राजनारायण बोहरे

Abstract

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राजनारायण बोहरे

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लोककथा- भोला की चतुराई

लोककथा- भोला की चतुराई

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              बहुत पुरानी बात है। होशियारपुर नाम का एक गाँव था जिसमें भोला नाम का एक चतुर व्यक्ति रहता था। वह बड़ा बातूनी और हाजिर जवाब इंसान था। गाँव के लोगों ने आपस में विचार कर भोला को गाँव का मुखिया चुन लिया और निश्चिंत हो गये। अब जो भी समस्या आती, लोग भोला को आगे कर देते। भोला अपनी बुद्धिमानी से सबकी समस्या निपटा देता।

एक दिन भोला को उसकी पत्नी ने बताया, कि घर में दूध देने वाला अभय ग्वाला दूध में खूब सारा पानी मिलाके लाता है।भोला उस दिन चौपाल पर गया तो वहाँ बैठे धनपत पंसारी और मोती तमेरे ने भी भोला से यही शिकायत की। पूरा गांव अभय ग्वाला से परेशान था। गांव में दूध देने वाला अकेला एक अभय ग्वाला ही था। अतः उससे लड़ाई झगड़ा करना उचित नहीं था, फिर भी भोला ने धनपत और मोती को यही सलाह दी कि वे लोग कल अभय ग्वाले से शिकायत करें।अगले दिन सुबह अभय आया और भोला की पत्नि को उसने दूध दे दिया तो भोला घर से निकला और दूध को देखते हुये अभय से बोला-’’अभय तुम दूध में पानी क्यों मिलाके लाते हो ? शुद्ध दूध दिया करो।’’

अभय हर बात गाकर बोलता था उसने गाते हुए ही जवाब दिया -

’’नजर लगेगी दूध को, सो जल देत मिलाय’’

भोला समझ गया कि अभय झूठ बोल रहा है सो वह जान बूझकर चुप्पी साध गया और वापस घर के अंदर चला गया। अभय दूसरे लोगों के यहाँ दूध देने चल दिया। धनपत पंसारी और मोती तमेरे ने भी दूध में पानी की शिकायत की तो अभय ने सबको एक ही जबाब दिया-

’’नजर लगेगी दूध को, सो जल देत मिलाय’’

 उस दिन शाम को चौपाल पर भोला को पता लगा कि अभय ने सबको एक सा जबाब दिया है। भोला ने एक योजना बनाई और सबको समझा दी। वे लोग मौके का इंतजार करने लगे।

कुछ दिन बाद की बात है, अभय के घर में उसके लड़का की शादी तय हो गई थी। शादी का दिन पास आ रहा था।उस दिन अभय को दूध देने के बाद बाजार में खरीददारी करने निकला था। उसने अपने लिये दो जोड़ी कपड़े खरीदे और सिलाई करने के लिये भोला को सौंप दिये।भोला ने दो घंटे बाद कपड़े ले जाने का समय दिया और कपड़े सीने लगा।

अभय धनपत पंसारी के यहाँ गया तथा शादी के भोज के लिये मसाले, शक्कर बगैरह तौलने को कहा। धनपत पंसारी एक-एक कर चीजें तौलता रहा तथा बंद लिफाफे में रखता रहा। बाद में पूरा सामान लेकर अभय मोती तमेरे की दुकान पर गया और बर्तन खरीदने लगा। उसने बढ़िया चमकदार बर्तन पसंद किये और हिसाब किताब करने लगा।

उसने सोचा कि ’’पहले कपड़ा उठा लांऊ फिर बर्तन लूंगा’’ ओर वह मोती के पास बर्तन छोड़कर सिले कपड़े लेने भोला के पास चला गया.भोला ने कपड़ा सिल रखे थे। उसने अभय को कपड़े सौंप दिये तो अभय ने कपड़ों की तह खोली और कपड़े देखने लगा।उसने देखा कि हरेक कपड़े में काले रंग का एक निशान लगा है जो भोला ने जान बूझ कर लगाया है। उसने पूंछा तो भोला ने गाते हुए कहा-

