सोलमेट
सोलमेट
हीर - रांझा, सिरिह-फराद, ढोला-मारू
की ही तरह रिश्ता था मेरा और
मेरे हमराही का रिश्ता
हमने खुद में ही समानता और खुद में ही
प्रेम का उमड़ता सागर देखा था।
"भले ही में इस कहानी में
कोई खास बात न कह सकूँ।"
लेकिन मैंने खुद को
जब भी अकेला समझा।
उसके साथ किया रोमांस और
उसकी बिखरी जुल्फो में किया आराम।
मुझे खुद को अंदर तक झकझोर देता है।
उसकी अंतरंगता और
कामुकता के साथ उनकी संगतत्ता
मैं खुद इतना विलीन हो जाता था कि वो
हमेशा के लिए विलीन होकर
भी मुझे खुद में लीन रखती है।
पता नहीं क्यों वो मुझे हमेशा के
लिए छोड़ कर चली गईं।
I mean सुसाइड
किसी ने सच ही कहा है कि
"रिश्तों को एहमियत से निभाना चाहिए,
ताजमहल लोगो ने देखा था मुमताज ने नहीं "
हम भी कभी रिश्तों के पैमाने हुआ करते थे,
वो हमारे और हम उनके दीवाने हुआ करते थे।

