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सपने

सपने

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कोई पछतावा, कोई ग्लानि नहीं थी विश्वास को अपने किये पे ,वो जघन्य अपराध उसे एक मात्र एक खेल लगा और जेल जाना हीरोगिरी...,अब वह धीरे-धीरे धरातल पर आ रहा था,अब उसे अपने अपराध की जघन्यता भी समझ आने लगी थी ..अपने ही स्कूल की लड़की को गोली मारी थी उसने ! अब वो सोचता था ..क्यों मारा उसने, उसकी तो कोई गलती ना थी, वो तो पढ़ना चाहती थी, अपने माँ-बाप के सपने पूरा करना चाहती थी !

जूनून तो उसी पे सवार था इश्क का ..फिल्मों में देखा था उसने हीरो, हीरोइन को तंग करता है .....पहले हीरोइन नाराज होती है .....पर फिर उसे हीरो से प्यार हो जाता है ...!

पर असल में ऐसा कुछ नहीं हुआ...जब तक बात उसकी समझ में आयी काफी देर हो चुकी थी ! अब उसका फ़िल्मी सपना टूट चुका था .....उसके माँ-बाप के सपने भी......!


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