तीन पत्ती
तीन पत्ती
दिवाली की रात, पूरा शहर जगमगा रहा था, सरकार की पाबन्दी के बावजूद भी रात दस बजे के बाद भी पटाखों का शोर बहरा किये दे रहा था। पटाखों से निकला कसैला धुआं वातावरण में छाया हुआ था।
पर इस से कसैला धुआं भरा था ट्रिलिओनेर कैसिनो में, जो बाहरी शहर में गैरकानूनी तरीके से चल रहा था। आज दीवाली की रात जुआरी और कैसिनो के दलाल वहां खचाखच भरे थे, वातावरण में सिगरेट का धुआं और शराब की गंध छायी हुई थी। सबसे ज्यादा भीड़ तीन पत्ती टेबल पर थी, जहाँ राजीव अपना करोड़ों रुपया, फैक्ट्री, शहर के तीनों मकान हार कर पसीने-पसीने हुआ बैठा था।
"राजीव भाई तू अब भी अपना ये सारा माल जीत सकता है, चल एक बाज़ी और लगा।" राजीव के बिज़नेस पार्टनर देव ने उसे समझाते हुए कहा।
"तेरे कहने से मैं यहाँ आ गया, पहले इन्होंने मुझे करोड़ों जिताये और फिर मेरा सब कुछ लूट लिया, कहाँ आ फंसा में तेरे कहने से।" राजीव शराब के नशे में बुदबुदाते हुए बोला।
"जुआ में ये सब चलता है कभी हार, कभी जीत, चल अब चले।" देव उसका हाथ पकड़ कर बोला।
"अब मेरे पास कुछ नहीं बचा, क्या मुंह लेकर घर जाऊँ?"
"देख मैं तेरा सारा क़र्ज़ उतार दूंगा, बस मेरी एक बात मान ले।" देव बोला।
"क्या कहना चाहता है तू?"
"सरिता की शादी मुझ से कर दे बीवी के मरने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया हूँ।" देव, राजीव की बेटी का नाम लेते हुए बोला।
"क्या बकवास कर रहा है तू, वो तेरी बेटी के जैसी है।"
"लेकिन वो मेरी बेटी नहीं है। तेरी मर्जी है, या तो मेरी बात मान ले नहीं तो कल तू और तेरा परिवार सड़क पर होगा।"
"अच्छा ये था तेरे दिल में, इस लिए तूने मुझे यहाँ लाकर लुटवा दिया।"
"लुटा तू खुद है। मैं तुझे जबरदस्ती यहाँ नहीं लाया था।"
"सुन हैवान, मैं खुद जहर खा लूंगा, अपने परिवार को जहर दे दूंगा लेकिन तेरे गंदे हाथ अपनी बेटी तक नहीं पहुंचने दूंगा।"
"जा, जो तेरा दिल करे कर, भलाई का तो जमाना ही नहीं है।" देव ने उसे कैसिनो से बाहर धक्का देते हुए कहा।
राजीव लड़खड़ाता हुआ कैसिनो से बाहर निकल गया।
दो मिनट बाद बन्दूक चलने की आवाज कैसिनो के बाहर गूंज उठी और कोई चिल्लाया, "अरे देखो हारे हुए जुआरी ने खुद को गोली मार ली।