राजनारायण बोहरे

Abstract

4  

राजनारायण बोहरे

Abstract

तड़प

तड़प

8 mins
23.2K


किवाड़ बन्द थे। भास्कर ने आगे बढ़कर कॉल-बैल का बटन दबा दिया। भीतर कहीं चहकती चिड़िया के स्वर वाली यांत्रिक आवाज गूंज उठी थी। किसी की पदचाप दरवाजे तक आयी तो उसकी धड़कन बढ़ गयी। हौले से किवाड़ खुला और अधखुले दरवाजे से मैडम का चेहरा दिखा - कौन ? 

भास्कर को देख के उनके चेहरे पर प्रसन्नता खिल उठी - आओ भास्कर। 

सर घर नही लौटे क्या ? भास्कर दुविधा प्रकट करता अब भी दरवाजे के बाहर खड़ा था। 

बस आने ही वाले होगे। तुम बैठ कर इन्तजार कर लो। कहते हुये मैडम मुड़ीं और भीतर चल दीं। भास्कर उनके पीछे था। गैलरी पार करके बैठक में पहुँच कर मैडम रूकीं और भास्कर को सोफे पर बैठने का इशारा किया। सहमता, सकुचाता भास्कर सोफे की कुर्सी पर दुबका हुआ सा बैठ गया। 

देखा, मैडम फ्रिज के सामने थीं और पानी की बोतल निकाल रही थीं। ठंडी बोतल भास्कर के सामने रखते हुये वे भास्कर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयीं। फिर भास्कर से मुखातिब हुई-सुनाओ तुम्हारा रिसर्च वर्क कैसा चल रहा है ?

‘‘जी कुछ चैप्टर पूरे कर लिये हैं वे ही सर को दिखाने आया था।’’ 

‘‘लो पानी लो’’ कहती मैडम ने टेबल पर रखा रिमोट उठाया और टेलीविजन की ओर तान कर पावर बटन दबा दिया, काला सा दिख रहा टेलीविजन का पर्दा जगमगा उठा। चैनल बदल-बदल कर मैडम कार्यक्रमों का जायजा लेने लगीं, तो भास्कर पूरे इत्मीनान से उन्हें ताकने लगा। 

गोरा-गोल मटोल बेहद खूबसूरत चेहरा, दूध सा उजला संगमरमर पर तराशा सा सुडौल बदन, मुस्काते होंठ, कान तक कटे काले बॉयकट चमकदार बाल, कट स्लीव ब्लाऊज में से बाहर झाकतीं मांसल गुदाज गोरी बांहेें देखकर भास्कर आपा खो बैठता था। पता नही यह उनका सामान्य अंदाज था या भास्कर के सामने ही वे ज्यादा बोल्ड व बिंदास व्यवहार करती थीं, लेकिन भास्कर की तो बोलती ही बन्द हो जाती थी। वे प्रायः सिल्क का पीला सलवार सूट पहनती थीं, जिसका दुपट्टा बार-बार नीचे फिसलता रहता था। आज वे सिल्क की साड़ी मंे ही थी। आसमानी रंग की यह साड़ी उन पर गजब ढा रही थी। उन्हें देखकर भास्कर फिर से उस भाव-लोक मंे जा पहुँचा जिसमें यहां आकर हर बार डूब जाता है वह। 

भास्कर को दो वर्ष बीत गये यहां आते हुये। अर्थशास्त्र से एमए करके कस्बे की नगर पालिका के बजट को केन्द्र बनाकर उसने स्थानीय निकाय के अर्थशास्त्र पर पीएचडी करने के लिये यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रेशन करवा रखा है। प्रो दत्त यानि के मैडम के पति को गाईड बनाया है भास्कर ने अपना। पहले वह कॉलेज जाकर दत्त सर को अपना काम दिखाता था लेकिन वहाँ ज्यादा फुरसत नही मिल पाती थी। इसलिये दत्त सर ने उसे सदा घर पर आने का कहा है। 

पहली बार जब वह यहां आया था तो सर ने मैडम से उसका परिचय कराया था-विनी इनसे मिलो ये है भास्कर दुबे, मेरे सबसे प्रिय छात्र। मैं इनसे एक ऐसे टॉपिक पर रिसर्च करा रहा हूँ कि अगर वह ठीक ठंग से हो गया तो पूरे देश का ध्यान स्थानीय निकायों के आर्थिक चक्रव्यूह पर आकृष्ट होगा। 

तब मैडम ने यानि विनीता दत्त ने बडे स्नेहिल ढंग से उसके अभिवादन का जबाब दिया था, बेंधती हुई गहरी नजरों से उसे देखा था। वे नजरें ऐसी थी कि भास्कर भीतर ही भीतर थरथरा उठा था। सर ने उसे टोका      था - भास्कर अब तुम यहाँ आकर कभी भी अपने कागज मुझे दिखा सकते हो। 