’’जब नजर लगेगी दूध को, सो जल देत मिलाय।

तो, नजर लगेगी वस्त्र को, टीका दिया लगाय।

 यह सुनकर अभय बौखला गया पर कुछ बोला नहीं। वह कपड़े लेकर मोती तमेरे के यहाँ पहुँचा तो और दुखी होना पड़ा। हरेक बर्तन में एक-एक दोंची लगी थी। अभय ने मोती से पूंछा तो मोती ने कहा-

’’जब नजर लगेगी दूध को, सो जल देत मिलाय।

 तो, नजर लगेगी कलश को, दोंची दई लगाय।

 यह सुनकर अभय समझ गया कि ये सब लोग उसी नहले पे दहला मार रहे हैं। वह पंसारी द्वारा दिये गये माल को भी खोल कर देखने लगा। उसने पाया कि पूरे सामान में मिट्टी मिली है। वह दौड़ा-दौड़ा पंसारी के यहाँ गया और माटी की शिकायत की तो पंसारी बोला-

 ’’जब नजर लगेगी दूध को, सो जल देत मिलाय।

 तो, नजर लगेगी माल को, सो माटी दई मिलाय।।

 अभय ने हाथ जोड़कर अपनी गलती मानी कि वह दूध में पानी मिलाकर सचमुच गलती करता है। आगे से वह ऐसा नहीं करेगा तो तुरन्त ही धनपत पंसारी ने अभय का माल बदल दिया और मोती तमेरे ने उसके बर्तन बदल दिये। लेकिन भोला नहीं पसीजा उसने कहा कि तुम्हें कुछ न कुछ दण्ड मिलना ही चाहिये और उसने कालिख लगे कपड़े ही अभय को दिये। उस दिन के बाद अभय ठीक हो गया।

एक बार की बात है, होशियारपुर के सेठ धनपत पंसारी के यहाँ डाकुओं ने अचानक धावा बोल दिया। रात का घना अंधेरा था, भोला गहरी नींद में था कि बंदूक की आवाज से उसकी नींद टूट गई। वह चौंककर जागा और एक मिनट में ही समझ गया कि गाँव में कहीं डाका पड़ गया। वह बिना आवाज करें छत पर पहुंचा तो पता लगा कि    धनपत का घर डाकुओं से घिरा हुआ है।

में खोया रहेगा।यह याद आते ही भोला सरपट उठा और अपनी छत से पड़ौसी मोती तमेरे की छत पर छुपता-छुपाता जा पहुंचा। मोती भी जाग रहा था।

 फिर तो आनन-फानन में गांव के चार-पांच आदमी वहीं जुट गये। भोला ने उन सबको एक योजना बताई। वे सब सहमत हो गये तो भोला ने उन्हें एक-एक करके खिसकने की सलाह दी। कुछ देर बाद होशियारपुर की पश्चिम दिशा में एक-एक करके कई मशाल जल उठीं, फिर पूर्व दिशा में भी ऐसा ही हुआ। कुछ देर बाद उत्तर दिशा में भी कई मशालें जल गई। भोला के कहें मुताबिक उसके दोस्तों ने पेड़ों पर बांध-बांध के मशाले जला दी थी।

सहसा डाकू दल के एक सदस्य ने गाँव के तीनों ओर जलती मशालें देखीं तो उसने चिल्ला कर अपने दल को सावधान किया-’’होशियार रहो, हमें तीन ओर से घेरा जा रहा है।’’

यह सुनकर डाकुओं को साँप सूंघ गया। सबके हाथ जहाँ के तहाँ रूक गये। उनके सरदार ने हुक्म दिया-’’जो माल हाथ लग गया है, उसे लेके दक्षिण दिशा की ओर निकल चलो।’’

उधर मशालें जलाने वाले तीनों आदमी दक्षिण दिशा की ओर बढ़ रहे थे और इधर डाकू भी उधर ही चल पड़े थे।

गाँव की दक्षिण दिशा में एक लम्बी पतली गली थी, वे लोग अंधेरे में टटोलते हुये एक के पीछे एक उस गली में सरकने लगे। पर वहाँ कोई न था।

यकायक कोई जोर से चीखा ’’पकड़ो सालों को, भागने न पायें’’

