Anju Agarwal

Drama

3  

Anju Agarwal

Drama

हरियाली तीज

हरियाली तीज

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आज सुरेखा बहुत दुविधा में थी...

 हरियाली तीज आने में सिर्फ पंद्रह दिन रह गए थे! हर साल तीज पर उसकी ननदें घर आती थी और इसी कारण उसकी सासु माँ ने कभी तीज पर उसे अपने मायके नहीं जाने दिया! उसने भी इसे ही नियति मानकर सब की खुशी में खुश रहना सीख लिया था! 

"कोई बात नहीं, तीज में ना गई तो ना सही राखी पर चली जाऊंगी! इस जरा सी बात पर विवाद करने से ख्वामखाह संबंधों में कड़वाहट बिखरेगी" यह सोचकर वह हर बार अपना मन मार जाती! और तीज के दिन सारा ध्यान अपने मायके में लगा रहने पर जी जान से सब की आवभगत में लगी रहती और हंसती खिलखिलाती रहती! 

लेकिन 'रक्षाबंधन' आते-आते फिर किसी न किसी ननद का आने का प्रोग्राम बन जाता और वह फिर रह जाती! 

पोस्ट ऑफिस से भाई को राखी भेजती और बुझे मन से स्वयं को समझाती-'कोई बात नहीं! अब अगर वह इतनी दूर ना होती तो अपनी दूसरी बहनों की तरह झट जा कर भाई को राखी भी बांध आती और ससुराल में ननदों को भी संभाल लेती! लेकिन अब घर में ननदें आए तो वह भला कैसे जा सकती है वे बेचारी भी तो त्यौहार मनाने ही आ रही है!' उसके सास-ससुर ननदें सब उसकी मनोदशा से अनभिज्ञ रहते या अनभिज्ञ ही बने रहना चाहते! 'कोई उसकी भावनाओं की कदर क्यों नहीं करता'... वह सोचती! 

हां! पति मयंक जरूर उसकी भावना समझते और कहते- तुम्हें जाना है तो जाओ ना! काफी पहले ही अपना रिजर्वेशन करा लो, और कह दो, इस बार जाना है.. बस! पर तुम ही तो हमेशा कहती हो.. पहले तीनों दीदियों का प्रोग्राम देख लूँ! और पिछले साल तो इसी चक्कर में ना तुम जा पायी और ना ही कोई यहां आया! लेकिन सुरेखा जानती थी कि इस तरह से यदि वह निर्णायक रूप से अपने जाने की बात कह देगी तो सबको बहुत बुरा लगेगा! तीज पर वह कुछ देर के लिए वीडियो कॉलिंग करके ही मायके में मम्मी-पापा भाई और बहनों की मस्तियां देख लेती थी! भाभी तो तीज पर ज्यादातर अपने मायके जाती थीं पर सब बहनों के शहर में ही होने के कारण सब मम्मी के यहाँ इकट्ठा हो जाते और अच्छी रौनक जम जाती थी! 

पर वह वीडियो कॉल भी ढंग से कहां कर पाती थी! दस मिनट में ही आवाज आ जाती- अरे बहू! कहां हो! सब तुम्हारे हाथ की अदरक की चाय मांग रहे हैं... और वह फिर दौड़ पड़ती!

 लेकिन पिछले साल ससुर जी और चार महीने बाद ही सासूजी के जाने के बाद अब फिर से तीज आने वाली है! अब तक सासु जी के होने से वह बेफिक्र अपने मायके जा सकती थी! पीछे से मयंक के खाने की, घर की कोई फिक्र नहीं थी! सासू माँ सब संभाल लेती थीं! भले ही वह तीज पर मायके ना जा पाती थी पर आगे पीछे तो चली ही जाती थी! पर अब तो कमान उसके हाथ में थी! अब वो आराम से तीज पर मायके जा सकती है! एक दो दिन तो मयंक संभाल ही सकते है! पर..हर साल तीज पर आने वाली ननदों का क्या करे! उन्हें तीज पर बुलाए या अपने मायके जाए... तीन दिन से वह इसी दुविधा में थी! मयंक से सलाह ली तो उन्होंने साफ कह दिया - तुम जैसा चाहो करो मुझे कोई आपत्ति नहीं है! आखिरकार कुछ निर्णय करके उसने बड़ी ननद को फोन लगाया... जीजी प्रणाम! तीज पर आ रही है ना! हम सब प्रतीक्षा में हैं! एक पल को उधर खामोशी छा गई! मानो माँ के जाने के बाद दीदी को उसके निमंत्रण की आशा ही नहीं थी 'हां-हां सुरेखा, क्यों नहीं! मैं छोटी से बात करके तुम्हें अपना प्रोग्राम बताती हूं' दीदी ने जवाब दिया! दो घंटे बाद ही दीदी का फोन आ गया- सुरेखा! हम तीनों बहनें हर बार की तरह तीज पर जरूर आएंगे! पर शर्त ये है कि इस बार तुम भी तीज पर अपने मायके जरूर जाओगी! हमें पता है कि तीज पर तुम भी अपने मायके को कितना मिस करती हो! मां बाबूजी की वजह से हम कभी कुछ बोल नहीं पाये! पर अब ध्यान से सुनो- हमारा प्रोग्राम छः दिन का है तो तुम तीन दिन के लिए अपने मायके का प्रोग्राम बना लो! इस बीच घर हम लोग संभाल लेंगे! फोन पकड़े पकड़े सुरेखा की रुलाई फूट पड़ी! रिश्ते बचाने की उसकी पहल आखिर सार्थक हुई थी इतने समय बाद ही सही उसकी भावनाओं की कद्र तो हुई!



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