देने का सुख
देने का सुख
लंबे लॉकडाउन के बाद जब कॉलेज खुला तो अंतिमा अपनी साड़ी का ड्राअर खोलकर कंफ्यूज हो गई !
इतने दिनों से साड़ी पहनने का कोई काम नहीं पड़ा था तो सब गड़बड़ हो गया ! थोड़ा वजन बढ़ने से पुराने ब्लाउज के फिट आने की संभावना कम थी ! वैसे भी सुबह जल्दी जल्दी उठकर भागम-भाग करने की आदत छूट चुकी थी तो घर का काम निपटाते-निपटाते ही काफी टाइम हो गया और अब साड़ी पहन कर तैयार भी होना था ! हड़बड़ी में उसने जल्दी से ब्लाउज पहना और फिर एक मैचिंग साड़ी जैसे तैसे मिलाते हुए पहनी ! अभी वो तैयार हो ही रही थी कि अपूर्व की नजर उस पर पड़ी ! "ये क्या पहन कर जा रही हो यार !"
"पूरी अलमारी तो साड़ियों से भरी पड़ी है और पहनने के लिए ये साड़ी !"
अंतिमा कुछ बोले इससे पहले ही उसका बिगड़ा मूड देखकर अपूर्व दार्शनिक अंदाज में मजाक करता हुआ बोल पड़ा-
"देख लो भई ! आजकल जीवन का कोई भरोसा नहीं ! यूं ही नई साड़ियां अलमारी में टंगी रह जाएंगी !"
अंतिमा ने घूर कर देखा तो अपूर्व झट से जाकर अपने लैपटॉप पर बैठ गया !
अंतिमा ने कुछ सोचते हुए शीशे में स्वयं को देखा !
"सचमुच कितनी घिस गई है ये साड़ी ! वो भी जल्दबाजी में कुछ भी पहन लेती है !"
उसने वो साड़ी उतार कर फेंकी और अपनी मेड माया को आवाज दी-"माया !
"जी दीदी !"
माया आकर खड़ी हो गई !
"ये साड़ी ले जा और काटकर पोंछे में डाल दे !"
माया ने साड़ी उलट-पुलट कर देखी और धीरे से बोली-
"ये तो बिल्कुल ठीक है दीदी ! मैं पहनने के लिए ले जाऊं?"
"ओह्ह !"
अंतिमा को झटका लगा !
उसने ये बात पहले क्यों नही सोची !
उसके लिए बेकार चीज किसी और के लिए कितनी काम की हो सकती है !
"हां-हां ले जा !"
वो जल्दी से बोली !
साड़ी ले जाती माया के चेहरे की हंसी ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया !
कुछ सोचते हुए उसने घड़ी पर नजर डाली ! अब समय पर कॉलेज पहुंचना असंभव था ! जल्दी से अपनी छुट्टी का संदेश भेजा और अलमारी खोलकर बैठ गई !
"ये साड़ी भी पुरानी हो गई है..."
"ये घिस गई है..."
" इसे पहनते-पहनते दस साल हो गए हैं..."
"यह कलर तो बिल्कुल पसंद ही नहीं है..."
"यह चटकीली वाली जो मौसी जी ने दी थी वह तो वह पहन ही नहीं सकती.."
इस तरह छाँटते-छाँटते लगभग बीस साड़ियां ऐसी निकल आईं जो शायद उसे कभी भी नहीं पहननी थीं ! उसने सबको मिलाकर बंडल बनाया और फिर माया को आवाज दी-
"माया !"
माया भागती हुई आकर खड़ी हो गई !
"जी दीदी !"
"माया ! यह साड़ी का बंडल ले जा ! तेरे काम आ जाएगा !"
"इत्ती सारी साड़ी !" माया की आंखें फैल गयीं ! वो अविश्वास से देखती रह गई !
"हां-हां ! ले जा ! मेरे काम की नहीं है !"
अब खुशी से माया का चेहरा दमक उठा !
और वो बंडल उठाकर इतराती सी चल पड़ी !
अंतिमा के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई !
अच्छा हुआ, जो आज सुबह सुबह अपूर्व ने टोक दिया जिस कारण वो एक नेक काम कर पाई !
गुनगुनाते हुए उसने दो कप बढ़िया कॉफी बनाई और लेकर अपूर्व के पास आई, जो अपने लैपटॉप पर बैठा चुपचाप अपने ऑफिस का काम निपटा रहा था ! और उसे कॉलेज ना जाते देख उसके बिगड़े मूड को समझ पछता रहा था कि ख्वामखाह मैंने सुबह-सुबह क्यों टोक दिया !
"थैंक्स अपूर्व !"
कॉफी का मग अपूर्व की ओर बढ़ाती हुई अंतिमा बोली !
अपूर्व ने चौंक कर उसकी ओर देखा ! दोनों की आंखें मिली और समझदारी की समझ के साथ दोनों हँस पड़े !
सचमुच देने का सुख मन को कितना सुकून देता है !