अब तो डाकुओं की रही सही हिम्मत भी जबाब दे गई, वे सिर पर पैर रखकर भागे । भोला ने गली के आखिरी कोने पर ढेर सारा भूसा फैला दिया था, तेज दौड़ते डाकू भूसे पर पैर रखते ही फिसलने लगे। कुछ ही देर में दसों डाकू भूसें में कुलांटे खा रहे थे, और भोला तथा उसके चारों साथी उनकी बन्दूकें छीनते हुए एक-एक करके उन्हें उस सूखें हुये कुंये में पटक रहे थे, जो गली के बिल्कुल पास खुदा हुआ था।

डाकुओं को कुयें में गिराके भोला ने सब गांव वालों को बुला लिया। रात भर गांव वाले कुंये के ऊपर पहरा देते रहे और सुबह होते होते पुलिस ने आकर सब डाकुओं को गिरफ्तार कर लिया।

धनपत पंसारी की तो खुशी का ठिकाना न था। उसने गाते हुए भोला से पूंछा-

 ’’कैसे डाकू पकड़ लये, बिना छुरी हथियार’’

 भोला ने मस्ती में आकर गाते हुये ही जबाब दिया-

 ’’हिम्मत करके कोऊ तो, मदद करे करतार।

एसे डाकू पकड़ लये, बिना छुरी हथियार।।

इलाहाबाद में कंुभ का मेला लग रहा था देश के कोने कोने से लोग गंगाजी में स्नान करने व देवताओं की पूजन करने के लिये इलाहाबाद के लिये चल पड़े थे। होशियारपुर से भी किसानों का एक बड़ा झुण्ड कंुभ मेला देखने के लिये रवाना हुआ तो मुखिया होने के नाते भोला को उनके साथ जाना पड़ा।

इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम होता है। गाँव के लोग संगम के जल में स्नान करना बड़े पुण्य का काम मानते हैं। इसलिये संगम के स्थान पर खूब भीड़ इक्ट्ठी हो गई थी। भारी भीड़ को देखकर गंगा नदी के तट पर बड़ी संख्या में ठग लोग झूठे पंडे पुजारी बनकर बैठ गये थे। स्नान करने वालों को तिलक लगाके वे लोग दान ले रहे थे।

 भोला के साथी बड़े हष्ट पुष्ट और तगड़े लोग थे, वे भीड़ में घुसे और कपड़े पहने ही संगम के जल में कूद पड़े। स्नान करके वे लोग बाहर निकलने सूखे कपड़े पहन ही रहे थे कि एक तरफ बैठै एक मोटे ताजे पंडे ने उन्हें आवाज लगाई-आओ जिजमान पूजा करा लो।

 भोला जब तक कुछ कहे उसके पहले उसके कई साथी उस पण्डा के सामने तिलक लगवाने जाकर बैठ गये थे। भोला लपक कर पण्डा के पास पहुंचा ओर ध्यान से  पण्डा के पोथी वत्रा देखने लगा। न तो उस पण्डा के पास चंदन था और न पूजा की सामग्री जल भरने का कलश भी उसके पास नहीं था। भोला को वह आदमी झूठ मूठ का पंडा लगा।

सने रेत को हटाके नीचे की मिट्टी के माथे पर तिलक लगाने लगाा। भोला ने कहा-’’ पंडाजी, चंदन का टीका लगाओ’’डा गाते हुए बोला-

’’गंगा जी की रेनुका चंदन करके मान’’जब सब गाँव वासियों के तिलक लग गया तो पंडा ने कहा कि अब आप सब गाँव वाले मिलकर मुझे एक गाय दान करें।

भोला तपाक से नदी किनारे गया और एक छोटी सी मेढकी पकड़ कर हथेली पर रख लाया, फिर वह पंडित की तरह ही गाते हुये बोला-

गंगा जी की रेनुका चंदन करके मान।

 तो गंगा जी की मेढ़की, गैया करके जान।।

यह सुनकर वह पंडा बड़ा र्शिर्मन्दा हुआ, क्योंकि वह मिट्टी को चंदन बता रहा था ओर भोला ने मेढ़की को गाय बता दिया था।

फिर भोला अपने साथियों के साथ मेला घूमने चल पड़ा। कई दिन तक भोला घूम कर वापिस लौट आया। इस तरह जीवन भर तक भोला होशियारपुर वालों की मदद करता रहा।



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