वो लड़का
वो लड़का
भयभीत हिरनी सी उसने इधर-उधर नजर घुमाई, और फिर तेजी से आती हुई बस में चढ़ गई !
बस में पुनः उसने चारों तरफ देखा ! सुकून की सांस ली, और एक सीट लेकर बैठ गई !
बस ने धीमे-धीमे चलना शुरू ही किया था कि वो दौड़ता हुआ आया और बस में चढ़ गया !
पिछले पंद्रह दिनों से वह इसी तरह उसका पीछा कर रहा था !
उसी बस स्टॉप पर आता ! उसे कनखियों से देखता खड़ा रहता और उसकी बस में भी चढ़ जाता ! उसके बस से उतरकर कॉलेज में घुसते ही जाने कहां गायब हो जाता !
वह इस सब से बहुत घबरा गई थी ! घर में कुछ कहती तो मां, बाबा पक्का कॉलेज जाना बंद करा देंगे ! कितनी मुश्किल से तो भेजने के लिए माने थे !
"उसे ही कुछ करना होगा !"
उसने निश्चय किया !
"सुनो ! तुम !"
उस दिन बस से उतरते ही उसने पूरी हिम्मत से उसे ललकारा !
"जी कहिए !"
वह भी पूरी हिम्मत से तन कर खड़ा हो गया ! "कैसा बेशर्म है !" उसने सोचा..
"हाँ तुम ! ये रोज-रोज मेरा पीछा क्यों करते हो?
"मैं ! पीछा ! कब !"
"वाह ! भोले ना बनो ! रोज उसी बस में चढ़ते हो कि नहीं जिसमें मैं चढ़ती हूं !"
वह भी आज गुस्से में थी !
"हां ! तो ! उसमें तो तीस-चालीस और लोग भी चढ़ते हैं.. उनसे पूछा?"
"अररे !"
"अररे-वररे कुछ नहीं ! उधर देखो ! इस सड़क के मोड़ पर जो कला-विद्यालय है, मैं वहां पढ़ता हूं ! अब बस से ना आऊं तो क्या पैदल आऊं !"
"पढ़ाई में ध्यान लगाओ.. समझी ! और जासूसी नाॅवल पढ़ना बंद करो !" कहकर वह चलता बना।