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sukesh mishra

Abstract

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sukesh mishra

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तनहा सफर

तनहा सफर

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मेरी यादें कब से बननी शरू हुई, इसका मुझे ठीक ठीक कुछ याद नहीं है. अतीत के गहरे महासागर में गोते लगाने पर हर बार कुछ् नया मिलता है.....पुराना कहीं छूट जाता है. किसी बार रेट,किसी बार कंकर पत्थर तो किसी बार महज कौड़ियां। ... और मोती? ... वो नहीं मिला अभी तक, या यूँ कह लें कि मेरी यादों की दुनिया में सिर्फ कंकर पत्थर और कौड़ियां ही हैं..लेकिन जो भी हैं उनकी भी अपनी एक कहानी है, जो अवयवस्थित होकर भी कही न कही व्यवस्थाबद्ध है, निःसार लगते हुए भी सरयुक्त है.... और किसी के लिए न सही पर मेरे लिए तो है.



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