सपनों के बाजार में एक किताब

सपनों के बाजार में एक किताब

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दुनिया सपनों का बाजार है, विश्वास नहीं होता। क्योंकि दुनिया तो एक हकीकत है। जीवन है, बाजार है, मेला है, खोज है कि दुनिया एक हकीकत है। इंसान हैं, मकान हैं, बाजार है, सामान है, साधन हैं। लोग एक दूसरे से मिलते हैं, हंसते हैं , एक दूसरे से बातें करते हैं। अपना जीवन जीते हैं। मनुष्य बनाता है बाजार, मनुष्य लगाता है दुकान । जहां दुकानों का संगम हो जाता है वहां बन जाती है एक बाजार। बाजार में होता है जीवन क्योंकि जीवन की तरह ही चलता है बाजार। उड़ता है, लड़खड़ाता है, ठहरता है, चलता है गिरता है। जीवन है तो बाजार है। लेकिन अगर बाजार ही जीवन बन जाये, बाजार जीवन बनाने लगे, बाजार जीवन गढ़ने लगे, बाजार जीवन बेचने लगे तो यह होगा आज का बाजार। कोई और संज्ञा दी जानी चाहिये इस बाजार को लेकिन अभी तो हम असमर्थ हैं। दुकानों का संगम अगर बाजार है तो लोग भी होंगे बाजार में स्थायी रुप से भी और आने जाने वाले लोग भी। अपनी अपनी पसंद का माल खरीदने के लिये बाजार जाने वाले लोग भी होंगें। हम भी एक दिन घूमते हुये पहुंचे बाजार, बाजार में किताबों की एक दुकान मिली। किताब की दुकान पर एक किताब मिली। नाम था हमारे समय की किताब।

मैंने उस किताब को उल्टा पलटा और सरसरी नजर से पूरी किताब देख गया। मुझे वो किताब अच्छी लगी तो मैंने वो किताब खरीद ली। गहरे पीले रंग का चमचमाता हुआ कवर। चिकना चिकना चमकदार कागज। कुल तीन चैप्टर थे किताब में। पहला चैप्टर था खबरें बनाइये, दूसरे चैप्टर का विषय था बुराइयों को अच्छाइयों की तरह पेश करने का हुनर सीखिये। तीसरा था अच्छाइयों को बुरा सिद्ध करने का ज्ञान लीजिये। किताब का पहला चैप्टर मैंने पढा, प्रस्तावना में था कि देश के बड़े बड़े पत्रकार और मीडिया के कारोबारी हमारे मुरीद हैं। पत्रकारिता के संस्थानों में जो चीजें नहीं पढ़ाई जातीं वो हमारी किताब में आप को मिल जायेंगी। ब्यवहारिक ज्ञान का अद्भुत खजाना है हमारी किताब। आप भी खबर बनाना सीख सकते हैं। फ़िर किताब में कुछ विषय थे, जिन पर खबरे बनाने के तरीके बताये गये थे। कुछ घटनाओं का विवरण था जिन पर खबर बनाने के तरीके उदाहरण के साथ खबर के रूप में प्रकाशित थीं। अंत मे एक वायदा था कि आज के समाज में प्रतिदिन घटने वाली घटनाओं पर खबर बनाने के लिये हमारे सम्पर्क में आइए। खबरें जो आप की शोहरत बढ़ा सकती हैं। खबरें आप को कुर्सी पर बिठा सकती हैं, आपके विरिधियों की कुर्सियां छीन सकती हैं। खबरें जो माल बिकवा सकती हैं। खबरें जो आप के विरोधियों की कमर तोड़ सकती हैं। खबर बनाने के एक्सपर्ट् लोग हमारे पास हैं, जो आप को ब्यवहारिक ज्ञान भी देते हैं। किताब का अधिकाधिक लाभ उठाने के लिये आप हमारे स्थायी सदस्य भी बन सकते हैं। इसी बीच शहर में एक घटना घटी। घटना की खबरें अखबारों में छपीं, टी वी चैनल्स पर दिखीं, अकाशवाणी ने समाचार बाँचा। मैं किताब का चैप्टर देख रहा था, घटना देख रहा था, घटना पर आने वाली खबरों को देख रहा था, सुन रहा था। घटना एक खबरें अनेक। दृष्टिकोण अनेक और घटना के कारक अनेक। खबरों के इन झोंकों के बीच सिर्फ एक चीज समान थी कि शहर में एक घटना घटी है। एक घटना और उसके चारों ओर खबरें, लगता था कि घटना ही खबरों में डूब गयी है। इन खबरों में किताब का क्या रोल है यह जानने के लिये मैंने किताब के लेखक से सम्पर्क किया। लेखक ने बताया कि हमारे कुछ ब्यवसायिक अनुबंध हैं, जिनको हम गोपनीयता की तरह सुरक्षित रखते हैं। लेकिन घटना के सन्दर्भ में घटी खबरों में हमारी भूमिका है। हम अपने ग्राहक या श्रोता के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं। कभी कभी तो हम खबरों के पक्ष और विपक्ष का अनुबंध भी हासिल कर लेते हैं और तब भी हम अपनी गोपनीयता को कायम रखते हुये पक्ष और विपक्ष के हितों को प्रमोट करते रहते हैं। बड़े ही आनन्ददायक और चुनौती भरे छण होते हैं हमारे लिये। हम बहुत रिस्क लेते हैं, बहुत खोज करते हैं तरह तरह के ऑपरेशन्स में अपने को इन्वाल्व किये रहते हैं-इसलिये हमारी किताब का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। हमारे पाठकों की संख्या बढ़ती जा रही है। आप हमारी किताब की और गहराई में जाइये, आप को खबरों की दुनिया में हमारे प्रभाव और विस्तार की अनुभति होने लगेगी। हम संवेदना के कायल हैंऔर अगर आप की रुचि हो तो तो हम आपको एक सम्भाब्य घटना और उससे जुड़ी पक्ष और विपक्ष की खबरों का पैकेज दे सकते हैं।