अगली बार भास्कर जान-बूझ कर सर की गैर-हाजिरी में ही उनके आवास पर आया था, तो मैडम ने बड़ी खुशी से उसका स्वागत किया था। उस दिन मैडम ने स्वतः ही उसे अपने पीहर के बारे में बताया था। मैड़म के पिता डॉ वर्मन अर्थशास्त्र के टॉप लेबल के विद्वान थे। इसी कारण उनने अपने तीनों बच्चों को अर्थशास्त्र में ही पीएचडी करा रखी है। घर मंे अकादमिक माहौल था। प्रोसेसर दत्त किसी जमाने में वर्मन सर के जूनियर हुआ करते थे, तब से वर्मन सर उन्हें बेहद चाहते थे। इसी चाहत का परिणाम था कि विनीता का ब्याह उनने दत्त से तय कर दिया था और विनीता से पूछा भी न था। 

उस दिन विनीता मैडम ने यह भी बताया था एक ही सब्जैक्ट के होने के बाद भी पति-पत्नी में थोड़ा वैचारिक मतभेद भी है। एक बात और बतायी थी मैडम ने कि उनका एक छोटा भाई था - निक्की। जो एक एक्सीडेंट में खत्म हो चुका है। निक्की उनका भाई ही नही दोस्त था, जो मैडम के हर राज को जानता था। मैडम के पहले प्रेम-प्रसंग का भी पता था, बल्कि निक्की ही पत्र-वाहक था, उस प्रसंग में। मैडम के पहले प्रेमी उनके सगे मामा के लड़के थे - जो इन दिनों सरकारी अस्पताल में डॉक्टर हैं कहीं।

मैडम के पिता ने इस औरस रिश्ते का विरोध किया था, और मैडम का ब्याह जल्दबाजी में दत्त से कर दिया था, उस दिन मैडम जितना रोई थीं, उतना ही निक्की भी रोया था। 

पहले दिन दत्त सर बड़ी देर से घर लौटेे, सो मैडम खूब फुरसत में बतियाती रहीं थी भास्कर से। एक ही दिन में वे ऐसा खुल गयीं थीं, कि बड़े बेलौस अन्दाज में अपनी सुहाग रात की बातें भी भास्कर को बताती रही     थीं। जब तक सर आये, वे दोनों अच्छे दोस्त हो चुके थे। 

उस दिन सर बहुत थके हुये थे सो रिसर्च के बारे में कोई बात नहीं हो सकी, भास्कर घर लौट आया     था - फिर से जाने के लिये। 

वह रात आँखों में ही काटी थी उसने। नींद नहीं आयी थी उसे। सारी रात वह इसी गुत्थी मंे उलझा रहा था कि मैडम का एक ही दिन में इतने खुल जाने का क्या मतलब है? देखने में ऐसी सभ्य और शालीन दिखती हैं कि उन्हें चालू तो कहा नही जा सकता, फिर सर जैसा शौकीन मिजाज का पति है उनके पास। औरभास्कर तो उम्र में भी पाँच-छह बरस छोटा होगा मैडम सेहाँ डीलडौल में जरूर वह हृष्ट-पुष्ट है, देखने-भालने में भी आकर्षक है, कॉलेज के जमाने में वह कई लड़कियों का आकर्षण झेल चुका है। परमैडम और उन लड़कियों में बड़ा अन्तर है। लेकिन मैडम कह रही थीं कि दत्त सर से उनके वैचारिक मतभेद भी हैंये बुद्धजीवी लोग हैं, इनमें वैचारिक मतभेद ही तो अततः दैहिक और दांपत्तिक मतभेद के रूप में उभरते हैं      न। और इस मतभेद की जरा सी संध में भास्कर अपना भविष्य देखकर बार-बार पुलकित हो रहा था। 

फिर वह अक्सर सर के यहां जाने लगा। मैडम उसकी भरपूर खातिरदारी करतीं। वह कई बार बिना सूचना के भरी दोपहरी में जा पहुँचता। ऐसे में अचानक पहुँचने पर न मैडम सकपकाती, न कोई परेशानी महसूस      करतीं। भास्कर ने महसूस किया कि वे अगर लापरवाही से बैठी हुयी हैं, तो बैठी ही रहतीं, न चौंक कर पल्लू संभालती, न बदन ढंकने का यत्न करतीं। भास्कर छिपी नजरों से उनके दूधिया संगमरमरी बदन को ताकता    रहता। मैडम की संगत में बैठ-बैठ कर उस जैसा चुप्पा आदमी भी बातूनी हो गया है। जब कभी वह मैडम की तारीफ कर देता तो मैडम मुस्करा कर भास्कर के सिर के बालों में हाथ फँसा कर सहला देती। भास्कर गदगद हो जाता।

