तिल का पहाड़

तिल का पहाड़

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रमजान के पावन दिन चल रहे थे और इधर रक्षाबंधन का पावन पर्व भी था। तभी राधे कुछ पैसे लेकर राखी बंधवाने अपनी बहन कंचन के पास जा रहा होता है। तो रास्ते मे उसे एक लड़का दिखाई देता है जो कि एक हिन्दू लड़का होता है। ये लड़का प्यास के कारण मस्जिद का पानी पी लेता है और कुछ मुस्लिम उसे देखते है।आपसी बैर के कारण वो लोग उसे मार पीट कर भगा देते है। और बात आदल -बदल कर, हवा की तरह शहर में दौड़ने लगती है कि एक हिन्दू लड़के ने मस्जिद तोड़ दी, तो वहीं कुछ लोग कहते है कि कई मुस्लिमों ने हिंदू लड़के को काट दिया। और इस तरह से तिल का ताड़ बनकर तैयार हो जाता है। हालांकि ये कार्य कुछ हिन्दू मुस्लिम नेताओं द्वारा कुछ वोटों के लिये किया जाता है। लेकिन जो भी ये बात सुनता है वो ही उग्र हो जाता है। और कुछ ही घण्टों में स्थिति ऐसी उत्पन्न हो जाती की, अगर मुस्लिम को कोई हिंदू मिले वो उसे बेदर्दी से मार देते है और हिन्दू मुस्लिमों को। इस से तिल से ताड़ में बदला दंगा उग्र रूप लेता चला जाता है और दंगे में राधे भी फँस जाता है।

राधे एक पढ़ा लिखा विद्वान, साहसी,और हष्ट पुष्ट नौजवान होता है। वो दोनों धर्मो को समान रूप से मानता है। जैसे ही वो इधर उधर घूमता है कि मुसलमानों का एक टोला हाथ में पत्थर लिये उसे मारने को आता है लेकिन वो चतुराई से काम लेता है और भागते भागते अल्लाह हु अकबर का नारा लगा कर और तेज़ दौड़ने लगता है। वो वहाँ से दूसरी ओर भागता है। मुस्लिम समझते है कोई मुसलमान है, और वो भी उसके पीछे हो जाते है। तभी एक हिंदुओं का विशाल टोली हाथों में तलवार लिये सामने से आ जाती है और राधे दौड़कर टोली में घुस जाता है और कुछ चैन की सास लेता है। लेकिन तभी मुस्लिमों की एक और टोली आ जाती है और, चारों ओर सिर्फ त्राहि त्राहि मच जाता है। सभी हिन्दू तितिर बितिर हो जाते है। लेकिन राधे का क्या अद्भुत साहस ,बिजली सी फुर्ती वो झट से छत पर चढ़कर हिन्दू आबादी में घुस जाता है। लेकिन इस दंगे की आहुति में लाखों बच्चे बूढ़े जवान औरते चढ़ जाती है। सारा शहर बंद होता है। चारों ओर सन्नटा पसरा होता है। घरों से करहाने की आवाजें आती है। बच्चे भूख से बिलखते है। बिल्कुल ऐसा दृश्य होता है कि शिव जी ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया हो। चारों ओर आग ही आग दिखती है। तभी सुबह एक मुस्लिम नेता आयूब खान शांति की बात करने हिंदुओं की ओर आता है। और चार पांच हिन्दू लड़कों के साथ राधे को शांति दूत बना ले चलता है।

जिधर से ये दल निकलता उधर दुकानें खुल जाती। बच्चे बूढ़े सभी इस शांति समझौते से खुश थे। लेकिन जैसे ही मोर्चा मुस्लिम बस्ती पहुँचता है आगे से अल्लाह हु अकबर बोलते हुये कई लोग नंगी तलवार लिये इन लोगो पर टूट पड़ते है। तभी राधे पीछे आयूब खान की ओर देखता है लेकिन वो भी इस षडयंत्र में शामिल होता है। ये देख कर राधे का इंसानियत पे से विश्वास सा हट जाता है ,वो जान बचा कर भागने लगता है। जिसने कल दंगे में पत्थर भी न उठाया था, वो तलवार लिये आज कई सिर काट चुका था। वो भागते भागते एक घर मे घुस गया। वहाँ एक बूढ़ी काकी बैठी थी। उन्होंने राधे को छिपा लिया । जब लोगो ने पूछा तो उन्होंने मना कर दिया।और बताया की, वो चौराहे की ओर गया है। ये सब देखकर राधे को अहसास हुआ। सब लोग एक जैसे नहीं होते है। तभी राधे काकी से पूछता है कि" काकी आपने मुझे क्यो बचाया" तो वो कहती है कि "बेटा चाहे हिन्दू मारे या मुसलमान खोने तो माओ को अपने बेटे ही पड़ते है" और इसके बाद में खान काकी उसे छत से पीछे पार्क की ओर भेज देती है। तभी उसे तीन चार लोग और मिल जाते है। जो इस दंगे में फँसे हुये थे।

