" सोच..."
" सोच..."
आज से लगभग दस साल पहले की बात है| ये घटना उस समय की है जब मैं सिटी बस में सफ़र करके ऑफिस जाता था| इस रूट पर चलने वाली एक बस के ड्राइवर साहब बहुत ही गजब के जोशीले थें| उम्र तक़रीबन 70 साल से ऊपर रही होगी। डर बिलकुल भी नहीं था। भरी भीड़ और शहर में सिटी बस को ऐसे उड़ाते थें मानों हवाई जहाज उड़ा रहे हो। ड्राइविंग भी बहुत सधी हुई होती थी। मेरी तो उस बस में सफ़र करने की आदत थी, अतः कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। कई सवारियों को डरते हुए ज़रूर महसूस करता था। एक बार की बात है, किसी ने उनको धीरे चलाने के लिए अनुरोध किया। एक ने कहा तो पीछे के पीछे कुछ और लोगों ने गाड़ी तेज न चलाने के लिए कहा। यहाँ की पब्लिक है ही ऐसी। अगर कोई एक बोलता है तो पीछे दस लपकते हैं...!! लेकिन, मजाल है जो वो गाड़ी धीरे कर दे। कहने के बाद वो भला कहाँ मानने वाले थें। कतई नहीं..। लोग चिढ़ रहे थें, और वो अपनी धुन में चल रहे थें। मैं ये सब देख रहा था व चुप था, क्योंकि मेरा मानना था कि बड़ी उम्र के इंसान ( सीनियर सिटीजन ) या फिर बड़े ओहदे के व्यक्ति को या फिर बड़ी हैसियत वाले व्यक्ति को कुछ भी कहना उससे पंगा लेने के सामान है। मेरा ये भी मानना था कि इस श्रेणी के लोग वही करते है जो उनकी इच्छा होती है। सुनते तो किसी के बाप की भी नहीं है। अतः मैं चुप था। फिर मैंने सोचा कि एक बार मैं भी ट्राई मारकर देखता हूं। चूँकि, मैं आगे पास ही में बैठा हुआ था, अतः बात करने में कोई दिक्कत नहीं आई। फिर हमारे बीच बातचीत होती है। शुरुआत मैं कुछ इस तरह से करता हूं :-
" ड्राईवर साहब, आपके बाल-बच्चे तो काफ़ी बड़े होंगे। "
" हाँ यार...!! , बच्चों की शादियाँ भी हो चुकी है। नाती-पोतें भी है। "
" तभी तो ....!! " ( मैं धीरे से बोला )
" क्या मतलब ..? " ( वो बोले )
" तभी तो गाड़ी को हवा में उड़ा रहे हो...। आप तो जिम्मेदारियों सेमुक्त हो। हमारे बाल-बच्चे तो अभी छोटे है, जिम्मेदारियां निभाना बाकी है। थोड़ा रहम करो भाई साहब ..!!
जैसे ही ऐसा कहा वो हँसे और गाड़ी धीरे ...!!
कुल मिलाकर सार ये है कि सलाह मांगने पर मैं हमेशा यही कहता हूँ कि उपरोक्त श्रेणी के लोगों से कभी भी पंगा नहीं लेना चाहिए। इनके पास ऐसे-ऐसे फार्मूलें होते है, जिनकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता है। ये अपनी मूल विचारधारा में ही रहते हैं।
