी से ज्यादा मुझ पर, अपने भाइयों के खूंखार होने का भय था। जो दूसरों की लड़कियों से, अपनी हवस की पूर्ति के जुगत में तो रहते थे मगर अपनी मुझ बहन के, ऐसे शोषण के शिकार होने की जानकारी होने पर, मुझे तथा मास्टर की जान ही ले लेते।  

मैं डर गई थी। मास्टर ने मुझ पर, मेरी 15 साल की छोटी उम्र में ही, अपनी ज़बरदस्ती कर डाली थी। मेरा भयादोहन वह और कई दिनों तक करता रहा था। फिर एक दिन उसने कहा कि तू, मेरे शहर चल मैं, अपने घरवालों के सामने, तुमसे शादी करूँगा। 

उससे किसी तरह की मनाही का मुझ में साहस नहीं रह गया था। तब उसके ही कहने पर, शादी के लिए, मैंने अपने घर से जेवरात चुराये थे। वह, झाँसे से मुझे, यहाँ दिल्ली ले आया। उसने मुझे कई दिनों तक विभिन्न होटलों में कई लोगों के साथ सोने को मजबूर किया। अंत में मेरे जेवरात हड़प कर वह, मुझे यहाँ आंटी के पास बेच गया। मेरा वास्तविक नाम कला नहीं है। 

हमारी कौम लड़की मामले में अत्यंत खतरनाक होती है (कहते हुए कला की बड़ी आकर्षक आँखों में अश्रु छलक आये थे, रुआँसे स्वर में आगे कहा था)। मैं, अपना यह कालिख पुता चेहरा लेकर, उनके सामने जाऊँ तो वे मुझे मार डालेंगे। अब जीने के लिए, अपनी इस हालत से समझौता ही, मेरे पास एकमात्र विकल्प है। 

यह सब बता कर, कला चुप हो गई थी। आंटी ने उसकी पीठ पर थपकी देकर, उसे रसोई के काम में वापिस भेज दिया था। उसके जाने के बाद, आंटी से पापा ने पूछा - आप, अपनी कमाई एवं ग्राहक के बारे में कुछ बता सकती हैं?

आंटी ने उत्तर में बताया - प्रत्येक लड़कियाँ हर दिन 4 से 8 ग्राहकों के जरिये, लगभग तीस हजार रूपये महीने कमा लेती हैं। ऐसे कमाये सवा लाख रूपये में से, दलाली एवं रिश्वत के, देने के बाद, 80-90 हजार महीने की, शुद्ध कमाई हो जाती है। 

हमारे ग्राहक, अधिकतर दिल्ली में काम करने आये बाहर गाँव के, सिंगल तथा दिल्ली के ही अनब्याहे रह गए मर्द होते हैं। अपवाद में कुछ अन्य तरह के लोग भी, यहाँ आते हैं। इन लोगों की काम क्षुधा यहाँ आने से शांत होती है।

पापा ने तब कहा - जी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया। मेरी बेटी को, ये ही बातें मैं, घर पर बता सकता था, मगर जो मैं, समझाना चाहता हूँ वह, इसे, यहाँ के सोचनीय दृश्य दिखा देने के बाद, प्रभावी रूप से सरलता से, समझ आएगा। 

फिर पापा ने कुछ रुपये आंटी को देने चाहे थे। जिसे उन्होंने विनम्रता से लेने से मना कर दिया था। उन ने मेरी ओर देखते हुए उन्होंने कहा था - 

बेटी, तुम बहुत भाग्यवान हो। काश! मुझे भी तुम्हारे जैसे, अपने बच्चे का हित समझ सकने वाले पापा मिले होते तो मैं, जीवन में इस निकृष्टता के, यूँ दर्शन करने को विवश नहीं होती। 

काश! मुझे और कला जैसी अन्य अल्पवयस्क लड़कियाँ को सुलझी सोच रखने वाले परिवार मिलते। 

काश! हम अपने पिता से, अपने संकोच त्याग कर, बुरे लोगों के बहकावे वाली बातें बता सकतीं।

काश! हमारे बड़े-बुजुर्ग, बच्चों के संशय, धैर्य से सुनने वाले होते तो, हम जैसी लड़कियाँ, झाँसों में फंसकर कभी इस नर्क में ना पहुँचतीं।  

तब पापा ने हाथ जोड़कर उनसे विदा ली थी। घर लौटते हुए पापा चुप थे। मैं भी अप्रत्याशित रूप से बीते समय के, सदमे से बोलने की हालत में नहीं थी। जो कुछ समझ सकी थी उससे यही लग रहा था कि पालकों/अभिभावकों की चूक उनकी बेटियों को किस नारकीय जीवन को विवश कर सकती है। 

घर पहुँच कर, हमने स्नान किया था। भोजन के उपरांत, मम्मी ने पापा से पूछा था - आप, एक बेटी को घर में छोड़, अकेले इसे कहाँ घुमाने ले गए थे?

पापा तब चुप रहे थे। फिर जब मेरी, मुझसे चार वर्ष छोटी बहन, दादी के साथ उनके कमरे में गई थी तब, पापा ने मम्मी को सारी बात बताई थी। 

मम्मी ने सुनकर, नाराजी से कहा था - यह कैसा विचित्र काम किया आपने, बेटी पर इसके दुष्प्रभाव की कल्पना है, आपको? वहाँ के ख़राब लोग यदि आप और इसे, नुकसान पहुँचा देते तो क्या होता?

पापा ने कहा - नियति, तुम नाराज़ मत होओ। मेरी एवं बेटी की योग्यता पर विश्वास करो। बेटी को ऐसी जानकारियों का, मेरे सामने मिलना, भविष्य में उसकी भलाई का कारण ही बनेगा। 

दुनिया में हो रही खराबियों से, हम आँख मींच लेने से नहीं बच सकते। हमें और हमारी बड़ी हो रही बेटी को, आँख एवं कान खुले रखकर चलना होगा। तभी हम निकृष्ट बातों से, इन्हें बचा सकेंगे एवं इनके श्रेष्ठ जीवन की बुनियाद दे सकेंगे। 

मैंने पापा का समर्थन करते हुए कहा - हाँ मम्मी, पापा का तरीका विचित्र एवं एक अपवाद तो है मगर कारगर तरह से संदेशपरक है। 

यह सुनकर मम्मी, का गुस्सा कुछ शांत हुआ लगा था। 

उस रात मैं अपने कक्ष में, बिस्तर पर लेट कर उस बात का स्मरण कर रही थी जो आंटी ने, अंत में मुझसे कहा था। मैं, अपने पापा के लिए गर्व अनुभव करते हुए सो गई थी।      

(क्रमशः)



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