मैडम की निकटता का ही परिणाम था कि दत्त-दंपत्ति की मैरिज ऐनीवर्सरी के निहायत निजी उत्सव का एक मात्र गेैस्ट भास्कर था। यही नहीं मैडम की बर्थ-डे में भी एक मात्र वही तो था जो उन दोनों के साथ पिकनिक पर गया था। उसी दिन मैडम ने अनायास ही भास्कर की बर्थ-डे पूछी थी तो सहज भाव से उसने बता दी      थी -इकतीस दिसंबर। 

वह सुखद विस्मय से भर गया था, जबकि इकतीस दिसंबर को उसे दत्त सर ने अपने घर बुलाया था और पहुँचने पर मैडम ने ‘‘हैप्पी बर्थ-डे’’ कहते हुये एक स्वेटर देते हुये तुरंत ही पहनने का आग्रह किया था। भास्कर ने स्वेटर पहना तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि स्वेटर बिलकुल उसके बदन के नाप का था। उसके आश्चर्य का शमन मैडम ने बड़े लापरवाही के अंदाज में यह कहते हुये किया था कि ‘‘इसमें कोई खास बात नही, क्यांेकि इनका नाप भी मुझे याद है, और निक्की का नाप भी मेरे मन में दर्ज है।’’  

तब से वह जब भी आता है मैडम से कुछ कहना चाहता है, पर हर बार उसका साहस जबाब दे जाता है, लगता है जीभ तालू में चिपक के रह गयी है। 

आज वह घर से बहुत कुछ सोच के चला है। दो बरसों की तिल-तिल उत्तेजना का शमन करना चाहता है वह आज। 

मैडम ने टेलीविजन पर कोई विदेशी संगीत की चैनल लगा दी थी, जिस पर अजीब से स्वर में गा रहे गायक के साथ-साथ बहुत सारी अल्प वसना नर्तकियां उत्तेजक मुद्रा में डांस कर रही थीं। 

मैडम उठीं और भीतर जाते-जाते बोलीं-तुम बैठना, ये आते हांेगे। मैं जरा चेंज कर लूँ। फिर हम लोग बैठ कर कॉफी पियेंगे। बैठक से लगा हुआ ही तो वह कमरा है, जो मैडम का पर्सनल रूम है। जाते-जाते मैडम ने कमरे के किवाड़ यूँ ही उड़का दिये थे। टेलीविजन पर चल रहे कार्यक्रम का क्षणिक असर था, या पूर्व से अवचेतन में बैठी कोई उत्तेजना, भास्कर धीरे से उठा और उसने उड़के हुये दरवाजे की झिरी से आँख लगा दी। 

एकाएक उसे लगा कि उसका ब्लड-प्रेशर बढ़ गया हैकनपटियाँ गर्म हो उठीं और मानो दिल उछल के हलक में आ फँसा, मैडम लगभग अनावृत सी खड़ी कपड़े बदल रहीं थी। बदन पर मौजूद स्लीव लैस ब्लाउज के बटन खोलतीं वे जाने क्या गुनगुना रहीं थीं ? 

घबरा के भास्कर सीधा खड़ा हो गया और अपनी धड़कनों पर काबू पाने का यत्न करने लगा। 

फिर उसने आव देखा-न-ताव धड़ाक से दरवाजा खोला और मैडम के बैडरूम में प्रविष्ट हो गया। मैडम उसे ताज्जुब से देख रही थीं और वह आकुल-व्याकुल सा उनकी तरफ बढ़ रहा था। 

उसकी जुबान फिर तालू से चिपक गयी थी। मुँह ऐसा लाल हो उठा था जैसा सारा खून सिमटकर चेहरे पर ही इकठ्ठा हो गया हो। भास्कर ने अँाखें मूंद लीं और अपने हाथ फैला कर मैडम की तरफ बढ़ने लगा। 

एकाएक बिजली सी चमकी और आंखों में सितारे से नाच गये भास्कर के। 

उसने सिर्फ दो चीजे महसूस की - एक अपने गाल पर मैडम का जोरदार रहपट और दूसरी उनके मुंह से निकलते अस्फुट से कुछ शब्द - ‘‘नहीं निक्की नहीं, नहीं मेरे भाई, नहीं।’’

भास्कर को लग रहा था कि काश ये धरती फट जाती और मैं उसमें समा जाता, या फिर हार्टअटेक क्या होता है, जो मुझे नहीं हो रहा। उसका पूरा शरीर पसीने से लथपथ था और उत्तेजना से आंखें फटी पड़़ रही थीं। नीचा सिर किये वह बाहर निकल आया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract