राजनारायण बोहरे

Drama Tragedy

4.1  

राजनारायण बोहरे

Drama Tragedy

हत्यारी दवा

हत्यारी दवा

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सरकारी वकील का रवैया देख मै हतप्रभ हो गया । वे जिस तू तड़ाक वाली भाषा में मुझसे सवाल जवाब कर रहे थे, उससे लग रहा था कि वे पहले जरूर किसी पुलिस थाने के दारोगा थे। जाने कैसे मेरी नींद खुल गई ।


फिर तो मेरी आंखों से नींद ऐसी रूठी कि उसके स्पर्श को तरसता रहा । कल अदालत मे गवाही थी मेरी । एक खास मुकद्दमा था ये जिस पर सारे सूबे की आंखें टिकीं थीं ।


मुकदमे का ख्याल आते ही मुझे कंपकंपी हो आई....। ...और, सारी घटना एकबार फिर मेरे जेहन में घूम जाती है।

उस दिन हम सब दफ्तर के बड़े हॉल में इकट्ठे थे कि ग्यारह बजे रोज की तरह नीरनिधि साहब अपने जूते ठकठकाते हुए आ पहंचे थे । सामूहिक नमस्कार कर हम उनकी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और प्रेम व्यवहार के गुण की तारीफ़ करने लगे। हम क्या, सारा नगर जानता था कि नीरनिधि साहब एक हीरा आदमी है। गाँव की कच्ची गलियाँ हों या नगर की गन्दी बस्ती नीरनिधि साहब हर उस जगह मौजूद मिलते थे, जहां हमारे महकमे के छोटे कर्मचारी काम कर रहे होते। सारा जीवन सादे ढंग से रहने और पूरी क्षमता से काम करने में ही गुजार दिया उन्होने।

तब बारह से कुछ कम का समय था कि दफ्तर के बाहर तेज हलचल सी दिखी। भीड़ में खड़े एक नेता नुमा आदमी की ऊंचे स्वरों में बातचीत सुनी तो सब अपने अपने अनुमान लगा रहे थे कि सहसा सौ एक लोग हॉल के बड़े दरवाजे से अंदर घुसते दिखे ।

''कौन हैं आप ? क्या काम है?'' बड़ेे बाबू ने दफ्तरी अकड़ के साथ पूछा तो भीड़ की अगुआई करता चुस्त सफेद कुर्ता-पैजामा और कंधे पर रंगीन गमछा डाले वह गोरा और तगड़ा युवा गुर्राया, ''बात करने की तमीज नहीं है तुझे बुढ्ढे ! मैं रूलिंग पार्टी की युवा इकाई का नगर अध्यक्ष रक्षपाल हूँ।''

क्षणाश में बड़े बाबू के भीतर बैठा चौकन्ना क्लर्क जाग उठा, '' सॉरी भैया मैं पहचान नहीं पाया ।...कभी काम नहीं पड़ा ना !''

''येई तो ! गद्दारी है हमारे पार्टी वाले हुक्मरानों की। तुम जैसे दो कौड़ी के नौकर तक हमे नहीं पहचानते है।''

अपनी बेइज्जती पीते बड़े बाबू ने उसके साथ वाले लोगों से भी बैठने का इसरार किया।

'' अबे चुप कर बुढ्ढे, तेरा अफसर कहाँ है? उससे बात करने आए हैं हम। कहाँ बैठता है वो रिश्वतखोर ?'' थरथराते बड़े बाबू ने कांपती उंगली से उस कमरे की तरफ इशारा कर दिया जिधर नीरनिधि साहब का चैम्बर था। लगा कि किसी बांध की दीवार ही टूट गई हो, हहाकर बहते पानी की तरह बाहर खड़े पचासेक आदमी और भीतर घुसे और वे सब के सब हुंकारी के साथ नीरनिधि साहब के कमरे में घुसने लगे। हम सब दहसत से भर उठे थे।

पहले बड़े बाबू फिर एक-एक कर सारा स्टाफ दफ्तर से बाहर निकल गया। सिर्फ मैं अकेला भकुआता सा बैठा रह गया था कि नीरनिधि साहब के कमरे में से उनकी तेज चीख सुनाई दी मुझे । सहसा करंट सा आ गया मुझमें, और हवा के परों पर सवार मैं ताबड़तोड़ दौड़ पड़ा था नीरनिधि साहब की दिशा में।

अंदर का दृश्य हर भले आदमी को शर्मसार कर सकता था ।...हमारे दफ्तर का सम्मान्य अफसर,...बिजली विभाग का वो कर्मठ और ईमानदार इंजीनियर,...जनता की सेवा में चौबीसों घण्टे तत्पर रहनेवाला वो जनसेवक,...हम सब कर्मचारियों की निष्ठा का प्रतीक वो हमारा नुमाइंदा उस भीड़ से घिरा हुआ बेहद दयनीय हालत में उन दो कौड़ी के गुण्डों के हाथों में फुटबाल की तरह उछल रहा था। उन्मादी भीड़ के लोग उनको बेतरतीब ढंग से पीटते हुए एक भयावह अट्टहास कर रहे थे।

मुश्किल से पांच मिनट मैंने देखा कि हृष्टपुष्ट नीरनिधि साहब ष्श्लथ हो चुके थे , और अब उनके मुंह से चीख निकल रही थी न गुहार । भीड़ का शिकंजा ढीला हुआ, मुझे नीरनिधि साहब तक जाने का मौका मिल गया। जमीन पर आैधे पड़े थे । मैंने उन्हे सीधा किया और बमुश्किल तमाम मैं घसीटकर उन्हे कुर्सी पर बैठाने में सफल हुआ तो उनका सिर धड़ाम से टेबिल पर मड़े कांच में जा टकराया । कनखियों से मैंने देखा कि हाथ की अदृश्य धूल या अछूत आदमी को छूने से पैदा हुआ छूत भाव झड़ाते वे लोग हर्षध्वनि के साथ लौटने लगे थे।

बाद के असंख्य क्षण पीड़ाप्रद थे । मेरी तमाम सक्रियता के बाद भी नीरनिधि साहब बचाए न जा सके। डॉक्टरों की भीड़ ने पल भर में ही नीरनिधि साहब को मृत घोषित कर दिया। रात आठ बजे मैंने पुलिस कोतवाली में एफ आई आर दर्ज कर वाई, उस वक्त मीडिया के चमचमाते कैमरो मेरा एक एक शब्द टेप कर रहे थे, और मैं सारा घटनाक्रम थाना प्रभारी को अपनी ऊंची नींची सांसों के साथ सुना रहा था।

अगले कई दिन रूलिंग पार्टी के सदर, खिलाफी पार्टी के सदर और तमाम हुक्मरान नीरनिधि साहब घर आते रहे और उन्हे मनाते रहे कि वे खामोख्वाह पुलिस कार्यवाही में न पड़ें। म्ुाझे ताज्जुब हुआ कि इस हादसे की जाँच बीस दिन में हो गई और महीना बीतते न बीतते अदालत में चालान भी पेश हो गया। गवाहान तलब हुए । गवाहों में सबसे अव्वल नाम मेरा था। एक तरह से चश्मदर्शी गवाह।

मेरी गवाही पर सारे मीडिया की निगाहें थीं। ...वैसे इस प्रकरण के प्रति हर आदमी का अलग नजरिया था । पुलिस के लिए फालतू का लफडा, नामजद हुए लोगेंा की आगामी पॉलिटिक्स को आर-पार का मुद्दा, नीरनिधि साहब के परिवार की डूब गई नौका को उबारने का यत्किंचित सहारा और मेरे लिए जीवन मरण का प्रश्न!

मुझे लगता है फालतू के लफड़े में नीरनिधि साहब की जान गई । लफड़ा था बिजली कटौती का, जिसमें न नीरनिधि साहब कुछ कर सकते थे न विद्युत मंडल । मैने कमर कस ली थी कि हर हालत में मुलजिमों को सजा दिलवाऊंगा।

गवाही देने वालों में सबसे पहला नाम मेरा है, और पुलिस व मीडिया के सामने मैंने ही सारा किस्सा बयान किया है, सो मुल्जिमों का पहला निशाना मै ही हूँ । हादसे के अगले दिन से ही मैं अनुभव कर रहा हूँ कि मेरा पीछा किया जाता है, अजनबी किस्म के गुण्डे मेरे आसपास घूमते रहते हैं। अचानक रात को मेरा फोन बज उठता है और घर का जो सदस्य रिसीव्हर उठाता है, उसे गंदी गालियों के साथ धमकी दी जाती है कि अगर अदालत में मैंने मुंह खोला तो मेरी और मेरे परिजनों की खैर नहीं । रोज-रोज के फोन से तंग आकर मेरी पत्नी आँचल पसार कर मुझसे अपने सुहाग की भीख मांगती है तो मेरे बच्चे अपने बाप की जिन्दगी ।

वैसे अदालत में अपने कहे हुए से पलट जाना उतना आसान भी तो नहीं है, गुजरात के बेस्ट बेकरी कांड दिल्ली का जेसिकालाल हत्याकांड में अदालत में पलट जाने वाले उसके गवाह को अदालत ने जिस तरह से सजा तजबीज की। उसके बाद मेरे जैसे आदमी में साहस ही कहाँ बचा है अपने कहे से पलटने का । फिर अदालत में पलट जाने भर से इज्जत बच जायेगी क्या मेरी! कल जब बाजार में जाऊंगा, किसी गली से निकलूंगा तो लोग कटाक्ष करेंगे मुझ पर । दुनिया भर में थू थू होगी मेरी । नीरनिधि साहब की बीबी को क्या मुंह दिखाऊंगा मै, अपनी यूनियन के सामने क्या कहूँगा मैं ? जहां खूब डींगे हांकता रहा अब तक ।

कल पत्नी कह रही थी कि तुम चिन्ता काहे करते हो, उन लोगों का वकील पहले ही बता देगा आपको कि कैसे क्या कहना है! मैंने बात कर ली है वकील से, आपको ऐसी गोलमाल बात करनी है कि पुराने बयान से पलटना भी न लगे और उन लोगों का शिनाख्त भी न करना पड़े आपको। वैसे ऐसी कोशिश चल रही है कि अदालत में आपका बयान न कराया जाय।

मैं अचंभित था कि मेरी घर-घुस्सा निहायत घरेलू हाउस वाइफ बीबी को ऐसी दुनियादारी कहाँ से आ गई कि रास्ता निकाल लिया उसने मेरे धर्मसंकट से उबरने का 

सुबह हो रही थी, आसमान मं सोने सा पीला उजाला फैलने लगा था। कि फोन की घण्टी बजी, मैंने लपक कर उठाया तो पाया कि उधर से नीरनिधि साहब की पत्नी की आवाज थी। वे कह रहीं थीं,भैया,जिसे जाना था वो चला गया] आप आज पेशी में ऐसा कुछ मत कहना कि आपके परिवार पर संकट आ जाये। अब मरने वाले के साथ मरा तो नहीं जाता न, हम लोग भी अब सजा दिलाने पर ज्यादा जोर नहीं डालेंगे।

सुना तो मैं स्तब्ध रह गया- बल्कि भयभीत होकर जड़ सा रह गया कहना ज्यादा उचित होगा।


मन में घुमड़ रहे द्वंद्व के घनेरे बादल छंटते लग रहे थे] लेकिन जाने क्यों बाहर के वातावरण में एक अजीब सी घुटन और उमस बहुत तेजी के साथ बढ़ती सी लग रही थी ।

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