सुनो एक बार
सुनो एक बार
"उसकी आँखों से निकलते आँसू उसके दर्द को बयां कर रहे थे।"
आज फिर सौम्या नितिन के ऑफिस जाते ही दरवाजा बंद करके किसीसे फ़ोन पर बात कर रही थी। अलकाजी की आदत थी सुबह के नाश्ते के बाद एक छोटी सी झपकी लेने की। पर आज निधि ने उन्हें अपने काम में उलझाए रखा था इसलिए वो जाग रही थीं। उन्हें बड़ा अजीब लगा कि नितिन के ऑफिस जाते ही उनकी नई नवेली बहू दरवाजा बंद करके इतनी देर भला किससे बात कर रही है।दरअसल निधि ने ग्यारहवीं में स्वैच्छिक विषय में गृहविज्ञान ले रखा था और उसीके गृहकार्य केलिए टोपी या दास्ताना कुछ भी बुनकर लाना था। चूँकि दो दिन बाद ही टीचर को बनाकर दिखाना था, इसलिए निधि पिछले दो दिन से अपनी माँ के पीछे पड़ी हुई थी कि सीखा दो। जब उन्होंने उसे मीठी झिड़की देते हुए कहा कि, "जब मैम क्लास में समझा रही थी, तब क्यूँ नहीं समझा" तो निधि ने बड़े प्यार से उनके गले में बाहें डालते हुए लाड़ से कहा, "माँ ! टीचर जो सिखाती हैँ अगर उसके अनुसार बनाती तो सबका कॉमन हो जाता इसलिए मैं आपसे सीखकर बनाउंगी ताकि सबसे अलग बने और खूबसूरत भी, और मुझे ग्रेड भी सबसे अच्छा मिले।"
"अच्छा तो इसलिए माँ को इतना मस्का लगाया जा रहा है" उन्होंने निधि के गाल प्यार से थपथपाते हुए कहा।फिर वो ऊन और सलाइयाँ लेकर निधि को को उल्टा सीधा घर उठाना सिखाने लगी। फिर जैसे उन्हें अचानक कुछ याद आया, वो बोल पड़ी,"जा निधि बेटा, अपनी भाभी को भी बुला ला। उसे भी नहीं आती है बुनाई। तुम दोनों ननद भाभी एक साथ ही सीख लेना।"पर निधि उनके दूसरी बार बोलने पर भी जब नहीं उठी तो उन्हें थोड़ा गुस्सा आया, उसे डाँटते हुए बोली, जाती क्यूँ नहीं ?"भाभी को पसंद नहीं आता कि क़ोई उन्हें फ़ोन पर बात करते हुए डिस्टर्ब करे।" निधि ने कहा तो अलकाजी को बड़ा अजीब लगा कि इतनी देर किससे बात करती है सौम्या। पहले सोचा अपनी मामी से करती होगी या फिर अपनी छोटी बहन से।फिर एकबारगी ख्याल आया कि ज़रूर दोनों से मेरी चुगली करती होगी। फिर अपने इस ख्याल पर खुद ही मुस्कुरा उठीं कि, सौम्या ऐसा क्यूँ करेगी भला।
क्यूँकि उनके और बहू के बीच कम समय में ही अच्छा सामंजस्य बैठ गया था। खुद अलकाजी बहुत ही खुले विचारों वाली महिला थीं तो उनके साथ एडजस्ट करने में सौम्या को क़ोई मुश्किल नहीं हुई थी। सौम्या और नितिन की शादी के दो महीने ही तो हुए थे, और इतने कम समय में अलकाजी और निधि को सौम्या ने बड़े प्यार से अपना लिया था। खुद अलकाजी भी सौम्या और निधि में खाने पीने से लेकर कपड़े लत्ते तक देने दिलाने में क़ोई भेदभाव नहीं करती थी।"तो बंद दरवाजे के पीछे सौम्या किससे बात कर रही है और क्या बातें कर रही है?" ये उत्सुकताजब बढ़ गई तब अलकाजी ने खुद सौम्या को बुलाने के लिए उसके कमरे की ओर रुख किया तो सौम्या के कमरे से आती सिसकियों ने उनके पैर रोक दिए। अपनी आदत के विपरीत उन्होंने चुपचाप सौम्या की आवाज़ का अनुसरण करते हुए महसूस किया कि वो रो रही थी और किसीको बार बार "बाबू" "बेटा"कहकर कुछ समझा रही थी, और उसकी आवाज़ में करुणा साफ सुनाई दे रही थी।खैर, अब अलकाजी से नहीँ रहा गया तो दरवाजे को धकेला। हल्की आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुल गया तो उन्होंने गौर से सौम्या को देखा तो।।।"उसकी आँखों से निकलते आँसू उसके दर्द को बयां कर रहे थे'।एकबारगी तो अलकाजी का मन किया बस उलटे पैरों लौट जाएँ, शायद सौम्या को अपने घर की याद आ रही हो। पर तभी उन्होंने सौम्या को कहते सुना, "बाय बेटु, फिर बाद में बात करती हूँ "तो अलकाजी की उत्सुकता और बढ़ गई।एक शरारती ख्याल ये भी मन में आया कि,"कहीं बहू अपने किसी एक्स बॉयफ्रेंड से ना बात कर रही हो। ये मुआ "बाबू" "बेबी" "बेटा" सभी नामों से आजकल जो सोना बाबू बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड को बुलाने का चलन है कहीं सौम्या अपने उसी "बाबू" से तो नहीं बात कर रही थी। फिर सोचा, ना ना।
ऐसा ऐसा नहीं हो सकता। क्यूँकि सौम्या और नितिन को उन्होंने आपस में बहुत खुश देखा था। यहाँ तक कि जब नितिन घर पर होता तो सौम्या उसके आगे पीछे ही लगी रहती और नितिन भी उसे कहाँ छोड़ता था। वो कई बार दोनों को छेड़ भी देती कि।।।"अब हनीमून खत्म हो गया है, पर तुमलोग तो अभी भी ऐसे एक दूसरे के आसपास मंडराते रहते हो कि जैसे चाँद और चकोर।"उनके छेड़ने पर सौम्या एकदम शरमाकर लाल हो जाती, और नितिन बात सँभालते हुए कहता," वो क्या है माँ, दिनभर ऑफिस में रहता हूँ इसलिए शाम को थोड़ा वक़्त तुम्हारी बहू के साथ बिता लेता हूँ नहीं तो तुम शिकायत करोगी कि मैं उसे वक़्त क्यूँ नहीं देता। फिर सौम्या ने कई ज़गह जॉब के लिए एप्लीकेशन दे ही रखा है तो आज ना कल उसे नौकरी मिल ही जाएगी। फिर उसके पास भी वक़्त कहाँ होगा मेरे साथ बिताने का। "नितिन की बात पर वो हँसते हुए कहती,"ठीक है बेटा, और देखना मेरी बहू को नौकरी जल्दी ही मिल जाएगी। आखिर शादी के पहले भी तो वो नौकरी करती ही थी।
"वैसे अलकाजी बेटे बहू के आपस में प्रेम से बहुत खुश रहती थी। उनकी गृहस्थी की बगिया सौम्या के आने से और भी नई खुशबू से महमहाने लगी थी।ओफ्फोह।।।मैं भी कहाँ विषय से भटककर पति पत्नी के रोमांस वाली बातों में ज़्यादा रूचि लेने लगी। चलिए अब पुनः कहानी की मुख्य धारा की ओर रुख करते हैँ।सौम्या की भीगी आँखें देखकर अलकाजी अपनी उत्सुकता नहीं दबा पाई और पूछ बैठी,सौम्या की सकपाकहट से ये अलकाजी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।उन्होंने अपने स्वर को यथासंभव मुलायम बनाते हुए पूछा, "बहू, तुम्हारी आँखों में आँसू क्यूँ हैँ ? तुम इतनी देर से किससे बात कर रही थी ? सब ठीक है ना ?"