तोते की आत्म कहानी (बाल कथा )
तोते की आत्म कहानी (बाल कथा )


एक शहर में एक धनवान जमींदार तारासिंह रहते थे। उनके पास रूपयों की कमी नहीं थी। शानदार कोठी में केवल तारा सिंह,उनकी पत्नी मनोहारी और उनकी प्रिय पुत्री मुन्नी तथा नौकर ही रहते थे।
एक दिन तारा सिंह को तेज़ बुखार चढ़ गया। शहर के प्रसिद्ध डाक्टर श्री महेश्वर सहाय जी आये और तारा सिंह को दवाएं देकर जाने लगे थे कि उन्होंने तारासिंह की स्त्री को देखा और उस पर मुग्ध हो गए। फिर रोज़ रोज़ डाक्टर एवं मनोहारी की फोन पर बातें चलती रहीं।
मनोहारी ने डाक्टर महेश्वर सहाय से कहा कि आप तारासिंह को ज़हर दे दें। इससे हम लोगों के रास्ते का काँटा दूर हो जाएगा। डाक्टर साहब ने वैसा ही किया। धीरे धीरे तारा सिंह की तबियत और बिगड़ती गई।
तारासिंह ने एक तोता कई साल से पाल रखा था जिसका नाम था मानुष। वह तोता मानुष इतने दिनों में खूब बोलने लगा था। तोते को घर में सबसे ज्यादा प्यार दुलार भी तारा सिंह ही देते थे।
जिस कमरे में मनोहारी और डाक्टर साहब की बातें होती थीं ,वह तोता भी उसी कमरे में पिंजरे में रहकर सारी बातें सुना करता था। उन लोगों के चले जाने के बाद वह उनकी बातें दुहराने लगता था। अब वह चाहता था कि वह किसी तरह अपने स्वामी को यह बात बता दे।
एक दिन जब मनोहारी घर में नहीं थी वह तोता जाने क्यों चीख चीख कर मुन्नी को बुलाने लगा। मुन्नी भागी भागी उसके पिंजरे के पास पहुंची तो बोलने लगा बाबूजी बाबूजी ..|मुन्नी समझ गई कि उसे बाबूजी के पास जाना है। जब वह उसे बाबूजी के पास ले गई तो तारासिंह ने बड़े दुलार से उसे अपने पास बिठाया। तोता बोलने लगा - " बाबू जी बाबू जी ..आपको ज़हर ..बाबूजी बाबू जी डाक्टर .. '' यह सुनकर तारा सिंह के होश उड़ गए। उन्होंने पहले से ही अपनी बीमारी के लम्बे खींचने पर शक जाहिर किया था और बार बार घर में डाक्टर का आना जाना भी समझ में नहीं आ रहा था।
तारासिंह ने धैर्य से काम लिया। उन्होंने अपने एक गहरे मित्र को यह बात बताई और यह तय हुआ कि अब वे अपनी ठीक ना होने वाली इस बीमारी को देखते हुए अपने मित्र के साथ काशी जाकर जीवन का शेष दिन बिताने की बात परिजनों को बताकर काशी चले जायेंगे। तारासिंह ने उदास मन से अपनी पत्नी को कहा कि वे अपने अंतिम दिन में उसे काशी बुला लेंगे।
वे काशी चले गए।
काशी में उन्होंने जब नुस्खे के साथ बड़े डाक्टरों से विमर्श किया तो पता चला कि उन्हें जो दवाएं दी जा रही थीं वे क्रमशः उन्हें दुर्बल ,शरीर में ज़हर फैलाने वाली और मानसिक रूप से कमजोर कर रही थीं। तारासिंह की नए सिरे से चिकित्सा शुरू हुई और वे जल्दी ही स्वस्थ हो गए।
अब तारासिंह ने अपनी पत्नी और डाक्टर को सबक सिखाने का निर्णय लिया। उन्होंने एक दिन अपने मित्र के नाम से टेलीग्राम भेजकर उन दोनों को तुरंत काशी आने के लिए कहा। टेलीग्राम पाते ही मनोहारी और डाक्टर खुश हो उठे। वे समझे कि तारा सिंह का अंत निकट आ गया है। दूसरे ही दिन वे दोनों आ धमके। उन्होंने तारासिंह को भला चंगा पाया तो आश्चर्य में पड़ गए। मित्र ने उन्हें बैठाकर काशी के डाक्टर को घर बुला लिया। डाक्टर साहब अपने साथ पुलिस लेकर पहुंचे। पुराना नुस्खा दिखाते हुए जब डाक्टर महेश्वर सहाय का काशी के डाक्टर से आमना सामना हुआ तब सच सामने आ गया कि तारा सिंह को दवाओं के सहारे धीमा ज़हर दिया जा रहा था। मनोहारी के चेहरे पर भी हवाइयां उड़ने लगीं। पुलिस ने तारासिंह का बयान दर्ज किया और उनके मित्र की गवाही ली। दोनों हवालात ले जाए गए।
इस प्रकार वफादार तोते मानुष ने अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा करके यह साबित कर दिया कि पशु पक्षी भी सम्वेदनशील और वफादार होते हैं। हमें उनका सम्मान और उनकी जीवन रक्षा करनी चाहिए।