Kunda Shamkuwar

Abstract Tragedy Others

3.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Tragedy Others

तन्हा चाँद

तन्हा चाँद

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आज आधी रात को बालकनी से झाँकते हुए ऐसे लग रहा है जैसे यह चाँद मुझसे कुछ कहना चाह रहा हो।

फिर लगा कि मेरे जैसे तन्हा और उदास इन्सान से चाँद क्यों कुछ कहना चाहेगा भला?

लेकिन फिर लगा कि रात को ढेर सारे सितारों की भीड़ में ये चाँद भी मेरे जैसा तन्हा है।

हम दोनों इतने दूर है लेकिन हमारी दुनिया की हकीकत एक जैसी है।हम दोनों ही अपनी अपनी दुनिया मे बिल्कुल उदास और तन्हा है।वहाँ सितारों की भीड़ में चाँद तन्हा है और लोगों की भीड़ में मैं यहाँ।

वहाँ आसमान में चाँद उदास और तन्हा होकर भी चमकता रहता है और मैं यहाँ भीड़ में अकेले होने के बावजूद मुस्कुराता रहता हूँ।


हमारी दोनों की नियति ऐसी ही है शायद।नियति का क्या करे?नियति से क्या कोई जीत सकता है भला?


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