संवेदना
संवेदना
उस समय की बात है जब नोटबन्दी चल रही थी। अनीशा हॉस्टल में रहकर एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई कर रही थी। उसे ख़र्चे के लिये पैसे की ज़रूरत हुई तो अपने बैंक से पैसे निकालने गई। बहुत लम्बी लाईन थी ।घंटों लाईन में लगना पड़ा तब जाकर उसका नम्बर आया। इसके लिये उसे अपनी पढ़ाई और क्लास भी छोड़नी पड़ी थी। पर पैसों की सख़्त ज़रूरत थी, इसलिये वह लाईन में खड़ी रही।
बैंक से उसे पैसे तो मिले पर बहुत थोड़े से। जितने मॉंगे थे उतने नहीं मिले। पर क्या करती। वह निराश उदास होकर लौटने लगी, इतनी देर खड़े रहने पर भी उसकी ज़रूरत भर के पैसे नहीं मिले थे। तभी उसने देखा कि उसकी एक सहपाठिन भी लाईन से निराश लौट रही थी। उसने मनीषा को देखकर कहा-"मुझे बिल्कुल भी पैसे नहीं मिले। मुझ तक नम्बर ही नहीं आ पाया क्योंकि बैंक से पैसे मिलने बन्द हो गये। "
अनीशा को उससे सहानुभूति हुई। उसने कहा-"तुम कैसे ख़र्च चलाओगी ?"
वह लड़की चुप रही पर बहुत परेशान नज़र आ रही थी।
अनीशा ने उसकी परेशानी समझी ,और जितने रुपये उसे बैंक से मिले थे उसमें से आधे उस लड़की को दे दिये। अनीशा ने अपनी जरुरतों का बलिदान कर उसकी सहायता की। रुपये पाकर अनीशा की उदारता से उस लड़की का चेहरा चमक उठा।
उसकी खुशी देखकर अनीशा भी मुस्करा उठी। उसकी समय पर की गई सहायता से उस लड़की को कष्ट से थोड़ी राहत मिली।
अनीशा शुरू से ही सहृदय थी। और अपना काम छोड़कर भी दूसरों की मदद कर देती थी,काम कर देती थी। इसी से वह सर्वप्रिय थी सभी से उसकी एक समान मित्रता थी। निं:स्वार्थ भाव से अपनी ज़रूरतों को पीछे छोड़कर दूसरों का दु:ख दूर करना एक बहुत बड़ा गुण है।