राजनारायण बोहरे

Drama

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राजनारायण बोहरे

Drama

पक्षी और जीव-जंतुओं की कौतुक

पक्षी और जीव-जंतुओं की कौतुक

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कुछ दिन पहले की बात है, अमेरिका के शहर लाल एंजेल्स में शहर के मुख्य मार्ग पर अपनी नन्ही नन्ही साईकिल और ड्रायसकिस पांवों से असमर्थ लोगो कि साईकिल चलाते कुछ बच्चे, सड़क के बीचो बीच आकर खड़े हो गये। उन्हे देखकर आते जाते गाड़ीया रूकी तो रास्ता जाम होने लगा। एकाएक उन बच्चो के पीछे पीछे चलती एक छोटी सी पेट्रोलिंग कार आगे आई और तेज आवाज गुंजी-“आप सबको बताया था न, कि सड़क के किनारे चलना चाहिये। चलो सड़क के किनारे चलो।” श

बच्चे चल पड़े तो लोगो ने उस कार की तरफ देखा, वे सब चौंक गये। पेट्रोलिंग कार में चालक के सा,थ एक नीले सुनहरे रंग का तोता बैठा था, जो बच्चो को सही तरीके से चलने और साईकिल चलाने की शिक्षा के वाक्य बोल रहा था। बाद में पता चला कि बयार्ड नाम का वह तोता लॉस एंजेल्स के पुलिस विभाग में इसी काम के लिए तैनात है। इस तोता को खुब सारी तनखा मिलती है और उसकी सहायता के लिये विमेंसन नाम का एक आदमी नियुक्त है। बयोर्ड और विमंसन पाठशालाओ में जाते रहते हैं, जहा बच्चे उनकी बाते सुनते है और उनसे सड़को पर चलने के नियम सीखते हैं। साइकिल और ट्रायसकिल चलाना भी ये दोनांे पुलिस अधिकारी बड़े प्यार से बच्चों को सिखाते है। बयार्ड नामक यह तोता दक्षिण में पैदा हुआ है। इसे बच्चे खुब प्यार करते है। बयार्ड जैसे सेकड़ो तोतों में एसे गुण पाये जाते है कि उन्हे जो सिखा दिया, वे बड़ी कशलता से वह काम करते रहते है।

एलेक्स नाम का तोता औरिजोना के एक वैज्ञानिक आइरिन पियर वर्ग के घर में पालतू तोतों के रूप मंे रहता हैं। इस तोते को एक से सौ तक गिनती आती हैं। उसे यह भी पता है कि थका-मांदा आदमी कैसा होता है, वह घर के किसी थके-मांदे सदस्य को देखता है तो समझ जात है कि वह व्यक्ति प्रसन्न नही है, और तुरन्त पुछता है-“ए मैन, क्या कुछ गड़बड़ है !” खाली समय मंे वह तोता घर के सभी सदस्योें के नाम और बहुत सी चीजो के नाम पुकारता रहता है। उसे एक सी चीजो के बीच में रखी अजीब और अलग प्रकार की चीजो की भी जानकारी है, जिसे वह तुरन्त बता देता है।

जालंधर की बात है, म्युजिक के प्रोफेसर अरूण मिश्र अपने परिवार के साथ एक कार्यक्रम में शामिल होने गये थे। वे घर लौटे, तो उन्होेने सुना कि घर के भीतर से बिजली और कुत्ते की आवाजे आ रही हैं, उन्होने घबरा के दरवाजे खोंले। घर का कोना कोना छान मारा लेकिन उन्हे न तो बिल्ली मिली न कुत्ता मिला तो सब मन ही मन परेशान हो गये। दूसरे दिन उन्होने वैसी ही आवाजे फिर सुनी तो उनने खोंजवीन शुरू कर दी। उनको लगा कि वे आवाजें घर के पालतु मादा तोता के पिंजरे से आ रही हैं तो वे पिंजरे की ओर भागे। सचमुच अफ्रीकी नस्ल की मादा तोता पालतु सीता खुद ही नाच नाच कर कुत्ते और बिल्ली की आवाजे निकाल रही थी, जो अलायास ही पता नही वह कब सीख चुकी थी। बाद में अरूण जी के परिवार के लोगों ने सीता को अंग्रजी में कुछ बातें भी रटा दीं, फिर उनके घर जो भी आता, उससे सीता बड़े प्रेम से पुछती - “हाऊ डू यू सर !” या फिर कहती “वाट डू यू वांट सर !” कभी वह पूछती “आई केन योर हैल्प एनीथिंग सर !”

तोंता ही नही, कुत्तो में भी एसे गुण हाते हैं कि बहुत जल्दी सीख जाते हैं। कनाड़ा में डेविच नाम का एक कुत्ता था, जो डकिया के रूप में एक मोहल्ले का पूरा काम संभाल लेता था। वह डाक का थैला लेकर गली के हर घर में जाता, और भोंक कर या किबाड़ो में दस्तक देकर दरवाजा खुलवा लेता, फिर डाक का थैला उनके सामने रख देता। लोग अपनी चिट्ठियां निकाल लेते और थैला फिर से बंद करके डेविस को सौंप देते थे, डेविस बड़ी शान से अगले घर की ओर चल देते थे।