भई संवेदनशीलता का दौर है-आजकल के साहित्यकार कहते हैं कि समाज मे संवेदना मर गयी है पर हम जानते हैं कि समाज कितना सम्वेदनशील है। अरे भई आदमी को तरक्की करते और धूल में मिलते कितना समय लगता है। दीवाने हैं लोग सम्वेदनशीलता के और हम जानते हैं संवेदनशीलता की ओट में सत्य को कैसे छिपाया जा सकता है। हम सफल हैं और हमें अपनी सफलता पर गर्व है।

मैंने पूछा क्या आप होने वाली घटनाओं की सम्भाब्य जानकारी भी रखते हैं। बोले निःसन्देह हम समाज की गति और दिशा दोनों की जानकारी रखते हैं। हम दशा को बदलने के लिये खबरें प्लांट करते हैं और अपने प्लांटेशन को हरा भरा करने के लिये उसपर खबरों की बारिश करते रहते हैं। हम घटने वाली घटनाओं पर विचारों को भी खबर में तब्दील करने की कला जानते हैं। आप हमारे सम्पर्क में रहकर हमारी विश्वसनीयता का प्रमाण पा सकते हैं। । इस समय हमारे पास कई प्रोजेक्ट हैं हम इन प्रोजेक्ट से जुड़ी हुयी खबरों को लांच करने में जुटे हुये हैं। एक बात जानकर आप को आश्चर्य होगा कि तमाम भविष्यवाणियां भी हमारी खबरों पर आधारित हैं। तमाम ज्योतिषी भी हमारे स्थायी ग्राहक हैं। देखिये खबरों का प्रसार महत्वपूर्ण होता है। हम तमाम चैनल्स पर अपनी खबरें मिक्स किया करते हैं। फिर अपनी छोटी सी खबर पर सबका ध्यान केंद्रित कर लेते हैं। ब्यवसायिक अनुबंध के समांतर हम अपनी नीतियां बदलते रहते हैं। हम सक्रियता को बिल्कुल निष्क्रिय बना देते हैं और निष्क्रियता को सक्रिय खबर के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं। हम विश्वसनीयता को एक दम अविश्वसनीय बना देते हैं। यही हमारी दक्षता की कसौटी भी है। हम अविश्वनीय खबरों पर लोगों के विश्वास बनाये रखने के लिये तमाम खबरों को सम्पादित करते रहते हैं।

