तेरा दिया तुझ को अर्पण
तेरा दिया तुझ को अर्पण
निशा एक बहुत ही प्यारी सुलझी हुई लड़की हुआ करती । ज्यादा ऊंचे बड़े ख्वाब नही थे उसके पर जिंदगी को भरपूर जीना चाहती थी ।स्नातक उसने फाइन आर्ट में की थी और उसकी कला के सभी दीवाने थे । उसने अपनी स्नातक पूरी करते ही अपनी कला की प्रदर्शनी लगाना शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में निशा की ख्याति कला क्षेत्र में फैलने लगी ।उसकी बनाई हुई पेंटिंग्स ऊंचे दामों पर बिकने लगी । निशा भी अपनी कला में दिन ब दिन पारंगत होती जा रही थी ।एक कला प्रदर्शनी में उसकी मुलाकात कौविद से हुई । कौविद सांवला सा , तीस पार का युवक , धीर गंभीर , खोया खोया सा और एक मंझा हुआ लेखक जिसके जाने कितने दीवाने थे ।ये मुलाकात फिर कैफे में होने लगी फिर धीरे धीरे शहर के शांत पार्कों में , कभी कुछ दूर बहती नदी के किनारों पे , कभी लंबी ड्राइव पे और कभी कभी यूं ही साहित्यिक चर्चा करते करते कुछ साल निकल गए ।दोनों के परिवारजन खुले विचारों के थे , इन दोनों ने अपने अपने घर में बात की और ब्याह पक्का हो गया । दोनों ही परिवार अपने अपने शहर के रईस परिवारों में गिने जाते थे और बिजनेस में थे ।बिजनेस जगत और कला जगत में जब ये बात फैली की निशा सेन और कौविद सुमन विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो तरह तरह के कयास लगाए जाने लगे कि बहुत ही भव्य शादी होगी और बहुत पैसा बहाया जाएगा पर जब शादी की तस्वीरें ही सीधा आई अखबारों में , सोशल मीडिया पर तो लोग अचंभित रह गए ।निशा ने बताया कि उन्होंने कौविद को एक पेंटिंग भेंट की है और कौविद ने निशा को एक किताब भेंट की है जो कि निशा को समर्पित है और आप लोग यकीन नहीं करेंगे की इस कामयाब जोड़े ने शादी के बाद शहर छोड़ गांव जा कर बसने का तय किया है ।गांव में जा कर रहने का इरादा कौविद का था की हम दोनों अपना काम कहीं से भी कर सकते हैं पर उस पैसे को गांवों में लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में ही खर्चा करेंगे । निशा बहुत प्रभावित हुई कौविद की सोच से और साथ देने का वादा किया ।शहर में पले बढ़े इस जोड़े को थोड़ा असुविधाओं का सामना तो करना पड़ा गांव में जा के बसने पर ,परंतु उस एक गांव जहाजगढ़ का और उसके आसपास के कुछ बीस गांव का बहुत काम किया दोनों ने मिल कर ।गांव की औरतों की कला को निखारा और उनका एक संगठन तैयार किया जो वहां की लोकल कला को कपड़ों पे ढालता और निशा एवं कौविद उनको बाजार में बेच कर उनको पैसे देते , गांव की औरतें आत्मनिर्भर हो रही थी ।सरकार से मिल कर स्कूल खुलवाया ताकि बच्चियों को दूर दूर ना जाना पड़े पढ़ने के लिए ।गांव के पुरुषों का खेती का तरीका बदलवाया और उनको नई खेती की तकनीकों से वाकिफ करवाया ।कुछ ही सालों में उन दोनों ने मिल कर इन आसपास के गांवों का काफी उद्धार कर दिया ।आज वो दोनों यहां से जा रहे थे , इन 7 बरसों में उन्होंने बहुत कुछ लौटाया अपने समाज को और बदले में बहुत इज्जत मान सम्मान मिला उनको ।आज हर गांव वाले की आंखों में आसूं थे पर सब खुश थे की अब किसी और जगह का उद्धार होगा ।दोस्तों समाज हमें कुछ देता है तो हमें भी अपनी काबिलियत के हिसाब से समाज को कुछ न कुछ जरूर लौटाना चाहिए ।