" जीवन प्रबंधन और जीवन...."
" जीवन प्रबंधन और जीवन...."
एक बार की बात है, देश के जाने-माने किसी प्रबंधन-संस्थान में प्रबंधन विषय की क्लास चल रही थी। कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि कुछ स्टूडेंट्स के भीतर विभिन्न तरह की जिज्ञासाएं छिपी होती है। ऐसे स्टूडेंट्स विषय की " बाल की खाल " निकालने में माहिर होते हैं। रोहन भी कुछ इसी तरह का छात्र था। इस विषय को पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर साहब भी धीर-गंभीर प्रवृति के होने के साथ ही साथ इस विषय का गहन अनुभव रखने वाली शख्सियत थें। रोहन ने अपनी जिज्ञासाओं को रखते हुए पूछा :-
" सर, आजकल हर क्षेत्र में लाइफ-मैनेजमेंट की बात होती है। वास्तव में ये है क्या.. ? और हमारे रोजमर्रा के जीवन में यह कितनी महत्ती भूमिका निभाता है ?
इस बात का जवाब प्रोफ़ेसर साहब ने बहुत ही रोचक तरीके से कुछ इस प्रकार दिया :-
लाइफ-मैनेजमेंट वास्तव में खुद को अनुशासित रखने की विधि है। ये मस्तिष्क में इस हेतु काबिलीयत विकसित करने की विधि है, जो सततता और निरंतरता की मांग करती है। जब कोई भी इंसान इसमें पारंगत हो जाता है तो फिर उसके जीवन से बाधाएं खुद-ब-खुद कम होने लगती है। बाधाएं कम ज़रूर हो सकती है, इनका रूप बदल सकता है, किन्तु बाधाएं रहती ही है। सही में ये जीवन की चुनौतियों से लड़ने हेतु विकसित किया जाने वाला तंत्र है। दुनिया में लगभग-लगभग हर इंसान किसी न किसी रूप में प्रेशर में रहता है| आलसी आदमी में भी कोई कम प्रेशर नहीं रहता है, उस पर तो सबसे ज़्यादा प्रेशर रहता है, हे बाबा ! आखिर करूं भी तो क्या करूं..! दुनिया में जो भी चलायमान अवस्था में है, वे सभी के सभी इस प्रेशर की ही देन है। सवाल बस यही है कि इस प्रेशर से निकलने वाली ऊर्जा कैसी है..? सकारात्मक या नकारात्मक ? सकारात्मक है तो बहुत अच्छा है। और यदि ऐसा नहीं है तो लाइफ मैनेजमेंट जैसे तंत्र ही इस नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में तब्दील करने का सटीक मंत्र है।
यह सुनकर पूरा का पूरा हॉल तालियों करतल ध्वनि से गुंजायमान हो उठा।
