Vimla Jain

Abstract

4.0  

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सूरज का खत

सूरज का खत

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कल सुबह जब मैं नींद से जागी तो मैंने देखा सुनहरी किरणों से लिखा हुआ एक खत पड़ा है। मैं उस खत को पढ़ने लगी ।उसमें लिखा था ।

" प्रिय सखी

पिछले बहुत दिनों से तुम्हारी और मेरी सुबह-सुबह सूर्योदय के समय जब मैं आता हूं तब मुलाकात नहीं हो रही।तुम कैसे मेरे आकाश में उदय होने पर जब किरणे आती है उनको घर में लाने के लिए सारी खिड़की दरवाजे खोल देती थी।

और जो सूरज तुमने मेरी प्रतिकृति लगाई है उस पर मेरी किरणें पहुंचे ,और घर के सब जगह जहां जहां से मेरा तुम्हारे घर में आगमन हो सकता था ।सारे खिड़की दरवाजे सब खोल देती थी ।और पूरा घर सुनहरा हो जाता था। और खुद बाहर आकर मेरा स्वागत करती थी। और स्वागत में गाती थी

उठ रे जीवड़ा हट प्रभात,

जाना है शत्रुंजय टूक

और सुबह उठकर बहुत खुश होती थी।

सब चिड़ियों का चहकना देखती। बहुत मजे कर, मजे से सब तरफ देखती थी।

और फिर थोड़ी देर से अपने काम में लग जाती थी ।मैं बहुत दिनों से घर के दरवाजे बंद देखकर उदास और चिंतित हो गया, कि मेरी सखी को क्या हो गया। वह ठीक तो है। इसीलिए आज मैंने तुम्हारी खैरियत जानने के लिए यह पत्र लिखा।

40 साल का सिलसिला सुबह-सुबह सूर्योदय के समय मुझसे मिलना इसको बंद मत करो। चालू रखो ब्रह्म मुहूर्त में उठना ,और तुम्हारा मिलन हाथ जोड़ना ,सब दरवाजे खोलना ,खुश हो ना ,वह हमको भी खुश करता है।

खुश रहो ,आबाद रहो, तुम्हारा सखा सूरज।



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