बहू (लघु कथा)
बहू (लघु कथा)
देखिये बहन जी! मोनिका पढ़ी लिखी है, नौकरी करती है, इसका मतलब यह तो नहीं कि हमारी इज्जत ही नहीं करेगी।
अब सुबह नौ-नौ बजे उठने का भला कोई टाइम है।
हम तो सुबह पांच बजे उठकर चाय बनाते थे, तब सबको उठाते थे।
आखिर बहू को तो बहू की तरह ही रहना पड़ेगा।
यह क्या कि हमें एक कप चाय का भी सुख नहीं है।
सुबह-सुबह जब मोनिका ने उसे फोन करके तुरंत आने को कहा तो वह भागी भागी आ गई, और अब उसकी सासू मां के सामने बैठी थी।
जी बहन जी। आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं।
मुझे भी मोनिका ने बताया था कि उसका ऑनलाइन ऑफिस का काम अक्सर रात तीन बजे तक चलता रहता है और इसलिए वह सुबह देर से उठ पाती है..
पर यह तो गलत है। सुबह की चाय तो बहू को बनानी ही चाहिए। आप फिकर मत करिए, मैंने मोनिका को समझा दिया है।
अगले महीने से वो नौकरी छोड़ देगी।
अरे! यह क्या कह रही हैं आप।
नहीं नहीं।
नौकरी छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है।
चाय का क्या है,
अरे, मैं ही बना दिया करूंगी।
वैसे भी इस उम्र में नींद कहां आती है।
सासू माँ लपक कर बोली।