नेताजी के फरेब के शिकार थे। वो लोग छत कूद कर नेहरू पार्क तक पहुँच गये। जहाँ चारों ओर मुर्दा शांति थी, पक्षी भी इस भीषण नरसंहार को देखकर मौन थे, सिर्फ कुत्ते भौंक रहे थे। वो लोग जानते थे कि पार्क तीन ओर से मुस्लिम बस्ती से घिरा है और एक तरफ हिन्दू बस्ती है। वो वहाँ पर बैठकर किसी हरकत को देखना चाहते थे, लेकिन राधे को दंगे से बाहर निकलने की जल्दी थी। इसलिए उनके मना करने पर भी वो पार्क में घुस गया। वो थोड़ा ही आगे बड़ा था कि उसे सामने से कई लोगो की टोपी पहने भीड़ दिखाई । वो कुछ सोच पाता इससे पहले वो तीन तरफ से घिर गया। राधे ने डंडा उठाया और वो उन्हें घायल करता हुआ गेट की ओर बढ़ा। और कामयाब भी हो गया। जब वो हिन्दू बस्ती में पहुँचा तो उसने राहत की सास ली। लेकिन तभी उसने देखा कि चार लोग एक मुस्लिम औरत को पकड़े खड़े है। वो लोग उसके साथ ऐसा कृत्य करना चाहते थे , जिसने द्रोपदी के रूप में कौरवों को निर्भया के रूप में सारी दिल्ली को शर्मसार कर दिया था। सारी मानव जाति को कलंकित किया था। ये देख राधे ने उसी डंडे से प्रहार किया और एक को मार दिया। जिसे देख वो तीन लोग भाग गये, इस प्रकार के कृत्य को कर राधे तथाकथित हिंदुओं की नजर में हिदू विरोधी तो हो गया। लेकिन नदियों को माँ कहने वाली परम्परा में ज़रूर शामिल हो गया और इस तरह से वो धरती को भी कलंकित होने से बचाने में सफल रहा। वो लड़की कोई और नहीं अयूब खा की बहन थी। राधे उसे लेकर पार्क में पहुँचाता है तो मुस्लिम समुदाय के लोग उसे घेर लेते है और नेहरू पार्क में नेहरू जी के इस स्वेत कबूतर का कत्ल कर देते है।

इस तरह से जब राधे एक औरत की इज़्ज़त बचाने में शहीद हो जाता है तो एक आंदोलन का जन्म होता है । ये आंदोलन था औरतों का अपने भाई राधे के लिये। हिन्दू और मुस्लिम औरतों ने अपने हाथ मे हथियार उठा लिये, और तिल का पहाड़ बनाने वाले लोगों के खिलाफ हल्ला बोल दिया। ये देख दंगा तो शान्त हो गया लेकिन राधे जैसे अनेक वीर जो अनेकता में एकता की बात करते थे। उनकी मौत का कारण बना। जाने कितनी माओ की गोद सुनी हो गई।जाने कितने परिवारों की रोटियां चली गई।जाने कितनी मांगो का सिंदूर उजड़ गया।भाई से बहन और बहन से भाई बिछड़ गये।वो भी लोग न बचे जिन्होंने इस तिल को ताड़ में परिवर्तित कर दिया था । ये भीषण नरसंहार सिर्फ इसलिए हुआ कि एक हिन्दू ने मस्जिद का पानी पी लिया। और उन्होंने उसकी मार पीट कर दी। लेकिन ये भी सरासर गलत किया। क्योंकि प्रकृति कभी भेद नहीं करती और पानी प्रकृति का हिस्सा होता है। लेकिन ये बात इतनी भी नहीं थी कि लाखों लोग इस जरा सी बात के लिए स्वाहा हो गये।ये सिर्फ उन लोगो के कारण हुआ जिन्होंने वोटों की ख़ातिर तिल का पहाड़ बनाया और एक साधारण सी आपराधिक घटना को दंगे में बदल दिया


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