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Kumar Vikrant

Romance

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Kumar Vikrant

Romance

तबाह

तबाह

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सिड आज यू एस ए की भारतीय मूल की युवतियों और महिलाओ में बहुत ही दिल फेंक आशिक के नाम से मशहूर था। अब तक वो कितनी गोरी और कितनी भारतीय मूल की युवतियों और महिलाओ से प्रेमालाप कर चुका था उसे खुद ही याद नहीं था।

"मिस्टर सिड अब तुम उम्रदराज लगने लगे हो, क्या अब भी औरतो से तुम्हारा मन नहीं भरा है? तुम पैसे वाले हो और महिलाओं के बीच पॉपुलर भी हो, लेकिन सच कहूँ तुम एक जिगोलो या पुरुष वेश्या से अधिक कुछ नहीं हो, अब भी सुधर जाओ, ये जिस्मों से खेलने का खेल छोड़ कर किसी की रूह को छू कर तो देखो, हो सकता है तुम भी जानवर से इंसान बन जाओ।" सिड से प्रेम कर बैठी भारतीय मूल की युवती मीनाक्षी ने सिड से प्रेम के नाम पर धोखा खाने के बाद तड़फ कर कहा था।

"प्रेम, क्या है प्रेम, एक धोखा एक छलावा जिसका अंत जिस्म तक पहुँचने के बाद हो जाता है.......तो क्यों उलझना इस छलावे में, एन्जॉय करो मीनाक्षी....अपनी जिंदगी जीओ मीनाक्षी।" सिड ने जोर का ठहाका लगाते हुए कहा था।

"सर्वनाश हो तेरा पापी, तुझसे प्रेम कर मैं अपनी सुध बुध के साथ अपना यौवन भी खो बैठी......तू कभी खुश ने रहे, जिस तरह आज मैं तड़फ रही हूँ ऐसे ही तड़फे तू।" कहकर मिनाक्षी सिड के जीवन से हमेशा के लिए चली गई थी।

"मेरा सर्वनाश तो बहुत पहले हो चुका है.......अब और ज्यादा सर्वनाश होने की उम्मीद नहीं है न ही परवाह है, जिस तरह वो तबाह हुआ था उससे ज्यादा तबाह होना तो संभव ही नहीं था।" सोचते हुए सिड दो साल पहले इंदिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट की उस शाम में खो गया जब एक लड़की ने उसे अदिति की चिट्ठी लाकर दी थी। 

"क्या तुम्हारा नाम सिद्धार्थ है? क्या तुम यहाँ अदिति का इन्तजार कर रहे हो?" उस दुबली पतली सी लड़की ने एयरपोर्ट के वोटिंग हाल में बैठे सिड से पूछा।

"हाँ, लेकिन तुम ये सब क्यों पूछ रही हो; कौन हो तुम?" सिड ने आश्चर्य के साथ पूछा।

"अदिति ने तुम्हारे लिए यह लेटर भेजा है......उसने अपना फोन नंबर बदल दिया है; अब न उसे फोन करना और न ही कोई मैसेज।" कहते हुए उस लड़की ने एक सफेद रंग का लिफाफा सिड को दिया और वहाँ से चली गई।

सिड ने उस जाती हुई लड़की को देखते हुए वो लिफाफा खोला; लिफाफे से मोटा सा एक कागज जो फोल्ड था, निकला।सिड ने उस फोल्ड हुए कागज को खोला, उस पर लिखा था-

'अलविदा, हम दोनों अलग-अलग दुनियां के है, हमारा मिलन संभव नहीं है।'

इस छोटे से नोट को पढ़ कर झटका लगा सिड को, आज उसे अदिति के साथ यू एस ए चले जाना था। पिछले एक साल के निरंतर प्रयास से ह्यूस्टन यू एस में रह रहे सिड को उसकी पाँच साल पुरानी दोस्त या प्रेमिका अदिति को साथ ले जाने का वर्किग वीजा मिला था।

पाँच वर्ष पूर्व जब सॉफ्टवेयर इंजीनियर सिड उसकी कंपनी की तरफ से काम करने के लिए यू एस चला गया तो अदिति के माता-पिता जो विजातीय सिड से अपनी बेटी का रिश्ता बर्दास्त नहीं कर पा रहे थे, उन्होंने तत्काल अदिति की शादी सजातीय विवेक से कर अपनी इस विकट समस्या से छुटकारा पा लिया था।

सिड के लिए अदिति की किसी अन्य व्यक्ति से शादी बहुत तकलीफ देने वाली थी लेकिन जब अदिति ने उसे अपनी विवशता बताई तो सिड ने इसे भाग्य का फैसला मान कर अदिति के जीवन से खुद को अलग कर लिया। यू एस ए में अनेक भारतीय मूल की लड़कियों से उसकी पहचान हुई लेकिन फिर से दिल टूटने के डर से उसने उन लड़कियों से अपना रिश्ता आगे न बढ़ा सका और उसने खुद को अपने काम में व्यस्त कर लिया। 

एक वर्ष पूर्व जब अदिति ने उसे बताया कि उसके पति विवेक का सबंध किसी अन्य महिला था और विवेक ने अदिति से तलाक लेकर उस महिला से विवाह कर लिया था और अब वो दोबारा उस टूटे हुए रिश्ते की डोर को थामना चाहती थी जो उनके हाथ से पाँच साल पहले निकल गई थी। 

सिड को अदिति के लिए दुख तो अवश्य था लेकिन अब वो उस दर्द से दोबारा नहीं गुजरना चाहता था जिससे वो पाँच साल पहले गुजर चुका था। उसने अदिति को सुझाव दिया जहाँ से उनका साथ छूटा था वहाँ तक वापसी अब संभव नहीं थी लेकिन वो अगर यू एस आ जाए तो हो सकता है वो दोनों फिर से उसी टूटी डोर के सिरों को थाम कर आगे बढ़ जाएं।

अदिति के हाँ कहने पर सिड को अदिति को यू एस में लाने के लिए वर्किंग वीजा से सही कोई उपाय नहीं लगा और वो उसी उपाय में एक साल लगा रहा और सफल भी हुआ।

वह एक सप्ताह पहले वह वह इंडिया में वापिस आया था और पिछले एक सप्ताह से ही वो इंडिया में रहकर अदिति को अपने साथ ले जाने के इंतजाम में लगा हुआ था। उन दोनों का आज यू एस जाने का तय था लेकिन अदिति की इस चिट्ठी ने सब कुछ उलझा कर रख दिया था।

आखिर उसने ऐसा क्यों किया? यही सोचते हुए उसने अपनी फ्लाइट का टिकट कैंसिल करवा कर अगले एक सप्ताह अदिति को उसके मिलने की हर जगह तलाश किया लेकिन वो उसे कहीं न मिल सकी।

हार कर सिड वापिस यू एस ए आ गया था, उसका जीवन सामान्य होने ही वाला था कि एक दिन उसे मोंटाना में बसे भारतीय मूल के अरबपति सुखलाल जिंदल की शादी का निमंत्रण मिला।

"अब यह आवारा बुड्ढा किस का जीवन बर्बाद करेगा, अब तक यह अपने पैसे के दम पर पाँच शादियां कर चुका है, न जाने अब किसे फंसा कर लाया है......." सिड के ऑफिस के एक एम्प्लोयी ने मुस्कुराते हुए कहा था।

"भाई सुना है इस बार इसने किसी को नहीं फंसाया है बल्कि इस बार तो यह खुद इंडिया की बहुत ही चालू लड़की के चक्कर में फंसा है, उस लड़की को ग्रीन कार्ड दिलवाने के लिए इसने बहुत ही जबरदस्त इन्वेस्टमेंट किया है।" दूसरे एम्प्लोयी ने जोर से हँसते हुए जवाब दिया था।

शादी एक विशाल रैंच पर हो रही थी, वहां शराब और शबाब का गजब मेल देखने को मिला।

जब वर वधु ने अपनी विशाल लिमो से रैंच में पैर रखे तो साठ साल के सुखलाल जिंदल के साथ दुल्हन के रूप में चलती अदिति को देखकर सिड को जबरदस्त झटका लगा लेकिन उसने अदिति के पास जाकर वर और वधु दोनों को जबरदस्त मुबारकबाद दी और वापिस जाने के लिए मुड़ा ही था कि शराब से लड़खड़ाती एक लगभग चालीस साल की औरत उससे आ टकराई और बोली, "हाय हैंडसम, लगता है जैसे मेरे पति को एक बदचलन औरत ले उडी है वैसे ही तुम्हारी बीवी को भी कोई लफंगा ले उडा है?"

"हाँ ऐसा ही कुछ समझिये मिज......." सिड ने हँसकर जवाब दिया।

"मिसेज सरिता डागा है मेरा नाम, सब एश ले रहे है.......अगर तुम चाहो तो मुझे अपने रूम में इन्वाइट कर सकते हो; हम दोनों वहाँ अपना-अपना अकेलापन दूर कर सकते है।" वो औरत अपनी शराब से लड़खड़ाती आवाज में बोली।

"मैं सिद्धार्थ हूँ, लोग मुझे सिड भी कहते है।" सिड ने सरिता को हँसते हुए जवाब दिया और दूर भीड़ में खड़ी लेकिन उसकी तरफ देखती अदिति की तरफ से मूँह मोड़ते हुए बोला, "आओ सरिता जी चलीए मेरे रूम में चलिए, देखते है तुम्हारे साथ आज की शाम कैसी बीतती है।

"बहुत ही रोमांटिक और नशीली होगी आओ चलो।" सरिता ने सिड की बाँहो में लगभग झूलते हुए कहा।


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