अब सौम्या से नहीं रहा गया तो वो हिचकियाँ लेकर रोने लगी। अलकाजी ने उसके पीठ पर हाथ फेरा और बहू को बैठ जाने को कहा। तभी निधि भी आ गई कमरे में और यूँ अपनी भाभी को रोता हुआ देखकर ज़िज्ञासा भरी आँखों से अलकाजी की ओर देखा तो उन्होंने उसे इशारे से पानी लाने भेज दिया। तबतक सौम्या भी कुछ सम्भल चुकी थी।अलकाजी को दुबारा पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। सौम्या ने अपने आप ही बताना शुरु कर दिया कि वो अभी अपनी छोटी बहन अनन्या से बात कर रही थी। उसकी शादी के बाद उसकी मामी और उनकी दोनों बेटियाँ अनन्या को बहुत परेशान करने लगी थी। उससे कसकर काम लेती और कोसती भी रहती। एक तो बिना माँ बाप की ऊपर से तेरी बहन भी अपना बोझ अपनी ज़िम्मेदारी हम पर छोड़ गए।जब तक सौम्या थी तो अपनी तनख्वाह की एक निश्चित रकम वो सैलरी मिलते ही मामी के हाथ रख देती और पैसे मिलते ही मामी की बांछे खिल जाती थी।
पर उसे व्याहकर विलासपुर से धनबाद आना पड़ा तो नौकरी छोड़नी पड़ी।सौम्या ने सोचा था कि।।।शादी के बाद जब दुबारा काम शुरु करेगी तो अपनी छुटकी को भी उसी शहर के कोलेज़ में एडमिशन कराके हॉस्टल में रख देगी। एक साथ एक छत के नीचे ना सही पर दोनों बहनें एक शहर में तो रहेंगी। पर उसके ससुराल आने के बाद से ही अनन्या पर उन सबका अत्याचार बहुत बढ़ गया था। कसकर काम लेने के अलावा अब वो लोग उसे घर से निकल जाने को भी कहने लगे थे। जब भी फुरसत मिलता, एकांत मिलता सौम्या अपनी छोटी बहन से ही छुपकर बात किया करती थी।और उसकी तकलीफ सुनकर सौम्या को बहुत रोना आता था इसलिए वो दरवाजा बंद कर लेती थी।अब अलकाजी की समझ में सारा माज़रा आ चुका था। कि क्यूँ उनकी सलोनी सी बहू की आँखें पनियाली है। अंदर ही अंदर कितना दर्द सह रही थी सौम्या और घर में किसीको पता तक नहीं। यहाँ तक कि उसने नितिन को भी नहीं बताया था।दरअसल आज से पाँच साल पहले सौम्या जब स्नातक के फाइनल ईयर में थी तब उसके माता पिता एक विवाह समारोह में शामिल होने गए थे। चूँकि सौम्या के इम्तिहान चल रहे थे इसलिए उसे और अनन्या को उसी शहर में रहनेवाले उसके मामा मामी के घर छोड़ गए थे। मामा की छोटी बेटी पारुल और अनन्या दोनों आठवीं कक्षा में साथ पढ़ते थे इसलिए उनके बीच गहरी छनती थी।( ये बात दीगर है कि माता पिता के देहांत के बाद वही पारुल अनन्या को अपने से बहुत कमतर आँकती थी ) और अपनी माँ और बहन के साथ मिलकर अनन्या को परेशान करने और नीचा दिखाने का एक भी मौका हाथ से नहीं जाने देती। उसके इस व्यवहार के पीछे कदाचित अनन्या का पढ़ने में काफ़ी तेज़ होना और देखने में पारुल से कुछ बीस होना भी था।सौम्या अपनी प्यारी बहन को जान से भी ज़्यादा प्यार करती थी। और उसे हमेशा "बेटु" "बाबू" कहकर ही बुलाती थी। उनके माता पिता उस रिश्तेदार की शादी में जो गए फिर कभी वापस ही नहीं आए। ट्रेन एक्सीडेंट में उनके मारने की ही खबर आई। सौम्या की तो जैसे पूरी दुनियाँ ही बिखर गई। माँ बाप के रहते जो हमेशा चहकती रहती थी।ये ना खाऊँ, वो ना पहनूँ की ज़िद किया करती थी, वो सौम्या अचानक से बड़ी और समझदार हो गई थी।अब उस घर में दोनों बच्चियाँ अकेले कैसे रहतीं, इसलिए तेरहवीं के बाद मामा मामी दोनों को अपने घर ले आए थे और उस घर को किराए पर लगा दिया।
