Arun Gode

Romance Others

3  

Arun Gode

Romance Others

सुनहरी सुबह

सुनहरी सुबह

5 mins
362



      अरुण, गुनवंता, पदमनाभन, रिना और अन्य बाहर गांव से आने वाले सभी वर्ग मित्र और स्थानीय मित्रों ने मिलकर कल होने वाले वर्गमित्र पुनर मिलन कार्यक्रम की तैयारीयां पुरी कर चुके थे। वे सभी अन्य मित्रों के साथ, दूसरे दिन सभी सक्रिय कार्यकर्ता तैयार होकर बड़े सबेरे स्कूल पहुंचे थे। सभी काम ठीक -ठाक चल रहे कि नहीं इस को देख रहे थे। थोड़ी देर बाद नाश्ता भी तैयार हो चुका था। धीरे-धीरे सभी मित्रगण इकट्ठे हो रहे थे। सभी एक-दूसरे से मिल कर अपनी-अपनी खुशी और प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे। कार्यक्रम के लिए जो व्यवस्था और सजावट की गई थी, उसे देखकर सभी प्रभावित हुए थे।

     उतने में ही सभी महिला सहेलियों का झुंड बड़ी मस्ती से झूमते हुये हमारे तरफ बढ़ रहा था। दोनों तरफ यह आग लगी थी कि अरे वो कौन है, सभी अपने -अपने कयास लगा रहे थे। उन सभी में, जो किसी को जानते थे। वे एक दूसरे को इशारों से बता रहे थे। पास आते-आते, लग-भग सभी ने एक-दूसरे को पहचान लिया था। दोनों तरफ के सदस्य एक-दूसरे के तरफ हँसकर अपना अभिवादन कर रहे थे। पास आने पर सभी ने एक –दूसरे से अपना परिचय दिया था। सभी बातों में गुल गये थे। मुझे भी जैसे-जैसे मौका मिल रहा था। वैसे-वैसे, मैं भी सभी से परिचय कर रहा था। चर्चा के दौरान श्रीकांत के स्वास्थ्य के संबंध में चर्चा चल रही थी। सभी को उसकी कमी महसूस हो रही थी। सबने अपने-अपने तरीके से चिंता और खेद व्यक्त किया था। माहौल थोड़ा सा गंभीर होते देख, अरुण बोला।  

अरुण : अरे सुनो, रीना, हम सब आपका ही इंतजार कर रहे थे। गरम-गरम नाश्ता तैयार हैं। मैं, रीना मॅडम से अनुरोध करता हूँ कि वो अपने हाथों से नाश्ते का शुभारंभ करे, तालियां, सभी ने तालियां बजाई, 

रीना: अरे, अरुण, सुन, बहुत खुशामद कर रहा हैं तू। सभी हँसने लगे।

अरुण : अरे बहुत सालों बाद, दोस्तों कि सेवा करने का मौका मिल रहा है। मौके का फायदा उठा रहा हूँ। ऐसा कुछ नहीं।

गुनवंता : अरे सुनो, अरुण बहुत चालू चीज है। सब काम अपने मतलब से करता है। कल से ही रीना कि बहुत खुशामद कर रहा है। क्योंकि रीना एंकरिंग करने वाली हैं। ताकी वह कार्यक्र्म में इसकी खुप तारिफ करे!।

रीना: अरे गुनवंता, तुने सही कहां, मैं भी तेरे तर्क से सहमत हूँ। नहीं तो ये कहा कि सी को भाव देता हैं। मेरा तजुरबा भी ऐसा ही है।

अरुण : भाव तो मैं देता हूँ, कोई अनजान बनकर, उसे ना समझे तो क्या करे ये बेचारा गरिबदास ?।  चलो नाश्ता शुरु करो रीना मॅडम। सभी ने नाशते के टेबल की और कुंच किया। सभी नाश्ता करने लगे। मौका देख कर मैंने भी नाश्ते की प्लेट लेकर रिना के पास खड़ा हो गया था। मुस्कुराते हुये कहां, जनाब हम से खफा दिख रहे है। कोई खता हो गई हो तो खता बक्स दो। और गाने लगा।  

हमारा इरादा तो कुछ भी नहीं था। खता हो गई है, खता बक्स दो।

रीना: हँसते हुये बोली, अरे बहुत हो गया, अभी पूरा दिन बाकी हैं। वैसे तुझे मैं आज डाटने वाली थी। मगर क्या करूँ, तुझे देखकर डाटना भूल जाती हूँ।

अरुण : हँसते हुये, बोला, जनाब, और क्या-क्या भूल जाते हो।

रीना: बहुत कुछ। अरे मैंने तेरा नाम, इस कार्यक्रम करने की कल्पना कैसे आई हैं, इसके लिए लिख रखा हैं। तुझे इस पर बोलना हैं। तेरे काव्य संग्रह का विमोचन को भी जगह दे दी हैं। तूने तैयारी की है ना ? 

