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MAHENDRA CHAWDA

Inspirational Children

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MAHENDRA CHAWDA

Inspirational Children

"स्वाभिमान....."

"स्वाभिमान....."

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विक्रांत मुंबई के एक मशहूर फैशन डिज़ाइनर थे। एक बार स्वतंत्रता-दिवस के मौक़े पर, एक फैशन डिज़ाइनिंग यूनिवर्सिटी में वे बतौर चीफ़ गेस्ट आमंत्रित हुए। वो 15 अगस्त की सुबह नियत समय पर अपने घर से स्वतंत्रता-दिवस के कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए रवाना हुए। उन्हें यूनिवर्सिटी पहुँचकर ध्वजारोहण करना था। गाड़ी अपने गंतव्य की और बढ़े जा रही थी। तभी राह में पड़ने वाले चौराहे पर कुछ पलों के लिए उनकी गाड़ी बिलकुल धीमी हुई। | इस दरम्यान वहाँ पास ही में, हाथ में बहुत सारे तिरंगे लिए खड़े 8-10 साल के मासूम-से बच्चे ने तिरंगा बेचने के लिए मासूमियत से उनकी ओर देखा। उसकी मासूमियत को देखकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। अब उन्होंने ड्राइवर को गाड़ी साइड में लगाने का इशारा किया। वो लड़का पास में आया व उन्हें एक तिरंगा थमाया। उन्होंने उसके दाम चुकाकर उससे पूछा:- “लड्डू खाओगे बेटा...!!”

“नहीं सेठ जी, मुझे जल्दी से जल्दी इन तिरंगों को बेचकर अपनी बीमार बहन की दवाइयों के लिए 400 रूपए जमा करने हैं..!” ( हाथ में डॉक्टर का पर्चा बताते हुए..)

इस पर विक्रांत करुणा से भर उठे, “ओह नो...सो सैड.....!”

फिर उन्होंने 500 रूपए का नोट निकाला व बड़े प्यार से उसे देते हुए इनसे दवाइयाँ खरीदने के लिए बोले। इस पर उस मासूम ने तपाक से जवाब दिया:-

“सेठजी मुझे फ्री का पईसा नहीं चाहिए..!! गरीब हुए तो क्या...अपनी भी इज्जत है...!!”

   विक्रांत अब तो असमंजस में पड़ गए....,” अब करे तो क्या करे....!!”

   फिर उन्होंने ड्राइवर को आहिस्ता से कुछ इशारा किया। इधर-उधर की कुछ बातें करने के बाद ड्राइवर ने अपनी कॉलोनी के बच्चों को तिरंगा बांटने के बारे में विक्रांत जी को बताया। ये सुनकर वो लड़का ख़ुश हुआ कि अब तो उसके ये तिरंगे हाथोंहाथ बिक जाएंगे। फिर ड्राइवर ने उन सभी तिरंगो के दाम चुकता कर हुए उन्हें खरीद लिया। 

   अब वो मासूम लड़का ख़ुश होकर वहाँ से चला गया। 

   उसके जाने के बाद विक्रांत ने तिरंगों के रुपये ड्राइवर को देते हुए उन तिरंगों को बच्चों में बांट देने के लिए बोला। इस चक्कर में उन्हें यूनिवर्सिटी पहुँचने में 20 मिनट की देरी हो चुकी थी। विक्रांत ने वहाँ पहुँचकर देरी के लिए क्षमा मांगी, पर किसी को भी इस बारे में कुछ भी बताया नहीं.। लेकिन संयोगवश, उस दरम्यान वहाँ से गुजर रहे किसी स्टूडेंट को यह बात मालूम चल चुकी थी, जिसके मार्फ़त ये बात वहाँ उपस्थित सभी लोगों को मालूम चल चुकी थी। फिर, वहाँ पर उपस्थित जनसैलाब ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका ज़ोरदार स्वागत किया। फिर विक्रांत जी ने ध्वजारोहण की रस्म अदायगी की। 

   विक्रांत जी ने अपने अनुकरणीय कार्य से “सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्ता हमारा” की परिकल्पना को चरितार्थ करते हुए वहाँ उपस्थित दिलों पर देशभक्ति की अमिट छाप छोड़ चुके थे। 



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