हिचकियाँ
हिचकियाँ
(कहानी)
" हिच.. हिच.... अरे वाह! हिचकियां आ रही है, यानी कि फिर मुझे कोई याद कर रहा है!" पढ़ते-पढ़ते नेहा ने अपनी किताब, कलम, कॉपी सब बंद करके रख दी!
अब पढ़ाई थोड़ी देर बाद होगी! अभी तो वो इन हिचकियों का आनंद लेगी! यानी कि कुछ पल उसके साथ बिताएगी जो उसे याद कर रहा है! नेहा अपने आपसे बातें करते हुए मुस्कुरा पड़ी! उसने इन खूबसूरत पलों में एक प्यारा सा प्रेम गीत गुनगुनाने की कोशिश की परंतु लगातार आती हिचकियां के कारण लय कुछ थमी नहीं जबकि हिचकियां कुछ और तेज हो गई थीं! लगता था, जैसे याद करने वाला और अधिक व्यग्र हो उठा हो!
और याद करो बच्चू! आज मैं तुम्हारा नाम हरगिज़ नहीं लूंगी! नेहा विजेता की भांति बुदबुदा रही थी!
कुछ दिन पहले तक हिचकियां आने पर नेहा कितनी परेशान हो जाया करती थी! माँ कहती थी- नेहा परेशान मत हो! कोई तुझे याद कर रहा होगा! थोड़ी देर में हिचकियां मिट जाएंगी!
"ओहो मां! तुम भी क्या दकियानूसी बातें कर रही हो! कोई याद कर रहा होगा.. हुँह!मुझे तो लगता है मेरे गले में ही कोई खराबी है! "
एक बार तो वह डॉक्टर के पास जाकर अपने गले का पूरा चेकअप भी करवा आई थी! डॉक्टर बोला था- आपका गला बिल्कुल ठीक है नेहा जी! फिर भी अब जब हिचकियां आ रही हो उसी वक्त आइएगा!
वाह रे डॉक्टर!
नेहा ने सोचा था! हिचकियां क्या मुझे सुबह से रात तक आती रहती हैं, अरे! जब तक वो क्लीनिक तक आएगी और बाहर मरीजों की लाइन में लगेगी तब तक तो हिचकियां बंद!
एक बार तो हिचकी आने पर परेशान होकर उसने अपनी माँ की बात भी मान ली थी! माँ कहती थी- "जो तुझे याद करता होगा अगर तू उसका नाम लेकर बोले, कि 'अमुक व्यक्ति मुझे याद कर रहा हो तो हिचकी रुक जाए तो हिचकी रुक जाती है'! "
उस दिन उसने अपनी सारी सहेलियों के नाम ले डाले, रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों तक को नहीं छोड़ा, कॉलेज में जो टीचर्स और प्रोफेसर्स उसे पहचानते तक नहीं थे उनके नाम भी ले लिए! आखिर मैं यहां तक कह दिया कि अगर दुनिया के किसी छोर से कोई मुझे याद कर रहा हो तो हिचकी रुक जाए!
पर नतीजा.. नदारद! हिचकियां बंद हुई तो कुछ देर बाद अपनी मर्जी से ही!
धीरे-धीरे नेहा इसकी आदी हो गई और उसने हिचकियों के बारे में ज्यादा सोचना ही छोड़ दिया और उसकी हिचकियाँ भी शायद अपनी उपेक्षा ना सह सकीं और अब यदा-कदा ही आती! लेकिन काफी दिनों बाद उस दिन रात के ग्यारह बजे जब नेहा सोने के लिए बिस्तर पर पहुंची तो अचानक हिचकियां फिर शुरू हो गईं!
"ओ हो! अब रात के ग्यारह बजे मैं इनका क्या इलाज करूं! इस वक्त तो कोई याद भी नहीं करेगा! भला किसी को क्या पड़ी है की आधी रात को अपनी नींद बिगाड़े!" नेहा बड़बड़ा उठी! लेकिन... कहीं... नलिकान्त तो मुझे याद नहीं कर रहा, उसे अचानक ख्याल आया! अभी कुछ ही दिन पहले तो नलिकान्त ने उसे प्रपोज किया था, और नेहा ने उसे टाल दिया था! हो ना हो इस वक्त उसे नलिकांत ही याद कर सकता है! नेहा ने सोचा- चलो मम्मी का बताया उपाय एक बार फिर आजमाते हैं! उसने एक-दो और लोगों का नाम लेने के बाद कहा- अगर सचमुच नलिकान्त मुझे याद कर रहा हो तो हिचकियाँ रुक जाएं! और आश्चर्य! नेहा ने इंतजार किया- एक मिनट! दो मिनट! हिचकी अब आई!तब आई! लेकिन हिचकी नदारत! सचमुच हिचकियाँ पूरी तरह थम चुकी थी!
नेहा के मन में निलय के प्रति ढेरों प्यार उमड़ आया! बेचारा, इतनी रात गए तक मुझे याद करता है! और एक मैं हूं कि उसकी परवाह ही नहीं! उसका मन हुआ निलय उसे अभी मिल जाए और वो उससे कहे- निलय! मुझे नहीं पता था कि तुम मुझे इतना प्यार करते हो! मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है!
यह सच है कि वो रात नेहा ने निलय को याद करते हुए ही काटी थी! उस दिन के बाद नेहा को अपनी हिचकियों से बेहद प्यार हो गया था! अब अगर हिचकियां नहीं आती तो उसे निलय पर बेहद गुस्सा आता- दुष्ट! मुझे याद भी नहीं करता, वो सोचती! अब नेहा अपनी हिचकियों का बेसब्री से इंतजार करती! इससे उसे निलय के सामीप्य का सुख जो मिलता था! और आज इतने दिनों बाद अचानक हिचकियां आने लगी तो वह खुशी से उछल पड़ी! उसे लगा जैसे नलिकान्त ही आ गया है और जितनी देर हिचकियाँ आती रहेंगी उतनी देर उसके पास रहेगा! उधर बगल के कमरे से मां के पुकारने की आवाज आई, नेहा बेटे! पानी पी ले! शायद हिचकियां रुक जायें! यह मरी हिचकियां भी ना समय देखती है ना... उसका मन हुआ कहे- नहीं मां! मेरी इन हिचकियों को मत कोसो! क्योंकि इन्हीं के कारण तो मुझे निलय जैसा प्यारा साथी मिला है! नेहा ने अपनी आंखें सुकून से बंद कर ली और निलय के बारे में सोचने लगी! बगल के कमरे में शांति थी! मां शायद सो गई थी! तभी अचानक फोन की घंटी बजी!
इस वक्त... नेहा ने सोचा!
ओह निलय का फोन! नेहा ने दौड़कर फोन उठाया- "हैलो निलय!"
"अरे नेहा! तुम्हें कैसे पता चला कि मैं बोल रहा हूं?" दूसरी ओर सचमुच निलय था! "मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है निलय!" कहकर नेहा ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया!