तर्पण
तर्पण


कल से पितरों के श्राद्ध करने है बेटा , तुम्हे भी अपने स्वर्ग वासी पिता को रोज जल देना होगा " नंदिता ने अपने बेटे रोहन से कहा।
"अच्छा माँ क्या करना होगा मुझे ,बताइये ।"
नंदिता -"बेटा रोज सुबह नहाकर गीले कपड़ों में ही पितरों को जल अर्पित करना है, इसे तर्पण कहते हैं ।"
"ठीक है माँ , मैं अभी आता हूँ ।" -कह रोहन कहीं बाहर चला गया ,वापिस आया तो उसके हाथों में कुछ नीम , पीपल ,आंवला , नींबू आदि के पौधे थे ।
"अरे ये क्यूँ लाया बेटा । " -माँ ने पूछा ।
"माँ कल से मुझे जल अर्पित करना है अपने पितरों को ,मैंने सोचा है कि इन पौधों को आँगन में रोपित कर इनमें ही जल चढ़ाऊँ मैं और इनकी सही देखभाल करता रहूँ ताकि आगे जैसे जैसे ये बढ़ें फल ,फूल दें ,औरइनकी जड़ें हमारे आँगन में मजबूती से पैठ जाएं , इस तरह हमारा अपने पितरों को आत्मिक तर्पण हो और उनसे हमारा जुड़ाव बढ़ जाये तथा वे हमारे मन प्राण में रचे बसे रहें ।"
"हाँ बेटा यही सही तर्पण होगा उन्हें तुम्हारा ।" नंदिता की आँखें बेटे की समझदारी पर छलक उठीं ।