अरुण: अरे, मॅडम, आप का हुक्म, सर आंखों पर, तैयारी कि क्या जरूरत है।  

रीना : क्यों नहीं है?।

अरुण : अरे, तुझे देखकर, मेरी जुबान अपने –आप बकने लगती हैं। सभी हँसने लगे।  

रीना : कविता संग्रह की कविताओं की प्रेरणा कैसे मिली ये भी बताना हैं।  

अरुण : वो तो तुझे बताना हैं।

रीना : क्यों, मुझे बताना है?।  

अरुण: अरे, आप के लिए तो ही मैंने काव्य संग्रह लिखा है। सब हँसने लगे।

रीना : झूठा कहीं का ?।

अरुण :अरे सच हैं, तू नहीं मानती तो मैं क्या कर सकता हूँ?। तुझे भी सबके साथ, एक मेरे काव्य संग्रह की प्रती देनेवाला हूँ। मुझे बताना, तुझे कौन सी कविता सबसे ज्यादा पसंद आई हैं।

रीना : मैं क्यों बताऊँ ?।  

अरुण : इसका मतलब मैं सच बोल रहा हूँ। हाथ कंगन को आरसी की क्या जरूरत ?।

रीना: अरे तूने तो वकील बनना चाहिए था, कहां वैज्ञानिक बना । और अभी कवि बन गया है। किसी को कैसे बातों में उलझाना, ये कोई तुझसे सिखे।

      धीरे-धीरे लग-भग सभी मित्र हमारे अनुमान से ज्यादा कार्यक्रम स्थल पर पहुंच चुके थे। हर कोई एक-दूसरे से मिलने के लिए आतुर था। एक-दूसरे से मिलने से उन्हें जो आनंद और सुख की अनुभूति हो रही थी, वो सभी के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही थी। ऐसा होना स्वाभाविक भी था। जिंदगी के बहुमूल्य समय इन्हीं मित्रों के साथ कभी। लड़ते - झगड़ते , तो कभी प्यार से खेलते-कूदते, तो कभी एक-दूसरे की मदद करते हुये, कभी –कभी अपनी-अपनी डफली बजाते हुये, तो कभी अपने मुँह मिट्ठू मियां बनते, बितायें थे। स्कूली मित्रों से बिछड़ने के बाद कई मित्र बने, कुछ याद रहें, कुछों ने मतलब निकलने के बाद भुला दिया, कुछ हम खुद ही भूल गये थे। लेकिन वो स्कूल के सभी मित्र आज भी याद थे। इसीलिए उन सब से मिलने का जुनून कुछ अलग था। और दुर्लभ खुशी दे रहा था। ऐसे खुशी कि अनुभूति जीवन में सफलता मिलने पर भी नहीं हो रही थी। शायद उस सफलता में उन स्कूली मित्रों का भी योगादान था। लेकिन वे सब उस सफलता के खुशी में शामिल नहीं थे। कब के बिछड़े, पूरे एक्तालिस साल बाद फिर आ के मिले थे। बहार तो हर साल आती थी। स्कूल तो हर साल छुट्टियों के बाद खुला करते थे। लेकिन ना स्कूल जाते, ना वो दोस्त-यार कभी मिलते। सिर्फ ग ही गाते थे। जब- जब बाहर आई, और फुल मुस्करायें, मेरे दोस्त मुझे सिर्फ तुम्हें याद आये। उस याद को वे सभी प्रगट और साझा करने में जी-जान से जुट गये थे।  सभी सक्रिय कार्यकर्ताओं को, अभी थोड़ी ही देर में आज के कार्यक्रम के अतिथि और अन्य सम्मानित गुरुजन आने की सूचना देकर उनके स्वागत के लिए तैयार रहने का निवेदन करना पड़ा था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance