Ragini Ajay Pathak

Tragedy

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Ragini Ajay Pathak

Tragedy

स्वार्थी पत्नी भाग 3

स्वार्थी पत्नी भाग 3

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अनजान शहर अनजान लोगों के बीच मायानगरी मुम्बई पहुंचकर सरलाजी को आज ना जाने को बेटी के साथ साथ अपने आत्मसम्मान को बचाने का सुकून था।

रमिया सरलाजी को अपने साथ अंधेरी स्थिति अपने घर ले गयी। व्यवहार कुशल रमिया को सरलाजी का एहसान याद था कि कैसे उन्होंने राजेंद्र जी से छुपा कर उसकी बेटी के इलाज के लिए बीस हजार रुपये दिए थे। एक कमरे का छोटा सा घर देखकर सरलाजी ने रमिया से कहा," रमिया तेरा ये एहसान मैं जिंदगी भर नही भूलूंगी। लेकिन अगर तेरी पहचान में आसपास कोई रहने की दूसरी जगह हो तो बता मैं किराया दे दूंगी और हाँ कोई काम हो तो उसे भी ढूढने में मदद कर देती तो अच्छा होता कोई भी काम चलेगा।"

तब रमिया ने कहा,"मेमसाब मुझे मालूम है आपको ऐसी जगह रहने की आदत नहीं लेकिन यहाँ फ्लैट बहुत महंगे है । मेरे बजट में तो यही आता है। मेरी नजर में काम तो आप के लायक कोई नहीं है।"

सरलाजी ने कहा,"रमिया तू भूल जा की अब ये सरला राजेंद्र प्रताप की पत्नी है। ये सरला एक सामान्य तेरी तरह आम औरत है। मैं कोई भी काम करने के लिए तैयार हूं।"

कहते है जहां चाह होती है वहाँ राह खुद ब खुद मिल जाता है। रमिया ने कहा,"ठीक है मेमसाब कल चलिए मेरे साथ एक मेमसाब को खाना बनाने वाली और बच्चा देखने के लिए कोई बुजुर्ग औरत ही चाहिए शायद आपका काम हो जाए।"

रमिया के साथ सरलाजी अगले दिन वहाँ गयी। घर की मालकिन रक्षा उनकी बेटी की ही उम्र की थी । उसने सरलाजी से बहुत ही अदब और सम्मान से बात की। उनको बताया कि दो लोगो का खाना बनाने के साथ उसकी दो साल की बेटी की भी देखरेख करनी होगी।

क्योंकि रक्षा नौकरी करती थी इसलिए उसे उसकी बेटी के लिए एक सहायक की जरूरत थी।

सरलाजी को काम मिल गया। उनकी बेटी भी आसपास के छोटे बच्चों को टयूशन पढ़ाने लगी। तभी उसे पता चला मोटरसाइकिल, स्कुटर ,कार ट्रेनिंग मास्टर की उसने अब ट्यूशन के साथ साथ वो काम भी शुरू कर दिया।

सरलाजी और रक्षा अब एक दूसरे के लिए परिवार की तरह हो गए थे। रक्षा ऑफिस और घर दोनो ही जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती। जबकि उसके पति को घर के किसी भी काम से मतलब ना होता। ना ही नाते रिश्तेदारों से ।

एक दिन सरलाजी अचानक रक्षा के घर पहुंची तो उन्होंने देखा कि रक्षा के पति ने रक्षा को गुस्से में एक थप्पड़ मारते हुए कहा,"अगर तुमसे घर ऑफिस और बच्चा नही सम्भलता तो छोड़ क्यों नही देती नौकरी? तुमसे कोई भी काम ढंग से नही होता। तुमने मुझसे बिना पूछे अपने मायके पैसे क्यों दिए?"

