सूरज, चाँद और हम
सूरज, चाँद और हम
अभी रात का तीसरा पहर था। सारा हॉस्टल सो रहा था पर कुछ कमरों की बत्तियां जगमग कर रही थी।तैयारी जो करनी थी जाने की।
कहां की ?
राजगीर की।
यह पहली यात्रा तो नहीं, पर अद्भुत चुंबकत्व है राजगीर की वादियों में। असीम शांति, पवित्रता। चांद आसमान से लापता था, भोर होने को थी कुछ तारे मद्धिम टिमटिमा रहे थे। यह तो लड़कों के हॉस्टल की बात। शायद लड़कियों के हॉस्टल में भी कुछ ऐसा ही हो।
सब 6:00 बजे तैयार हो गए थे। आसमान साफ था कुछ लालिमा थी पूरब में आशा की, विश्वास की, खुशी की, सौंदर्य की। 7:00 बजे हम गाड़ी पर सवार हुए खिड़की से आती ठंडी हवा गीत सुना रही थी।
कुछ लड़कियों को गाड़ी चलने पर उल्टी आने की समस्या थी उनके लिए चॉकलेट और एंटी एमेटिक की व्यवस्था कर दी गई थी कुछ ने तो खाने-पीने की भी व्यवस्था की थी लेज, कुरकुरे .....
फिर सफर और संगीत दूर कैसे? गाड़ी के ड्राइवर ने गाना बजाया और वह मन को झंकृत करने को पर्याप्त नहीं था। ब्लूटूथ कनेक्ट किया गया फिर कुछ लोगों ने अपने प्ले लिस्ट की सबसे उम्दा गानों को परोसा। एक एक गाने से जुड़ी यादें बताई गई, कुछ गाने के साथ खुद की आवाज जोड़ने की कोशिश की।ऐसा करते पता नहीं चला कि हम कब मांझी पथ से होकर गुजर रहे थे।
हां, मांझी पथ, दशरथ मांझी वाली "जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं "वाली।इश्क में बनाया ताजमहल को टक्कर देने वाली रचनाओं में से एक है मांझी का बनाया मार्ग।हम गहलोर गांव में थे।अब सूरज दिख रहा था आसमान में किरण लिए उद्देश्य का, स्मृति का।थोड़ी देर फोटो खींचने के बाद हमने यात्रा जारी की।
अब हम रुके सीधे विश्व शांति स्तूप के पास रत्नागिरी पर्वत पर अवस्थित यह स्तूप विश्व शांति का नायाब नमूना 1000 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित था।जाने के लिए सीढ़ियां बनी थी पर सैलानी रज्जू मार्ग से ही जाना पसंद करते थे, य
ह एक अलग तरह का अनुभव है।एक तरफ से ऊपर जाते लोग और एक तरफ से वापस नीचे आते लोग। ऊपर जाने वालों में डर है और नीचे आने वालों में आत्मविश्वास। स्तूप पर पहुंचते ही सूरज सिर के उपर था।पास ही एक शांति स्थल था जहां एक नगाड़ा हर पल धम धम कर रहा था।सूरज की तपिश से स्तूप के ऊपर लगा चमक रहा था।
हम लोग वापस नीचे उतरे होटल में खाना खाया और नए विकसित पांडू पोखर के लिए निकले। बिहार सरकार द्वारा विकसित यह स्थान रोमांचक है।अडवेंचर्स लोगों के लिए स्वर्ग की तरह है।हां, संभल कर रस्सियों पर चलते हुए थकान भी महसूस कर सकते हैं जैसा हमने टीम के मेंबर्स के चेहरे पर साफ साफ झलकते हुए देखा।
अब सूरज पश्चिम की ओर जा रहा था तब हमने भी अगले गंतव्य पर जाना मुनासिब समझा हमारा अगला लक्ष्य वाटर पार्क था।राजगीर से 11 किलोमीटर दूर यह वाटर पार्क आयुध कारखाने के पास है।हमने अपनी थकान पानी में बैठकर दूर की। समुद्र के समान आते लहरें हमारे सारे दुख दर्द को दूर करने के लिए पर्याप्त थे। स्लाइड्स काफी रोमांचक थे एक दूसरे पर पानी डालते और हम सभी ने सभी गम भुला दिया।सच ही तो है वक्त अभी चल रहा उसी में चले, उसी में जीएं कल किसने देखा ?
अब सूरज ढल चुका था हमने गाड़ी ली और वापस हॉस्टल को चले।
चांद आसमान में था एक तारे के साथ।हम चल रहे थे चांद के साथ, चांदनी के साथ, एक तारे के साथ। चांदनी में ऊंचे पहाड़ मनमोहक लग रहे थे, जंगल बादल जैसे लग रहे थे।
हम आपस में बातें कर रहे थे गानों की, सिंगर्स के, फिल्मों के। धीरे धीरे गाना बज रहा था .....कभी यादों में आओ कभी ख्वाबों में आओ .....मैं वो खुशबू नहीं जो हवाओं में छा जाए ......तुम मुझको आजमाओ मैं तुझको आजमाउ। हमने तो याद ही बना ली थी।
चांद अब भी पीछा कर रहा था हमारा और हम चांदनी के। एक तारा था... अभी आकाश में चाहता था दो होना......