उस घर के किराए से दोनों बहनों की पढ़ाई का खर्चा निकल जाता और फिर जब पिछले दो साल से सौम्या नौकरी करने लगी तो उसकी सैलरी का जो हिस्सा वो मामी के हाथ रखती उससे मामी भी खुश रहने लगी थी।फिर तीन महीने पहले वो सब जब एक रिश्तेदार की शादी में रायपुर गए तभी अलकाजी भी अपने दोनों बच्चों के साथ वहाँ गई थीं और सोचकर ही गईं थीं कि अबके क़ोई अच्छी लड़की देखकर नितिन की शादी करवा देंगी। और संजोग से व्यवहारकुशल और समझदार सौम्या उनको बहू के रूप में बेहद भा गई।नितिन से पूछा तो उसने एक बार सौम्या से अकेले में मिलने की इच्छा जाहिर की तो सौम्या के मामा मामी को भला क्या आपत्ति हो सकती थी।सौम्या और नितिन ने बस आधा घंटा मिलने की बात की थी पर मिले तो तीन घंटे साथ रहकर भी दोनों की बातें नहीं खत्म हुईं लिहाज़ा उन्हें फोन करके रेस्टोरेंट से घर बुलाया गया। दोनों से एक दूसरे के बारे में राय जानने की क़ोई आवश्यकता ही नहीँ थी क्यूँकि दोनों के खिले चेहरे बता रहे थे कि इनके दिल मिल चुके हैँ अब बस चट मंगनी पट ब्याह की रस्म कर देनी चाहिए।शादी से पहले ही सौम्या ने स्पष्ट कर दिया था कि वो आगे भी नौकरी करती रहेगी और हर महीने अपनी तनख्वाह से कुछ रकम वो अपनी मामी को भेजती रहेगी ताकि अनन्या की परवरिश उन्हें बोझ ना लगे।उसकी स्पष्टवादिता अलकाजी और नितिन को बहुत पसंद आई थी। अलकाजी समझ गई थीं कि इतनी सुलझी हुई लड़की अगर घर में बहू बनकर आ रही है तो उन्हें अब नितिन की चिंता करने की ज़रूरत नहीं।आज अलकाजी अपनी दुलारी बहू की आँखों में आँसू देखकर बहुत विचलित हो गईं।
बिना माँ बाप की इस बेटी पर उन्हें इतना प्यार आया कि उसे देर तक सीने से लगाए सांत्वना देती रहीं।तब तक निधि भी पानी लेकर आ गई थी। पानी पीकर सौम्या कुछ स्थिर हुई तो उसने अपनी समस्या के केंद्र बिंदु पर आते हुए कहा कि,उसकी मामी अनन्या को इसलिए इतना परेशान कर रहीं हैँ कि वो दो महीने से कुछ पैसे नहीं भेज पाई है। और इन सबसे अलग उनकी नज़र उसके माता पिता के घर पर है। वो तो सौम्या की शादी के वक़्त से ही उस घर को बेच देना चाहती थी ताकि दहेज़ का इंतज़ाम हो सके। पर नितिन के घरवालों की तरफ से क़ोई दहेज़ वहेज़ की माँग तो थी नहीं सो उनकी मंशा पूरी ना हो सकी तो अब अनन्या को तरह तरह से सता रहीं हैँ। उसे घर से निकालने की बात भी इसलिए कर रहीं हैँ ताकि सौम्या वो घर उनके नाम कर दे। मामा मामी के दबंग स्वाभाव से इतना डरते हैँ कि उनकी गलत बातों का भी क़ोई विरोध नहीं कर पाते।"आज सुबह से उन्होंने अनन्या को नाश्ता तक नहीं दिया वो भूखी होगी वहाँ और मैं यहाँ आराम से खा पी रही हूँ"।बोलते बोलते फिर से सौम्या को रुलाई आ गई।