स्वाभिमान
स्वाभिमान
उस दिन मनोरमा खुशी-खुशी अपने पति राघव के साथ बाजार निकली। बहुत दिनों बाद राघव को अपने ऑनलाइन व्यापार में कुछ आर्डर मिले थे और वह उम्मीद कर रहा था कि इस महीने का खर्च बिना तनाव हो पाएगा । दुकान से सामान लेकर बाहर निकलते ही एक हट्टे- कट्टे भिखारी ने उन्हें रोक लिया। राघव ने भी बिना सोचे समझे छुट्टा बचा 20 रुपए का नोट जो अभी उसके हाथ में ही था भिखारी को थमा दिया। लेकिन यह क्या... भिखारी ने उसी समय वह 20 रुपए का नोट जमीन पर फेंक दिया...और बोला- यह क्या दे रहे हो।
इससे मेरा काम नहीं चलेगा। देना है तो 50 रुपए दो। अपनी गाढ़ी कमाई के 20 रुपए यूं जमीन पर पड़े देखकर राघव के कान गुस्से से लाल हो गए। तो क्या अब भिखारी यह तय करेंगे कि उन्हे कितने रुपए की भीख चाहिए। अवश्य ही इस भिखारी का पेट बिना कुछ किए-धरे ही आवश्यकता से ज्यादा भर गया है..उसने सोचा। अभी वह गुस्से मे कुछ अंट- शंट बोलने ही वाला था कि मनोरमा ने उसका हाथ दबा कर आंखों से शांत रहने का इशारा किया। राघव ने खुद को शांत करते हुए ₹20 का नोट जमीन से उठाकर माथे से लगाया, जेब में रखा और मनोरमा का हाथ पकड़कर आगे चल दिया। आज उसने निश्चय कर लिया कि आइंदा वो किसी भिखारी को अपने स्वाभिमान की हत्या नहीं करने देगा।