रक्षा ने अपने आंसू पोछते हुए कहा," क्या मुझे मेरी ही तनख्वाह पर इतना भी हक़ नही की मैं अपनी मर्जी से खर्च कर सकूं, मेरे भाई को जरूरत थी तो मैंने दिया और कौन सा वो लेकर रख लेगा। बोला तो उसने की अगले महीने दे देगा। तुम भी तो अपने घर वालो को बिना बताए पैसे भेजते हो तो क्या मैं ने तुम्हे कभी मना किया है।"

लेकिन रक्षा के पति का गुस्सा आज सातवें आसमान पर था। उसने रक्षा को जोर से धक्का दिया और घर से बाहर निकल गया।

सरलाजी घर के अंदर दाखिल हुई तो रक्ष रो रही थी सरलाजी ने रक्षा बिटिया कहकर कंधे पर हाथ रखा तो रक्षा सरलाजी से लिपट कर रोने लगी।

रोते रोते रक्षा ने कहा,"मौसी क्यों हर दोष औरतों के सिर मढ़ दिया जाता है। क्यों सब कुछ करने के वावजूद औरतो के हिस्से तारीफ नही आती। शादी होते क्यों लड़की को हर बात हर काम के लिये इजाजत लेनी होती है।"

जब मैं इनके घर वालो पर पैसे खर्च करती हूं तब इनको और सबको बहुत अच्छा लगता है। लेकिन अगर मायके या खुद पर खर्च करना हो तो इजाजत लेनी पड़ती है क्यों?

सरलाजी निरुत्तर खड़ी थी उन्हें यकीन नही हो रहा था कि इतने बड़े शहर में और पढ़ी लिखी आत्मनिर्भर महिलाओं के साथ भी ऐसा व्यवहार होता है।

उन्होंने कहा बिटिया अपने अनुभवों से कह रही हूं अपने पति को खुली और कड़ी चेतावनी दे दो की तुम उसका ये व्यवहार आगे से नही बर्दाश्त करोगी। वरना जिस आदमी ने एक बार तुम पर हाथ उठाया और तुमने चुपचाप सह लिया तो वो जिंदगी भर और हर बात में तुम पर हाथ उठाएगा तुम्हें अपमानित करेगा।

गृहस्थी चलाने की जिम्मेदारी और हिस्सेदारी पति पत्नी दोनों की होनी चाहिए। किसी एक कि नही। बच्चों के कारण मैंने भी अपने पति के हर गलत व्यवहार और मारपीट को पूरी उम्र बर्दाश्त किया । मुझे लगता था इससे बच्चो का भविष्य सुधर जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। बल्कि उसका उल्टा असर ही बच्चो पर हुआ। क्योंकि बच्चा जितना सिखाने से नहीं सीखता उतना आसपास के और परिवार के माहौल को देखकर सीखता है। कहते हुए उन्होंने अपनी पूरी कहानी रक्षा को बतायी।

सरलाजी की बात को सुनकर रक्षा ने कहा,"मौसी आपने बिलकुल सही कहा अच्छा हुआ जो आपने मुझे समझा दिया और मुझे हिम्मत देने के लिए आपका शुक्रिया"

रक्षा ने अपनी आवाज बुलंद की और अपने पति को खुले एव कठोर शब्दों में चेतावनी दी कि अगर आज के बाद उसने हरकत दुबारा की तो वो उसे हमेशा हमेशा के लिए छोड़कर चली जायेगी।

सरलाजी सोचने लगी कि काश कोई उन्हे भी समझाने समझने और साथ देने वाला होता तो इतनी देर ना होती या बात को बिगड़ने से पहले ही सम्भाला जा सकता था।

देखते देखते तीन सालों में सरलाजी ने चाल से हटकर एक फ्लैट किराये पर ले लिया। और अब छोटे बच्चों के लिए दे केयर का काम घर से ही शुरू कर दिया। अचानक सात सालों बाद उनके फोन पर एक फोन आया। जो फोन उनके बेटे का था उसने कहा," मां मैं आ रहा हूं आपको लेने।"

जिसे सुन सरलाजी भावनाशून्य हो गयी। क्रमशः



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