अब तक अलकाजी एक निर्णय ले चुकीं थीं। वो थोड़ी देर के लिए निधि को लेकर बाहर चली गईं, उससे बात किया। निधि की सहमति जानकर फिर उन्होंने नितिन को फोन लगाया। दोनों बच्चों की तरफ से निश्चिंत होने के बाद उनके चेहरे पर एक अपूर्व शांति थी।वो सौम्या के कमरे में जाने को हुई और पीछे से निधि को दो कप चाय बना लाने को कहा।वो जब कमरे में गईं तो सौम्या फिर से फ़ोन पर अपनी बहन को समझा रही थी। "तुम फिकर मत करो बाबू, मैं मामी से बात करती हूँ और एक दो दिन में अपनी सासुमाँ से पूछकर वहाँ आने की कोशिश करती हूँ।"
"अनन्या बेटा, आप अपना सामान बाँध लो, हम दो दिन बाद तुम्हें लेने आ रहे हैँ।"जब तक सौम्या और अनन्या कुछ समझती उन्होंने सौम्या से उसकी मामी का मोबाइल नंबर माँगा।सौम्या यन्त्रचालित सी उनको मामी का नंबर बताने लगी।तबतक निधि भी चाय लेकर आ गई तो अलकाजी ने कहना शुरु किया, "बहू, तुम भी तैयारी कर लो। हम कल शाम की गाड़ी से अनन्या को लेने जा रहे हैँ। अबसे वो यहीं रहेगी हमारे साथ। निधि के कमरे में उसके रहने का इंतज़ाम कर दो।"यह सब सुनकर निधि भी बहुत उत्साहित नजर आ रही थी। अनन्या उसकी हमउम्र थी और शादी के वक़्त छोटी सी ही मुलाक़ात में दोनों सहेली बन गईं थी और एक दूसरे को सोशल मिडिया इंस्टा वगैरह पर फॉलो भी करना शुरु कर दिया था।"पर नितिन।।।?सौम्या का वाक्य अधूरा छोड़कर ही अलकाजी बोल पड़ी।"मेरी नितिन से बात हो चुकी है। कल शुक्रवार है और आगे उसकी उसकी शनिवार रविवार की छुट्टी है। मैंने उसे हम चारों का चार और वापसी में पाँच टिकट को बोल दिया है। बस तुम खुश रहो।
इतने में तुम्हारा पैतृक मकान भी हम किराए पर लगा देंगे। यह घर जैसा तुम्हारा वैसा भी अनन्या का भी होगा।"सुनकर सौम्या एकदम भावुक होकर अलकाजी के गले लग गई। रुंधे गले से इतना ही कह सकी, "थैंक्यू माँ।"आज सौम्या की आँखें मुस्कुरा रही थीं, जिसे ऑफिस से आटे ही नितिन ने छेड़ दिया।।।"अरे वाह ! आज तो ये आँखें मुस्कुरा उठीं"सौम्या कुछ ना बोलकर सिर्फ उसके गले लग गई।इधर अलकाजी भी भावुक होकर निधि और सौम्या दोनों को गले लगाते हुए बोलीं, "अबसे मेरी तीन बेटियाँ हैँ।""और मैं।।।? नितिन ने मज़ाक़ किया तो सब खिलखिलाकर हँसने लगे।अलकाजी के इस निर्णय से घर में सब बहुत खुश थे।सबसे ज़्यादा तो निधि चहक रही थी।ट्रेन में बैठे हुए अनन्या से मिलने की ख़ुशी के साथ वो अलकाजी के बारे में सोच रही थी कि कैसी जीवट वाली महिला हैँ। कितने अच्छे से संभाल लिया परिस्थितियों को।अलकाजी के निर्णय और सौहार्द भरे व्यवहार ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि।।।"माँ बस माँ होती है। उनसे अपने बच्चे तो क्या दूसरे के बच्चों का भी दुःख नहीं देखा जाता।
"प्रिय सखियों 🌺 ये थी एक समझदार सास की कहानी, जिसने अपनी सूझबूझ से अपनी बहू के साथ उसकी ज़िम्मेदारी को भी अपनाया। माना कि ऐसी सास कम होतीं हैँ पर होती तो हैँ।