मध्यप्रदेश के गुना जिले के आरोन नामक कस्बे में नूर भाई पत्रकार और उनके बड़े भाई अपनी खेती के फार्म पर रहते थे । उनके पास मोती नाम का एक कुत्ता पला हुआ था, जो सदा ही नूर भाई के बड़े भाई के साथ रहता था। यहा तक वह उसी कमरे में सोता था जहां उसके मालिक सोते थे। एक रात की बात है की एक बड़ काला नाग फनफनाता हुआ उसी कमरे में घुसा जिसमें मोती ओर उसके मालिक सोये हुये थे। इसके पहले कि वह सांप पलंग पर चढ़के मोती के मालिक को काट पाता, मोती बिना आवाज करे चुपचाप उठा और सर्प को अपने पंजो में दबा के उसका फन अपने पैने दांतो से जकड़ लिया। नाग छटपटा उठा और गुस्से में आके उसने मोती के मुंह और गर्दन कई जगह काट लिया। पर मोती ने सांप को छोड़ा नही और उसके टुकड़-टुकड़े कर डाले । सांप मर गया तो लम्बी लम्बी सांसे लेता हुआ मोती सुस्ताने लगा। अब उस पर सांप के जहर का असर होने लगा था, वह बड़ी मुश्किल से रोता हुआ भोंका, और छटपटाने लगा।

मोती के मालिक जागे, और पलंग से नीचे देखा, तो हैरान रह गये। नीचे पांच फिट लम्बा एक काला नाग टुकड़े-टुकड़े होकर मरा पड़ा था, और तकलीफ के कारण आंसु बहाता हुआ प्यारा कुत्ता मोती अंतिम सांसे भरता हुआ तड़प रहा था। वे पल भर मे ही एक सारा माजरा समझ गये कि इस स्वामिभक्त कुत्ते ने मेरे लिये जान की बाजी लगा दी है, अगर आज यह कुत्ता न होता तो ? यह कल्पना करके वह कांप गये और लपक कर मोती को अपनी गोदी में उठा लिया। मोती बड़ी अजीब सी नजरो से उन्हे ताक रहा था जिसे देखकर वह रो उठे। उन्होने तुरन्त ही घर के बाकी लोगो वहा बुलाया और मोती का इलाज शुरू कर दिया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चूकी थी, कोई फायदा नही हुआ, और अंततः मोती की मृत्यु ही हो गई। जिसने भी सुना आरोन कस्बे का हर आदमी मोती और सांप को देखने दौड़ पड़ता।

बाद में मोती की बकायदा अंतिम यात्रा निकली और उसका पूरे सम्मान के साथ अंतिम - संस्कार किया गया। सांप को भी छोटी सी चिता बनाकर जला दिया गया। मोती स्वामीभक्ति की चर्चा आज भी आरोग कस्बे मे सुनने को मिल जाती है। 

विश्व कई देशों में कुत्तों की एसी दर्जनों की तुक भरी कथायें सुनने को मिल जाती है। थाईलेण्ड के मुख्य बैंकाक में आवारा कुत्तो को मारने के अभियान में जब आठ पिल्लों की मां एक कुतिया मर गई तो उसके पिल्ले भूखे मरने लगे। तब एक कुत्ते ने अपने आप उन पिल्लांे का पालन पोशण शुरू कर दिया, वह दूर-दूर जाकर खुब खाना खा आता और लौटकर वह खाना उन पिल्लो के सामने उगल देता। यह पढ़कर भले ही हमको घिन लगे पर छोटे पिल्ले एसे ही खाना खाते है। थाईलैण्ड की सार्वजनिक कल्याण परिशद ने इस कुत्ते को पुरस्कार दिया है, उसे पच्चीस हजार डालर प्रतिमाह भोंजन तथा दुसरी सुविधाओं के रूप में दिये जावेंगे।

इंग्लैण्ड के एक पशु वैज्ञानिक ने एक मादा गौरिल्ला को मनुष्यों की तरह कपड़े पहनाना,उठाना, बैठना और भोंजन करना सिखाया हैं। सुना तो यह भी गया है कि आठ-नौ सौ अंग्रजी शब्द भी यह गोरिल्ला स्पष्ट रूप से बोल लेती है। इसी प्रकार विल नामक बंदर भी अपनी अजीबोगरीब आदतो के कारण खूब लोकप्रिय हुआ था। इस परिवार में पला यह बंदर सुबह उठकर रोज अपने दांतो में बु्रश करता था, और मनुष्य की तरह खाने के टेबल पर बैठकर ही भोंजन करता था। इसे टेलीविज़न देखने का बड़ा शोंक था। इसका एक अलग कमरा था जिसमें अलग से छोटा पलंग साफ सुथरा बिस्तर विल के लिये रख दिया गया था। कभी भी उसका बिस्तर गंदा नही देखा गया। जब वह बंदर खत्म हुआ तो इंसानो की तरह उसे दफनाया गया ओर चर्च के पार्दी महोदय ने इसकी आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना भी की।

राजस्थान प्रांत के बीकानेर जिले की नसीबन चाची के वहां एक एसा बकरा है, जो मनुष्यों की तरह हरकते करता है। बुखार आने पर खाना छोड़ना उसकी अनुठी आदत है। घर की खशी मे उछलना कुदना और दुःख में आंसु बहाना इस बकरे की मनोभावना को प्रकट करता है। गर्मी में शरबत,नींबू की शिकंजी, वर्फ डला दुध, आम का अमरस यह बड़े स्वाद से खाता है जब इसके मालिक अब्दुल सत्तार अपने हाथ्श्शों से इसे एक-एक कोर करके खिलाते है।

इसी तरह पक्षी और जीवजंतुओ की काैंतुक भरी रहस्यपूर्ण कथाए हर जगह सुनने को मिल जाती हैं, जिनसे पता लगता है कि यह प्राणी भी मनुष्य के प्रति प्रेम रखते हैं और मनुष्यों से भी प्रेम चाहते हैं।


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