मैं सोच रहा था अजीब किताब है ये और इससे भी अजीब है इसका लेखक, और कितना अजीब होगा इसका प्रकाशक और उससे भी अजीब होंगें उसके पाठक। जिसको ये लोग ग्राहक कहते हैं। बहरहाल मैंने किताब का दूसरा चैप्टर पढ़ना शुरू किया। अच्छाइयों को बुराइयों के रूप में प्रस्तुत करने का हुनर जानिये। चैप्टर समाप्त हुआ तो मैंने फिर लेखक को फोन मिलाया। मैंने कहा भई लिखा तो आपने बहुत अच्छा है, पूरा मोह लिया है आप ने। पर यह तो बताइए कि बुराई को अच्छाई के रूप में प्रस्तुत करने से समाज को क्या मिलेगा। खबर तो अच्छाइयों और बुराइयों के बीच साफ साफ विभाजन के लिये होनी चाहिये।

बोले अरे बुद्धू यह क्रिएशन है क्रिएशन। यह चैप्टर क्रिएशन का मानसिक संसार है। विस्तार है समझ का, बिकास है ज्ञान का। धारणाओं का जमाना है और विश्वसनीयता बनाये रखने का हमारा अनुबंध है और यह एक ब्यवसायिक अनुबंध है फिर हम अपने ज्ञान से लोगों को वंचित रखना नहीं चाहते। एक विचार हमने किताब में दिया है। विचार तो विचार है। विचार से जीवन नही चलता लेकिन हमारा बाजार चलता है। विचार से ब्यवसाय नही चलता लेकिन हमारा ब्यवसाय चलता है। हमारा ब्यवसाय ही विचार का है। इसे ब्यवहारिक रूप देने का हमारा एक पूरा सांस्कृतिक अभियान ही है। अपने सांस्कृतिक विस्तार में हम अपने पाठक को भी शामिल करते हैं यह समायोजन वैचारिक नही है ब्यवहारिक है ताकी इसका अधिकतम लाभ अर्जित किया जा सके। किताब इसलिये नहीं लिखी गयी है कि आप उसे पढिये और उसपर परिचर्चा करिये। किताब इसलिये लिखी गयी है आप उसे पढ़िए और अपने जीवन में उसका लाभ उठाइये। अब देखिए प्रतिद्वंदिता का जमाना है और इस दौर में आप को अपना माल बेचना है, और जितना सम्भव है लाभ कमाना है। जितनी सम्भव हो उतनी सफलता हासिल करना है।

लाभ और सफलता को समर्पित है हमारी यह किताब। इसको पढ़ने के बाद अपने बुरे विचार में भी सौंदर्यता के प्राण डाल सकते हैं। हम इस दिशा में सक्रिय प्रयोग करते रहते हैं। आप को वर्तमान में हमारे प्रयोगों के साक्ष्य मिल जाएंगे। आप किसी भी चर्चित मुद्दे पर हमारी भूमिका को देख सकते हैं। हर मुद्दे पर हमारे विचार और प्रबंद्ध निर्णायक हैं।

हम मनुष्य ही नहीं संस्थाओं के भाग्य भी बनाते और बिगाड़ते हैं इसके बाद मैंने अखबार की खबरों को ध्यान से पढ़ना शुरू किया-आकाशवाणी के समाचारों को सुनना शुंरु किया-दूरदर्शन के विभिन्न चैनल्स पर खबरें देखना शुरू किया। सचमुच मुझे लगने लगा कि लेखक का विचार हर जगह निर्णायक था। सचमुच वर्तमान की दृष्टि में उसने विचारों और खबरों के बीच अपनी खबरों को प्लांट कर दिया था। इस प्लांटेशन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी सारे विचारों के बीच में उसके विचार सुंदर आकर्षक और प्रभावकारी लगते थे।

उसकी खबरों की विश्वसनीयता थी और मीडिया में उसके प्रति सहज आकर्षण था।

एक गैरजरूरी सन्दर्भ को युग की जरूरत बताने में, उसमें विश्वास दिलाने में उसका कोई जबाब नही था। मैंने फिर लेखक को फोन मिलाया, कहा कि आप की बातें सही हैं लेकिन आप के प्रयास का आपके ब्यवसायिक अनुबंध की क्रियाशीलता का समाज पर जो नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, उसके बारे में आप को सोचना चाहिये। अगर आप अपने को समाज से प्रतिबद्ध मानते हैं तो आप को अपने ही प्रयासों के समाज पर पड़ने वाले दुराग्रही इम्पैक्ट के बारे में सोचना चाहिये। बोले हमारा जो प्रभाव पड़ रहा है समाज पर-यह हमारे ब्यवसायिक अनुबंध का प्रतिफल है। इसके विपरीत सकारात्मक प्रभाव को सृजित करने की किसी अनुबंध की अनुवस्थिति में हम क्या कर सकते हैं। भई हमारा ब्यवसाय ही हमारी प्रतिबद्धता है। अब बचा था किताब का आखिरी अध्याय वो अच्छाइयों को बुरा सिद्ध करने का ज्ञान लीजिये। मैं सोच रहा था कि इस अध्याय को पढूं की न पढूं। आखिर यह ज्ञान लेकर मैं करूँगा भी क्या, जिसमे अच्छी बात को बुरा सिद्ध करने का हुनर है। मैंने फिर लेखक को फोन मिलाया। नम्बर मिलाते ही फोन लग गया। उसने मेरी आवाज पहचान ली और कहा अब क्या गड़बड़ है। । क्या अभी भी कोई चीज आपके दिमाग मे घुसने से इनकार कर रही है। मैंने कहा आप की किताब का आखिरी अध्याय मेरे सामने है-सोचा पढ़ने से बेहतर है आप से बात कर लूं। बोले ठीक किया आप ने किताब पढ़ने से थोड़ी कुछ मिल जाता है और निश्चित रुप से आपकी उलझन है कि अच्छी बात को बुरा क्यों कहा जाय।

तो भई प्रतिद्वंदिता का जमाना है और अगर आप अपने विरोधी को बुरा नही साबित कर सके तो यकीन मानिये आप अपने प्रतिद्वंदी से पिछड़ जायेंगे। देखिये आज तक हमारे किसी ग्राहक ने हमसे हमारी सेवाओं के विषय मे कोई शिकायत नहीं की है। हम हमेशा उसकी आकांक्षा की परिपूर्ति करते रहते हैं, वास्तव में हम अपने ग्राहक का उससे भी अधिक खयाल रखते हैं। हम उसकी नयी नयी जरूरतों को गढ़ते हैं। बदलते हुये समय के साथ साथ उपभोग के लिए वैचारिक माल की जरूरत को बनाये रखते हैं। नयी नयी समस्याएं, नये नये समाधान हमारे क्रिएटिव संसार की अद्भुत उपलब्धियां हैं। मैं आप को एक बात बताऊं, एक साहब थे बड़े ईमानदार थे, सचमुच ईमानदार थे, उनको स्वयं भी अपनी ईमानदारी पर गर्व था। हमारे एक ग्राहक से टकरा गये, हमने उनका वो हाल बनाया की हर आदमी उनसे नफरत करने लगा। आप चाहें तो हमारे नियमित ग्राहक बन सकते हैं। हमारी किताब का पाठक होने का मतलब है एक सक्रिय जीवन जीना। एक सफल इंसान बनना। जो किताब आप ने बाजार से खरीदी है वह बहुत पुरानी है, नये संस्करण पढिये, ऑपरेशन्स का मौसम है ऐसा अनुभव करने लगेंगे। हमारे बनाये गये मौसम की वैचारिक दुनिया मे आइए। नयी नयी जिज्ञासाओं का लुत्फ उठाइये। सफलता के घोड़े पर सवार होकर अपने सारे दुश्मनों का सफाया कर डालिये।

अब मैं कभी किताब को देखता हूँ तो कभी लेखक को देखता हूँ। सोचता हूँ उसकी महत्वाकांक्षाओं के बारे में। अजीब आदमी है अरे भाई झूठ को सत्य सिद्ध करने की चुनौती स्वीकार करना, उसमे सफलता पा लेने का शत प्रतिशत विश्वास-अतिविश्वास। रास्ते मे कोई बाधा नही। गजब है लेखकीय दायित्वों का बदलता हुआ सरोकार। मैं तो हतप्रभ हूँ उसकी बातों से पर मेरी दिलचस्पी उसमें कम नही हो रही है।

भई जितना दिलचस्प है वो उतनी ही दिलचस्प है उसकी किताब। जितनी दिलचस्प है उतनी ही काली है जितनी काली है उतनी ही अभिशप्त है औऱ जितनी अभिशप्त है उतनी ही लोकप्रिय है। सचमुच आदमी के सपनों की दुनिया में उसकी किताब एक चमकता हुआ सिक्का है।


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