जमीं पर पाँव
जमीं पर पाँव
हम हमेशा ऊपर की ओर ही देखते हैं, तभी तो हम चाँद पर गये, मंगल यान बनाया और तो और ब्लैक होल की दुर्लभ तस्वीर भी हमने देख ली। इंसान की फितरत ही यही है और होनी भी चाहिए " ऊपर देखने की"।
काफी पहाड़ हैं कुछ ऊँचे, कुछ छोटे, कुछ संकरे। पर इंसान ने जमीन नापने के बाद, पहाड़ों को पहला निशाना बनाया है। पहाड़ पर जाकर इंसान के पैर जमीं पर नहीं पड़ते, वरन वो सारी दुनिया को क़दमों में देखता है। भले ये मिथक हो।
हमारा ग्रुप गया (बिहार) के हर पहाड़ को फतह करना चाहता है। इसी क्रम में हम पहुंचे दुंगेश्वरी पहाड़ पर।
एक मंदिर है वहां "बौद्ध मंदिर"।
कहते है भगवान बुद्ध ने छह वर्षों तक वहां प्रवास किया था ज्ञान प्राप्ति के पहले और बोध गया आने के पहले।
मार्ग बहुत सुगम है। सीढ़ियाँ बनी हैं, मंदिर में कंकाल स्वरूप भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है कंदरा में। बहुत शान्त वातावरण है, सुबह या शाम वहाँ जाने का उत्तम समय है। हम लोग शाम में गये थे। एक अद्भुत शांति।
पर हम लोग तो पहाड़ पर जाना चाहते थे वो भी ऊपर, बहुत ऊपर
वहां खड़े एक लड़के से हमने पुछा " क्या हम ऊपर पहाड़ पर जा सकते हैं ?" लड़का बोला "काफी दिक्कत से।"
हम लोग ठहरे मुश्किल से लड़ने वाले। अब तो ऊपर जाना था। पहाड़ पर पेड़ पौधों का नामों निशान तक न था, हाँ, कुछ कांटें जरूर थे।
हम लोगों ने चढ़ाई शुरू की। पर कुछ देर में थक गए, चूंकि गर्मी भी थी तो हम लोगों ने ठहर कर कुछ खाने और पानी पीने के बारे में विचार किया। जलपान ख़त्म होने के बाद हम फिर आगे चढ़ना शुरू किये। बहुत खुशनुमा वातावरण था।
एक बात और जब आप पहाड़ पर जा रहे होते है आपको टीम जैसा काम करना पड़ता है यानी सहयोग करो और सहयोग लो। जल्द ही हम लोग ऊपर पहुँच गये। जल्द ही पूरा गया दिख रहा था हमें, लाल होते सूरज की रौशनी में। नदी भी दिख रही थी। हमारे कुछ साथी यही नहीं रुके उन्हें तो चोटी पर पहुंचना था। हम लोग वहां कुछ देर रुके। शाम होने को थी फिर हमने कुछ तस्वीर खिंचवाई और नीचे उतरने लगे।
पर ये क्या " पहाड़ एक दम सीधा लग रहा था।" हमने चढ़ते वक़्त इस बात पर ध्यान नहीं दिया था। कई बार हम लोग फिसलते हुए बचे। सभी को कांटे चुभे। एक दूसरे के हाथ थामे हम लोग नीचे पहुंचे 'जमीन पर।"