Dr.Pratik Prabhakar

Tragedy

4.0  

Dr.Pratik Prabhakar

Tragedy

चिथड़े में डॉबी

चिथड़े में डॉबी

3 mins
135


मेडिकल कॉलेज अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूति  विभाग में एक बच्ची ने जन्म लिया। डॉक्टरों के साथ-साथ नर्सों को भी इस बात की चिंता थी कि बच्ची को कौन संभालेगा। आदमी जब पैदा होता है, नंगा होता है और फिर मिलते हैं उसको वदन ढँकने को कपड़े और दिल ढँकने को बहुत सारा स्नेह। अब स्नेह मिले न मिले पर इस बात का तो ख्याल रखा जाना था कि बच्ची नग्न न रहे।

 


अब किसी को तो हैरी पॉटर बनना ही था उस बच्ची के लिए। हैरी पॉटर एक मशहूर पात्र है जिसने डॉबी नामक एल्फ़ को कपडे दिलवाये थे और इस कपड़े ने डॉबी को दुष्ट जादूगर से आजाद करवाया था।


भारी बारिश के बीच अभी दो घंटे पहले ही एम्बुलेंस से अस्पताल लायी गयी प्रसूता होश में न थी पर कराह रही थी । प्रसव पीड़ा पीड़ा की पराकाष्ठा होती है ।कहते हैं एक प्रसूता कई हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द सहन करती है प्रसव पीड़ा के दौरान। एम्बुलेंस का ड्राइवर प्रसूता को स्त्री एवं प्रसूति विभाग के स्ट्रेचर पर ही रख भाग गया । बस इतना कहता गया कि इस महिला का कोई नहीं। अब जिसका कोई नहीं उसके ऊपरवाले रखवाले।


जांच के दरम्यान डॉक्टरों ने देखा कि बच्चा गर्भाशय के मुँह पर अटका हुआ था। तुरंत प्रसूता की डिलीवरी करवाने की व्यवस्था की गई और बच्चे के डॉक्टर को कॉल लिखा गया। एक छोटे आपरेशन के बाद एक बच्ची ने इस संसार में आँखें खोली।


बच्ची की माँ घर से निकाली गई विक्षिप्त महिला थी। कूड़ा से चुनकर खाना खाने वाली और दयालु लोगों की दया के भरोसे एक बच्ची को जन्म देना सचमुच एक योद्धा माँ ही ऐसा कर सकती है।


बच्ची गर्भाशय बाहर तो आयी पर उसे देख चहकने वाला कोई नहीं था। विडंबना देखिए स्त्री ने स्त्री को जन्म दिया , डॉक्टर्स स्त्रियां, नर्सेज स्त्रियाँ , फोर्थ ग्रेड स्टाफ़ स्त्रियां सिर्फ इंटर्न्स और शिशु रोग विशेषज्ञ पुरुष। पर एक नर्स द्वारा ये बोला जाना कि "बच्चा जन्म लेता तो अच्छा होता "काफ़ी कुछ बयां कर रहा था। संतोष तो इस बात का था कि बच्ची एकदम स्वस्थ थी।


अब जब बच्ची को वार्ड में शिफ्ट किया जाना था तो बच्ची को कपड़े से लपेटा जाना था। सामान्य तौर पर प्रसूता के साथ आने वाले परिजन ही पुराने कपड़े घर से लेकर आते हैं। पर इस महिला के साथ कोई नहीं और ऊपर से विक्षिप्तता।


गाँव में बच्चे को जन्म के बाद के शुरुआती दिनों में नए कपड़े नहीं पहनाए जाते शायद नए कपड़े से होने वाली एलर्जी से नवजात को बचाने के लिए।


नर्सों ने एक तरकीब निकाली। डॉक्टरों द्वारा पहने जाने वाले पुराने गाउन को काटकर एक शर्ट सील कर तैयार किया गया।


गले और बाँह के जगह महीन सिलाई की गई थी। पुराने कपड़े से ही लंगोट भी बनाया गया।


अब जब बच्ची हरे कपड़े में माँ के सिरहाने में रखी गयी एक साथ सावन के महीने में माँ के आँखों में भादो उतर पड़ा। विक्षिप्त माँ के आँखों के कोने से दो बूंदें बच्ची के ललाट पर गिर पड़ी।


ड्यूटी खत्म होने पर गेट से बाहर निकलते समय इंटर्न डॉक्टर्स ने किसी को कहते सुना कि "हो सकता है कि बच्ची के आने के बाद माँ का पागलपन ठीक हो जाये।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy