सफलता

सफलता

11 mins
610


सूरज छत पर बैठा आसमान के बदलते रंग देख रहा था। धीरे धीरे लालिमा पर सुरमई रंग चढ़ रहा था। उसके जीवन के आसमान पर भी तो अब रंग बदल चुके थे। प्रेम के चटकीले रंगों पर अब अहम की काली चादर छा गई थी। 

आठ साल पहले इसी छत पर बैठा वह आने वाले जीवन के रंगीन सपने सजा रहा था। दोपहर में ही तो वह अपनी दुल्हन सुनंदा को विदा करा कर लाया था। उसके बाद से ही घर की औरतें रस्में निभाने में जुट गईं। बाहर बैठक और दालान में मर्द राजनीति और समाज के बारे में बातचीत कर रहे थे। चारों तरफ हलचल थी। उसके बीच सूरज कुछ शांत पलों की तलाश में छत पर जा कर बैठ गया था।

ब्याह से पहले उसने सुनंदा की एक झलक भर ही देखी थी। जब वह उसे देखने के लिए उसके घर गया था। सुनंदा अपनी माँ के साथ आकर वहाँ बैठ गई थी। उसने सर उठा कर उसकी ओर देखा। सकुचाई सी वह नज़रें नीचे किए बैठी थी। बस उसके बाद उसकी माँ उसे वापस भीतर ले गई थी लेकिन उस छोटी सी झलक में ही सुनंदा के रूप का जादू उस पर चल गया था।

सूरज शहर के सरकारी स्कूल में टीचर था। उसके समाज में औरतों को पढ़ाने का रिवाज नहीं था। बहुत हुआ तो लड़कियों के लिए चिट्ठी पढ़ने और लिखने लायक तालीम बहुत समझी जाती थी पर सुनंदा जो शहर में अपने मामा के घर रहती थी बारहवीं तक पढ़ी थी। छत पर बैठा हुआ वह सुनंदा के साथ अपने सुखी जीवन की कल्पना कर रहा था। उसे बेसब्री से इंतज़ार था उस पल का जब रात में दोनों एक साथ होंगे। 

सूरज सुनंदा को अपने साथ शहर ले आया था। वह हर पल सुनंदा को खुश रखने का प्रयास करता था। वैसे तो सुनंदा भी खुश थी पर सूरज को लगता था कि उसके मन में कोई बात है। जिसके चलते वह कुछ उदास सी रहती है। पहले उसे लगता था कि ब्याह के बाद नए माहौल में आने के कारण ही वह उदास रहती है पर अब तो ब्याह को तीन महीने बीत चुके थे। फिर भी उसे लगता था कि सुनंदा पूरी तरह से खुली नहीं है। अतः उसने उससे इस बारे में बात की। सुनंदा ने अपने मन की बात बता दी। वह बारहवीं के बाद भी पढ़ना चाहती थी लेकिन माँ ने उसकी शादी करवा दी। इसलिए कभी कभी वह उदास हो जाती है। उसने सूरज से विनती की कि वह उसकी आगे पढ़ने की इच्छा को पूरा करने में मदद करे। 

सुनंदा के मन की बात जान लेने के बाद सूरज अजीब सी उलझन में फंस गया। वह जानता था कि जो सुनंदा चाहती है उसे पूरा करना बहुत कठिन है। उसके घरवाले कभी इस बात के लिए तैयार नहीं होंगे कि घर की बहू पढ़े लिखे। वह तो बस अब उससे पोते पोतियों की उम्मीद लगा कर बैठे हैं। उसका समाज भी उसके खिलाफ हो जाएगा। सूरज समाज और घरवालों का विरोध लेने की स्थिति में नहीं था। उसने अपना ध्यान उस तरफ से हटा लिया।

पर सुनंदा की आगे पढ़ाई करने की इच्छा तीव्र होती जा रही थी। वह अक्सर सूरज से इस विषय में बात करती थी। एक दिन सूरज ने उसे सारी बात खुल कर बता दी।

"सुनंदा सोच कर देखो। घरवालों को यह बात मंज़ूर नहीं होगी। मैं भी उनका विरोध करने की स्थिति में नहीं हूँ।"

"पर इसमें गलत क्या है ? मैं पढ़ना ही तो चाहती हूँ। आप तो एक टीचर हैं। शिक्षा का महत्व समझते हैं। आपके स्कूल में लड़कियां भी तो पढ़ती हैं। महिला टीचर भी हैं।"

"हाँ सुनंदा पर...."

"पर क्या जी....आप जैसा पढ़ा लिखा पति पाकर मैं खुश थी। मैंने सोचा था कि आप मेरी बात समझोगे पर यदि आप जैसे लोग भी अपनी सोच नहीं बदलेंगे तो समाज कैसे आगे बढ़ेगा।"

अगले कई दिनों तक सूरज सुनंदा की कही बात पर विचार करता रहा। ऐसा नहीं था कि वह अपनी पत्नी को शिक्षित होते नहीं देखना चाहता था लेकिन वह घरवालों और समाज के विरोध का सामना करने से डरता था लेकिन सुनंदा के शब्द की यदि आप जैसे लोग भी अपनी सोच नहीं बदलेंगे तो समाज कैसे आगे बढ़ेगा उसे इस बारे में सोचने को मजबूर कर रहे थे।

करीब एक महीने तक वह अपने दिल को मज़बूत करता रहा। अंततः उसने सुनंदा की आगे पढ़ाई करने की इच्छा को पूरा करने का निश्चय किया। सुनंदा को हिंदी साहित्य में रुचि थी। उसने इसी विषय को लेकर बी.ए. में प्रवेश लिया। 

एर तरफ सुनंदा की शिक्षा का सफर शुरू हुआ तो दूसरी तरफ सूरज का भी इम्तिहान आरंभ हो गया। परिवार के लोगों को उसका यह फैसला सख्त नापसंद आया। घर की बहू का चौखट लांघ कर कॉलेज में पढ़ने जाना उनके लिए एक अपमान जनक बात थी। गांववाले भी सूरज के विरोध में आ गए। उसका गांव जाना कठिन हो गया किंतु इन सबसे घबरा कर पीछे हटने की बजाय सूरज का निश्चय और दृढ़ हो गया। 

सूरज सुनंदा को मन लगा कर पढ़में के लिए प्रेरित करता था। उसकी प्रेरणा पाकर सुनंदा ने अच्छे अंकों के साथ बी.ए. के तीन साल पूरे कर लिए। उसके बाद उसने एम.ए. में दाखिला ले लिया। सूरज की आर्थिक रूप से सहायता करने के लिए उसने घर पर छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

भले ही अपनी पत्नी को शिक्षित करने के उसके फैसले को उसके घरवालों ने स्वीकार ना किया हो पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो उसके इस कदम की तारीफ करते थे। उसके स्कूल के प्रधानाचार्य ऐसे ही लोगों में थे। वह चाहते थे पंद्रह अगस्त के जलसे में विद्यार्थिओं के अलावा शिक्षक अथवा उनके परिवार का कोई सदस्य भी भाग ले। सूरज ने सुनंदा को कई बार गुनगुनाते सुना था। उसकी आवाज़ अच्छी थी। अतः सूरज चाहता था कि सुनंदा उसकी जगह इस अवसर पर देशभक्ति का कोई गीत गाए। उसने अपनी इच्छा सुनंदा को बता दिया।

जलसे में जब इस बात की घोषणा हुई कि सुनंदा स्वरचित एक कविता का पाठ करने वाली है तो सूरज के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। सुनंदा ने देशभक्ति से भरी एक सुंदर कविता सुना कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। सभी तरफ से वाह वाह की आवाज़ आ रही थी। अपनी पत्नी के इस नए गुण के बारे में जान कर सूरज भी बहुत खुश हुआ। घर लौट कर सुनंदा ने बताया कि कविताएं तो वह बहुत पहले से लिख रही है। पर जब सूरज ने उसे पंद्रह अगस्त के जलसे के बारे में बताया तो उसने कल रात ही यह नई कविता लिखी थी।

सूरज ने अपनी पत्नी की इस रचनात्मकता को खूब प्रोत्साहन दिया। सुनंदा अब और मन लगा कर कविताएं लिखने लगी। वह अपने सोशल एकाउंट के माध्यम से उन्हें लोगों तक पहुँचाने लगी। उसकी कविताओं में विचारों की गहराई होती थी। भाषा का सुंदर प्रयोग देखने को मिलता था। लोग उन्हें खूब पसंद करने लगे। उसकी कविताएं साहित्यिक पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होने लगीं।

