स्वाहा की उत्तपत्ति कथा
स्वाहा की उत्तपत्ति कथा
यह बात तब की है जब यज्ञ में दी गई आहुति देवो तक नहीं पहुंचती थी। परंतु ब्रह्मा विष्णु महेश अर्थात त्रिदेव तक पहुंचती थी। यज्ञ का भाग ना मिलने के कारण समस्त देव चिंतित हो उठे क्योंकि बिना भाग के देवताओं का अस्तित्व समाप्त हो सकता था । देवता मात्र और मात्र औपचारिकता बनकर रह जाते । समस्त देव अग्नि देव की ओर देखते परंतु अग्निदेव भी इसका कोई मार्ग ना बता पाते । देवराज इंद्र भी चिंतित से ही रहते। अब उपाय करें तो क्या करें ? अपने इन्हीं प्रश्नों से समस्त देव व्याकुल से हो उठते।
एक बार समस्त देव अपनी समस्याओं का हल लेने परम पिता ब्रह्मा जी की शरण में गए और उन्हें अपना सारा दुख बताया तब ब्रह्माजी भी कुछ समझ नहीं पाए तब मैं सब वैकुंठ धाम में श्री हरि नारायण के समीप गए उन सब के आने का कारण जानकर भगवान नारायण ने उन सभी से मीठे शब्दों मैं कहां - " हे देवो ! अग्नि देव की कोई भी अर्धांगिनी नहीं है और बिना अर्धांगिनी के पुरुष आधा होता है तभी यज्ञ में अग्नि देव को दी जा रही आहुति अग्निदेव तक पहुंच नहीं पा रही। हे देवों ! अग्नि देव को विवाह करना होगा परंतु अग्नि देव विवाह किस्से करें ? यह बात मात्र श्री श्यामसुंदर ही बता सकते हैं इसलिए आप सभी भगवान श्री कृष्ण के पास गोलोक में चले "।
भगवान नारायण की बातें सुनकर समस्त देव गोलोक में श्री कृष्ण भगवान के सम्मुख आ गए। तब श्री कृष्ण ने उनकी सारी व्यथा जान ली तब श्री कृष्ण ने कहा - " देवो ! यह समस्त सृष्टि पुरुष व प्रकृति के मेल से निरंतर रूप से चलती है बिना प्रकृति के पुरुष कुछ भी करने में असमर्थ हैं। इसलिए अग्निदेव को किसी स्त्री से विवाह करना होगा जो अग्निदेव को संपूर्ण कर दें। जब तक अग्निदेव संपूर्ण नहीं हो जाते तब तक आपको यज्ञ में भाग नहीं मिलेगा" ।
अब भी समस्या तो यही थी कि अग्नि देव का विवाह किससे किया जाए तब समस्त देवों ने श्री श्याम सुंदर से उपाय मांगा तब कृष्ण ने सभी देवताओं को भगवती भुवनेश्वरी की आराधना करने का आदेश दिया। भगवान श्याम सुंदर का आदेश पाकर समस्त देव भगवती भुवनेश्वरी की आराधना करने लगे । देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर भगवती भुवनेश्वरी ही भगवती स्वाहा के रूप में प्रकट हुई । उन्हें अपने सम्मुख देख समस्त देव प्रसन्न हुए तब ब्रह्माजी ने भगवती स्वाहा से अग्नि देव की पत्नी बनने का आग्रह करें तब भगवती ने ब्रह्मा जी से कहा - "देव ! मुझे आपका आग्रह अस्वीकार है । मैं तो भगवान श्री कृष्ण की अर्धांगिनी बनने का गौरव पाना चाहती हूं उनकी अर्धांगिनी बनने का गौरव प्राप्त करने के लिए मैं भगवान कृष्ण की तपस्या करूंगी।
इस प्रकार कहकर भगवती स्वाहा भगवान श्री कृष्ण की आराधना करने लगी। वह एक टांग पर खड़ी होकर भगवान श्याम सुंदर की तपस्या करने लगी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर श्यामसुंदर भगवती स्वाहा के समक्ष प्रकट हुए और बोले - " देवी ! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हु और तुम्हारे समक्ष प्रकट हु। मैं तुम्हे वरदान देता हूं कि तुम वराह कल्प में मेरी अर्धांगिनी बनोगी तबतक तुम अग्नि देव की अर्धांगिनी बनो । तुम्हारे बिना अग्नि देव कुछ भी नही कर सकते " ।
तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा के अनुसार अग्निदेव स्वाहा का विवाह हुआ।
इस प्रकार भगवती स्वाहा की उत्तपत्ति हुई।