इससे प्रोत्साहित होकर उसने अपनी कविताओं का एक संकलन तैयार कर ई पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। इस संकलन को लोगों ने खूब सराहा। धीरे धीरे एक अच्छी कवियत्री के रूप में सुनंदा की ख्याति बढ़ने लगी। अब उसे कवि सम्मेलनों से भी बुलावा आने लगा। इन कवि सम्मेलनों में वह अपनी कविताओं एवं उन्हें पढ़ने के अपने विशेष अंदाज़ के कारण सुर्खियां बटोरने लगी। इसके बाद उसकी कविताओं के दो संकलन प्रकाशित हुए। जिन्हें उसके पाठकों ने खूब सराहा। शहर की एक साहित्यिक समिति ने उसे उभरती हुई कवियत्री के रूप में सम्मानित किया।

सुनंदा की इस सफलता से सूरज बहुत खुश था। उसकी पत्नी ने अपनी काबिलियत के दम पर समाज में अपनी एक पहचान बनाई थी। सुनंदा की सफलता के सफर में सूरज हर पल उसके साथ था। जब कभी उसे कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए शहर के बाहर जाना होता तो वह उसके साथ जाता ताकि उसे कोई तकलीफ ना हो। संकीर्ण सोंच रखने वाले उसे ताना मारते कि बीवी का गुलाम है। उसकी छाया में पल रहा है। ऐसी बातें उसके दिल को ठेस पहुँचाती थीं। किंतु वह उन्हें सुनंदा तक नहीं पहुँचने देता था। वह नहीं चाहता था कि कुछ भी उसका ध्यान भटकाए। 

कविता लेखन के क्षेत्र में सुनंदा का नाम अब वर्तमान समय के उच्च कविओं में लिया जाता था। देश ही नहीं विदेशों से भी उसे कवि सम्मेलनों के लिए बुलाया जाने लगा था। इसके लिए उसे मुंह मांगे पैसे मिलते थे। सूरज भी अब अपनी नौकरी छोड़ कर सुनंदा का काम देखने लगा था। सुनंदा के दो और कविता संग्रह आए जिन्हें ना सिर्फ पाठकों का प्यार मिला बल्कि एक के लिए उसे सम्मानित भी किया गया। इसी बीच उसे एक प्रसिद्ध टीवी चैनल के कार्यक्रम कविता पाठ का संचालन करने का अवसर मिला। यह कार्यक्रम कुछ ही दिनों में लोकप्रिय हो गया। इसका श्रेय भी सुनंदा को मिला।

अब तो सुनंदा पर हर तरफ से ख्याति व धन की बारिश हो रही थी। वह भी पूरे उत्साह के साथ उसमें भींग रही थी। सफलता पाने से अधिक कठिन उसके शिखर पर पहुँच कर संतुलन बनाए रखना होता है। अक्सर ख्याति मन में अहंकार का बीज रोपित कर देती है। जिसे अंकुरित होने से रोक सकने की क्षमता बिरलों में ही होती है। 

सुनंदा के मन में भी अहंकार का बीज रोपित हुआ था वह दिन पर दिन बढ़ती ख्याति से अंकुरित होकर पेड़ बनने की दिशा में अग्रसरित था। सुनंदा अब आयोजकों से बहुत ही ऊँची फीस मांगने लगी थी। इसके कारण छोटे छोटे शहरों के आयोजक पीछे हटने लगे थे। सुनंदा अपने प्रषंसकों के एक बड़े वर्ग से दूर चली गई। यही नहीं जब वह कवि सम्मेलन में भाग लेने जाती तो अपने लिए कुछ विशेष सुविधाओं की मांग करती। यह बात साथी कविओं को अच्छी नहीं लहती थी। उसके बढ़ते नखरों से आयोजक तंग आने लगे थे।

बढ़ते अहंकार की यह आँच केवल उसके व्यवसायिक जीवन को ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत जीवन को भी झुलसा रही थी। उसका शुभ चिंतक होने के नाते सूरज उसे उसके बदलते व्यवहार के प्रति सचेत करता था। वह उसे समझाता था कि इस तरह का व्यवहार उसका नाम खराब करेगा। लेकिन सुनंदा उसकी इस सलाह को बेवजह उसके काम में दखल मानती थी। उसका कहना था कि यह स्थान उसने अपनी मेहनत व काबिलियत की वजह से प्राप्त किया है। उसे सलाह की ज़रूरत नहीं है। वह भलीभांति जानती है कि क्या करना है। सूरज के लिए उसका नज़रिया बदल गया था। पहले वह अपनी इस सफलता में उसके सहयोग के लिए उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखती थी। किंतु अब सफलता की उस ऊँचाई से उसे सूरज का कद बहुत छोटा मालूम पड़ता था। उसे भी लगने लगा था कि सूरज उसकी सफलता के साए में आरामदायक जीवन बिता रहा है। अतः उसका सलाह देना सुनंदा को अच्छा नहीं लगता था।

सुनंदा के द्वारा मिले तिरिस्कार के कारण सूरज बहुत दुखी था। अपने अहंकार में आज सुनंदा यह भूल गई थी कि सफलता से पहले संघर्ष के दिनों में वही उसका सच्चा साथी था। उसके लिए उसने अपने परिवार को भी नाराज़ किया था। पर आज हालत यह थी कि उसका सुनंदा को सही सलाह देना भी उसे गंवारा नहीं था। सूरज उससे दूर होने लगा था। पर उसके मन में सदा एक टीस सी रहती थी।

सफलता के आसमान पर तो समय समय पर नए सितारों का उदय होता रहता है। कविता लेखन में भी इन दिनों दिनेश भास्कर नाम का नया सितारा तेजी से अपनी चमक फैला रहा था। उसे चाहने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी। जो आयोजक सुनंदा से दूर हो गए थे वह अब उसके पास जाने लगे थे। वह सुनंदा के लिए एक चुनौती बनता जा रहा था। 

सुनंदा के शहर में हर साल एक संस्कृतिक मेला लगता था। इस मेले में अलग अलग क्षेत्रों के कलाकार आकर अपनी प्रतिभा दिखाते थे। लेकिन लोगों को हर साल आयोजित होने वाला कवि सम्मेलन सबसे अधिक पसंद आता था। सुनंदा हर साल इस कवि सम्मेलन का मुख्य आकर्षण होती थी। इस बार भी लोग उसे सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन जिस समय मेले में कवि सम्मेलन होना था उसी समय सुनंदा को दुबई में कविता पाठ का अवसर मिला। वहाँ मिलने वाली फीस शहर के कवि सम्मेलन से बहुत अधिक थी। सुनंदा ने फौरन हाँ कर दी। 

वैसे तो इधर कई दिनों से सूरज ने उसे सलाह देना छोड़ दिया था। किंतु उसका यह निर्णय उसे अनुचित लगा। वह जानता था कि इस तरह वह अपने प्रशंसकों को नाराज़ कर देगी। जो सही नहीं है। अतः हिम्मत कर उसने उसे समझाया कि पैसों से अधिक लोगों से मिलने वाला प्यार है। वह अपने प्रशंसकों का मान रखे। दुबई जाने की बजाय शहर के लोगों के बीच कविता पाठ करे। सुनंदा को उसका बोलना खराब लगा। उसे सुनाते हुए बोली।

"जिनके पास खुद कोई हुनर नहीं होता है वह दूसरों का मुंह देखते हैं। मेरे प्रशंसक मेरी कला के कद्रदान हैं। अगर यहाँ लोग नाराज़ हो गए तो अपनी कला से मैं वहाँ लोगों का दिल जीत लूँगी। तुम मेरे सलाहकार ना बनो। जो तुम्हारा काम है वह करो। वैसे वह भी मेरी मेहरबानी के कारण ही हैं।"

सूरज बेगैरत इंसान नहीं था जो आत्मसम्मान पर लगी इस करारी चोट के बाद भी वहाँ रहता। उसने सुनंदा का काम और घर दोनों छोड़ दिए।

दुबई का कार्यक्रम कुछ कारणों से रद्द हो गया। शहर के प्रतिष्ठित कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने का अवसर भी निकल गया।

कवि सम्मेलन के बाद शहर में जहाँ सुनंदा के अपने प्रशंसकों को धोखा देने की चर्चा थी तो वहीं दिनेश भास्कर ने अपने काव्य पाठ से सबका दिल जीत लिया था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract